संस्करण विवरण:
फॉर्मैट: ई-बुक | प्रकाशक: तुलसी कॉमिक्स | प्लेटफॉर्म: प्रतिलिपि | लेखक: देवेन्द्र गढ़वाली | चित्र: मलय चक्रवर्ती | संपादन: प्रमिला जैन
कॉमिक बुक लिंक: प्रतिलिपि
कहानी
वह एक डाकिनी थी जिसने पूरे बिहारीगढ़ से बदला लेने की ठान ली थी। अपने बदले की आग को ठंडा करने के लिए उसे शक्तियों की जरूरत थी और इसीलिए उसने पिशाचिनी माया का आव्हान किया था।
आखिर कौन थी ये डाकिनी?
वह बिहारीगढ़ वालों से क्यों बदला लेना चाहती थी?
क्या वह अपने बदले में कामयाब हो पाई?
मेरे विचार
‘डाकिनी का मायाजाल’ तुलसी कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित कॉमिक बुक है। कॉमिक बुक की कहानी देवेन्द्र गढ़वाली द्वारा लिखी गई है और इसका चित्रांकन मलय चक्रवर्ती द्वारा किया गया है। मलय चक्रवर्ती द्वारा चित्रित कई कुछ कॉमिक बुक मैं पहले पढ़ चुका हूँ लेकिन ये पहली बार था कि देवेन्द्र गढ़वाली द्वारा लिखी कोई कहानी पढ़ी है।
कॉमिक की कहानी की शुरुआत एक डाकिनी द्वारा पिशाचिनी माया की आराधना करने से होती है। डाकिनी अगर आप नहीं जानते हैं तो तंत्र साधना में निम्न कोटी की शक्ति को भी कहा जाता है लेकिन कई बार इसका प्रयोग ऐसी स्त्रियों के लिए भी किया जाता है जो कि तंत्र साधना करती हैं। शुरुआत में ही पाठक को पता चल जाता है कि यह डाकिनी क्रुद्ध है और बिहारीगढ़ के लोगों से बदला लेना चाहती है। वह यह बदला क्यों लेना चाहती है और किस तरह इस बदले को लेती है यही कहानी में आगे देखने को मिलता है।
डाकिनी बदला लेने के लिए अपनी इच्छित शक्तियाँ पा लेती है और फिर किस तरह बदला लेती है यही इधर दर्शाया गया है। यह बदले की एक साधारण कहानी है। बदला कई बार आपके सोचने समझने की शक्ति हर लेता है और आपको उस जैसा ही अक्सर बना देता है जिनसे आप बदला लेना चाहते हैं। यहाँ पर भी ऐसा ही कुछ होते दिखता है।
चूँकि यह तंत्र-मंत्र वाली कहानी है तो डाकिनी सब पर भारी पड़ती ही दिखती है। वहीं उसकी योजना में आखिर तक किसी भी तरह की चूँकि कोई परेशानी नहीं आती है रोमांच की कमी भी इधर प्रतीत होती है। ऐसे में वह अपना मायाजाल तो सफलतापूर्वक फैला देती है लेकिन पाठक उससे उतना प्रभावित नहीं हो पाता है। आखिर में डाकिनी को हराने के लिए कहानी में मौजूद किशोर नाम का युवक, जिसे मैं नायक नहीं कहूँगा, एक काम करता भी है लेकिन वो ऐसा नहीं है कि कोई रोमांच पैदा करे। हाँ, लेखक चाहते तो उसे रोमांचक बना सकते थे लेकिन ऐसा करने में वो सफल नहीं हुए हैं।
कहानी का अंत लेखक द्वारा सुखांत करने की कोशिश की गई है। पर व्यक्तिगत तौर पर मुझे अंत बेकार लगा। मैं यही कहूँगा कि डाकिनी उर्फ कल्लों का विवाह उसी युवक से हो जाता है जिसने उसकी बेइज्जती करी थी। जबकि बेहतर होता कि कल्लो को ऐसा मिलता जो कि उसे उसी रूप में चाहता जिसमें वो थी। यानी पश्चताप के रूप में यह शादी नहीं हुई होती।
कहानी चूँकि सीधी सरल है तो ऐसा कुछ प्लॉटहोल जैसा इधर नहीं है लेकिन एक बात है जो खटकी। डाकिनी क्यों डाकिनी बनी यह भी डाकिनी के द्वारा ही पता चलता है जो कि उसके प्रति आपके मन में थोड़ी सहानुभूति पैदा कर देता है लेकिन आपको ये सोचने पर मजबूर कर देता है जैसा हुआ वैसे होने की जरूरत क्या थी। जो कारण दिया गया है वो अभी लचर लगता है उसे थोड़ा मजबूत बनाया जा सकता था।
कॉमिक बुक की आर्ट की बात करूँ तो आर्ट अच्छी है। हाँ, मुझे बस एक चीज समझ नहीं आई कि चित्रकार ने पैशाचिक शक्ति की स्वामिनी पिशाचनी माया को वन पीस में क्यों दर्शाया? ऐसा दर्शाने के लिये उसे निर्देश किधर से मिले होंगे? क्या लेखक ने उसकी पौशाक ऐसी बताई होगी? या संपादक का यह काम रहा होगा। आर्टिस्ट मुझे मिलते तो मध्ययुगीन काल में इस ड्रेस के होने का कारण मैं उनसे जरूर पूछता। ऐसा लगता है जैसे माया पिशाचिनी जी उस वक्त अपने स्विमिंग पूल में नहाने का तैयार ही हो रही थीं कि डाकिनी जी की कॉल आ गई और उन्हें ऐसे ही पहुँच जाना पड़ा। वैसे ऐसी ड्रेस मैंने कई जादूगरों की ऐसिस्टेंट को भी या प्ले बॉय बनी को भी थोड़े अद्यतन (अपडेशन) के बाद पहनते हुए देखा है।
महापिशाचनी और डाकिनी |
अंत में यही कहूँगा कि डाकिनी का मायाजाल बदले की एक साधारण कहानी है जो कि रोमांच की कमी के कारण वैसा प्रभाव नहीं छोड़ पाती है जैसा कि छोड़ सकती थी। पढ़ना चाहें तो एक बार पढ़ सकते हैं। नहीं भी पढ़ेंगे तो ज्यादा कुछ खोएँगे नहीं।
अगर आपने इसे पढ़ा है अपनी राय हमें बताना न भूलिएगा।
कॉमिक बुक लिंक: प्रतिलिपि
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Thank you. Will not waste time reading this comics now
स्वागत है।