पुस्तक अंश: मांसभक्षी प्रेत

मांसभक्षी प्रेत (Mansbhakshi Pret) लेखक एस सी बेदी  ( S C Bedi) द्वारा लिखा हुआ एक किशोर उपन्यास है। यह राजन-इकबाल शृंखला ( Rajan Iqbal Series) का उपन्यास है।  राजा बाल पॉकेट बुक्स (Raja Bal Pocket Books) द्वारा प्रकाशित इस शृंखला में राजन (Rajan) और इकबाल (Iqbal) नामक सीक्रेट एजेंट शोभा (Shobha) और सलमा (Salma) के साथ मिलकर कई मामले सुलझाते हैं। इस उपन्यास में भी वह ऐसे प्रेतों का मामला सुलझा रहे हैं जिन्होंने चंदनपुर के ‘स्मॉल सी’ इलाके में आतंक मचा रखा है। 

आज ‘एक बुक जर्नल’ में पढ़िए ‘मांसभक्षी प्रेत’ (Mansbhakshi Pret) का एक रोचक अंश। उम्मीद है यह अंश आपको पसंद आएगा और पुस्तक के प्रति आपकी उत्सुकता जगाने का कार्य करेगा। 

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पुस्तक अंश: मांसभक्षी प्रेत - एस सी बेदी

“सल्लो जी! तुमसे कुछ भी पूछते हुए डर लगता है।”
“क्यों?”
“तुम्हारा ब्रह्मास्त्र थप्पड़ आँखों के सामने घूम जाता है।”
सलमा मुस्कराई, फिर उसके चेहरे को दोनों हाथों में लेती हुई बोली – “आज थप्पड़ नहीं मारूँगी, पूछो।”
“कल तुम कहाँ थी?”
“सहेली की शादी पर गई थी।”
“एक दिन तुम्हें भी दुल्हन की तरह सजना है। उस समय तुम कैसे सजोगी? देखकर मैं तुम्हारे दुल्हन रूपी चित्र को मन-मस्तिष्क में बैठा लेता।”
“तुम चाहते हो, तुम्हारी यह बात सुनकर मैं शर्मा जाऊँ?”
“हाँ।”
“लेकिन मैं शर्माऊँगी नहीं, समझे।” सलमा तेज स्वर में बोली। 
“समझ गया, लेकिन तुम्हारी मर्दानी आवाज सुनकर मैं तो शर्मा सकता हूँ।”
“क्या कहा, तुमने… मेरी आवाज मर्दानी है?” सलमा ने कहा और उसके दोनों कान पकड़कर ऐंठने लगी। 
“सल्लों जी! कान टूट जाएँगे।”
“एक बार फिर कहो – तुम्हारे दोनों कान जड़ से उखाड़ दूँगी।”
“मैं ऐसी गलती कैसे कर सकता हूँ?” इकबाल ने कहा। 
फिर आवाज में चाशनी घोलता हुआ बोला – “सल्लो जी! तुम्हारी आवाज तो कोयल से भी ज्यादा मीठी है।”
सलमा ने उसके दोनों कान छोड़ दिये और रूठे हुए अंदाज में बोली- “अब मुझसे बात मत करना।”
राजन कार ड्राइव करते हुए, उनकी बातें सुन रहा था और खामोश था। खण्डहर के पास उसने कार रोकी, फिर बोला – “नीचे उतरो, हमारी मंजिल आ गई।”
सलमा व इकबाल भी नीचे आ गये। 
उन्होंने चारों तरफ नजर दौड़ाई, लेकिन दूर-दूर तक कोई दिखाई नहीं दिया। चारों तरफ मरघट जैसा भयानक सन्नाटा छाया हुआ था। 
सलमा बोली -“प्रेत बाहर नहीं, खण्डहर के अंदर ही होंगे।”
“कह तो ऐसे रही हो – जैसे उन्होंने आकर तुम्हें बताया हो – सल्लो जी! हम खण्डहर के अंदर मिलेंगे, दावत पर आना।”
“मैं तुमसे बात नहीं कर रही, समझे।”
“समझ गया, लेकिन मैं तुमसे नहीं अपनी सल्लो जी से बात कर रहा हूँ।”
राजन बोला -” अगर तुम लोग इसी तरह लड़ते रहे तो हमारा यहाँ आना बेकार चला जायेगा।”
तभी सलमा सरसराते स्वर में बोली – “राजन! खण्डहर के दायीं तरफ तुमने कुछ देखा।”
“हाँ! ,मैंने देखा – वहाँ हवा डांस कर रही थी।” इकबाल झट से बोला। 
“तुम फिर बोले।”
“घर जाकर सुई- धागा ला कर मुँह सिल दो, तब  नहीं बोलूँगा।”
राजन गुर्राता हुआ बोला -“अगर तुम लोग इसी तरह लड़ते रहे तो दोनों को उठाकर पानी में फेंक दूँगा।”
इकबाल बुदबुदाया – “सल्लो जी! आओ, दोस्ती कर लें।”
“शटअप!”
इकबाल ने झट से होंठों पर हाथ रख लिया। 
राजन ने भी साधू प्रेत को देख लिया था। वह बोला – “आओ, पहले साधू-प्रेत की खबर लें। “
तीनों भागते हुए उस भाग में पहुँचे, लेकिन वहाँ उन्हें कहीं भी साधू-प्रेत दिखाई नहीं दिया। 
चारों तरफ देखने के बाद इकबाल बोला – “लगता है, वह घनी झाड़ियों का फायदा उठाकर गायब हो गया है।”
“आओ- अब खण्डहर के अंदर चलते हैं।”
खण्डहर बिल्कुल समुद्र के साथ सटा हुआ था। तीनों खण्डहर के अंदर प्रविष्ट हो गये। 
“राजन!” इकबाल बोला – “यह खण्डहर बिल्कुल स्मॉल समुद्र के साथ सटा हुआ है। इसलिए मेरे विचार से प्रेतों का खण्डहर से भी अवश्य संबंध होगा।”
“तुम्हारा विचार सही है।”
तीनों खण्डहर  में प्रविष्ट हो गये। जैसे ही वह लोग एक टूटे-फूटे कमरे में प्रविष्ट हुए बहुत से चमगादड़ चीं-चीं करते हुए बाहर की तरफ उड़े। तीनों जमीन पर न लेट जाते तो वह उन्हें अवश्य पंजों से घायल कर देते। कमरे में सीलन भरी बदबू आ रही थी। 
टॉर्च जलाकर वह लोग अगले कमरे में प्रविष्ट हुए। उसके बाद राहदारी थी। जैसे वह वह लोग वहाँ पहुँचे, भयंकर अट्टहास चारों तरफ से उभरने लगे। 
“राजन, इक्को!” सलमा बोली – “तुम सुन रहे हो?”
“हाँ। प्रेत के अट्टहास हैं, लेकिन तुम मुझसे बात क्यों कर रही हो?”
“भूल हो गई!”
राजन बोला – “हमें डराने की कोशिश की जा रही है।”
तभी वह लोग चौंक उठे। कुछ दूरी पर उन्हें तीन आँखों वाला प्रेत नजर आया। 
तीनों उस तरफ दौड़े। दायीं तरफ मुड़ते ही सीढ़ियाँ थीं। 
“राजन!” सलमा बोली – “लगता है, प्रेत सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर चला गया है।”
“चलो। ऊपर भी देख लेते हैं।”
प्रेत के अट्टहास अभी भी सुनाई दे रहे थे। तीनों सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर पहुँचे। ऊपर भी कोई नहीं था। फिर वह लोग नीचे आ गये। नीचे आते ही उन्हें एकदम बहुत से अट्टहास सुनाई दिये। सलमा घबराकर इकबाल से लिपट गई। 
“तुम मुझसे रूठी हुई हो, फिर यह काम क्यों?”
“अब भी रूठी हुई हूँ, पीछे हटो।”
एकदम से ही शांति छा गयी थी। 
राजन बोला – “आओ चलें।”
“और वह प्रेत।” इकबाल बोला। 
“इस समय प्रेत काबू में नहीं आयेंगे।”
खण्डहर में मौत जैसा सन्नाटा छाया हुआ था। तीनों बाहर आ गये। थोड़ी देर बाद उनकी कार सड़क पर दौड़ रही थी। 
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नोट: एक बुक जर्नल में प्रकाशित इस छोटे से अंश का मकसद केवल पुस्तक के प्रति उत्सुकता जागृत करना है। आप भी अपनी पुस्तकों के ऐसे रोचक अंश अगर इस पटल से पाठकों के साथ साझा करना चाहें तो वह अंश contactekbookjournal@gmail.com पर उसे हमें ई-मेल कर सकते हैं।


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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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