हिंदी साहित्य के रिवाजों को तोड़ती है ‘the नियोजित शिक्षक’

‘द नियोजित शिक्षक’ लेखक तत्सम्यक् मनु का दूसरा उपन्यास है। यह उपन्यास नायक के माध्यम से शिक्षकों विशेषकर नियोजित शिक्षकों के जीवन से जुड़े कई पहलुओं से पाठक को वाकिफ करवाता है। इस उपन्यास के ऊपर रत्नाकर सिंह ने टिप्पणी लिखी है। रत्नाकर सिंह मुंबई के रहने वाले हैं और कवि हैं। आप भी यह टिप्पणी पढ़िये।  

    

दुनिया में कुछ ही ऐसी क़िताबें हैं, जो अंतिम पन्नों तक बाँधें रखती हैं।  ऐसी किताबों में ही बहुप्रतीक्षित उपन्यास ‘the नियोजित शिक्षक’ गत दिनों ही पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।  सौभाग्य इसलिए कि 2021 में यह पहला उपन्यास है, जिसे मैंने पढ़ खत्म किया है। 

क्या कहूँ उपन्यास के बारे में पढ़ते-पढ़ते कब मैं इसके अंतिम पृष्ठ तक आ पहुँचा पता ही नहीं चल सका ? वैसे इस हिंदी उपन्यास को पढ़ने में तीन दिन लगे।  इन तीन दिनों में जब भी मैं उपन्यास को बीच में छोड़कर आवश्यक कार्य से घर से बाहर जाता, तो दिमाग में यह ही चल रहा होता है कि उपन्यास में आखिर आगे क्या होने वाला है ? 

लेखक श्री तत्सम्यक मनु ने उपन्यास को रोमांचक धागों से बाँधा है, जिनकी हर कड़ी जहाँ अन्य कड़ी से जुड़ती चली जाती है।  उपन्यास के सभी पात्र अजूबे हैं।  कहीं पाठकगण किसी पात्रों को भूल न जाय, उसका ख्याल लेखक ने रखा है कि हर पात्र एक-दूसरे-तीसरे से जुड़कर बेजोड़ तरीके से अपना परिचय बता जाते हैं।  

उपन्यास की कहानी शिक्षकों पर केंद्रित हैं, किन्तु शिक्षकों के दर्द को बताने से पहले लेखक कई रोचक कथाओं को जन्म देते हैं, जिस कारण उपन्यास अपना जादू पृष्ठ -दर- पृष्ठ बरक़रार रखते जाता हैं। 

उपन्यास में लेखक ने आंचलिक भाषा ‘अंगिका’ को संरक्षण प्रदान करने के ख्याल से उसे भी सानुवाद उतारी गई है।  मेरी जानकारी के अनुसार इस भाषा को देवनागरी में लिखना टेढ़ी खीर है, लेकिन उपन्यास पढ़ते-पढ़ते लगा कि इस भाषा में लेखक को अधिकार प्राप्त हैं, इसलिए उन्होंने बेजोड़ तरीके से इस भाषा का उपयोग किया है, साथ ही उनका हिंदी अनुवाद भी कर दिए, ताकि पाठकों को कोई दिक्कत न हों!

उपन्यासकार श्री तत्सम्यक मनु ने शिक्षकबंधुओं की मनोदशा को समझने को लेकर अच्छा ‘वर्क’ किया है, इसलिए औपन्यासिक कथा कहीं भी एकपक्षीय नहीं लगती है।  

अगर कोई व्यक्ति उपन्यास पर रेटिंग माँगे, तो मैं इस उपन्यास को दस में ‘दस’ रेटिंग दूँगा, क्योंकि अगर अच्छी लेखन को ‘अच्छा’ ना कहूँ, तो साहित्यकार नए-नए मुद्दों पर लिखने का प्रयास ही नहीं करेंगे। 

– रत्नाकर सिंह , मुंबई 

किताब: the नियोजित शिक्षक | लेखक: तत्सम्यक् मनु | पुस्तक लिंक: अमेज़न | शॉपक्लूज

यह भी पढ़ें


FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

About एक बुक जर्नल

एक बुक जर्नल साहित्य को समर्पित एक वेब पत्रिका है जिसका मकसद साहित्य की सभी विधाओं की रचनाओं का बिना किसी भेद भाव के प्रोत्साहन करना है। यह प्रोत्साहन उनके ऊपर पाठकीय टिप्पणी, उनकी जानकारी इत्यादि साझा कर किया जाता है। आप भी अपने लेख हमें भेज कर इसमें सहयोग दे सकते हैं।

View all posts by एक बुक जर्नल →

6 Comments on “हिंदी साहित्य के रिवाजों को तोड़ती है ‘the नियोजित शिक्षक’”

    1. जी चर्चाअंक में मेरी प्रविष्टि को शामिल करने हेतु हार्दिक आभार।

    1. जी समीक्षा आपको पसंद आयी यह जानकर अच्छा लगा। आभार।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *