संस्करण विवरण:
फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 40 | प्रकाशक: राजा पॉकेट बुक्स | शृंखला: राजन-इकबाल
कहानी
चंदनपुर के स्मॉल सी यानी छोटे समुद्र नामक इलाके में प्रेतों का वास बताया जा रहा था। यह प्रेत उस इलाके में आए मानवों को मार रहे थे और फिर उनकी आधी खाई हुई लाश ही समुद्र में तैरती हुई मिलती थी।
वहीं दूसरी और चंदनपुर में फिर से बच्चे चोरी करने वाला गिरोह सक्रिय हो गया था। इस गिरोह ने अब तक तीन से अधिक बच्चे चोरी कर लिए थे।
इन दोनों ही घटनाओं ने बाल सीक्रेट एजेंटों (राजन,इकबाल,सलमा, शोभा) का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया था। उन्होंने इन मामलों को सुलझाने का फैसला कर लिया था।
आखिर क्या था स्मॉल सी के मांसभक्षी प्रेत का राज?
आखिर कौन चुरा रहा था चंदनपुर में बच्चे?
क्या राजन इकबाल की टीम इन मामलों को सुलझा पायी?
मुख्य किरदार
राजन, इकबाल, सलमा, शोभा – सीक्रेट एजेंट
बलबीर – चंदन नगर का पुलिस अफसर
राधा – राजन के कॉलेज की दोस्त
अजय – राधा का भाई जो लापता था
अल्बर्टो – एक दक्षिण भारतीय जो कि अजय का शिक्षक था
तारक नाथ – एक तांत्रिक जो कि चंदन नगर आया था
विचार
क्या भूत प्रेत होते हैं? यह एक ऐसा प्रश्न जिसे लेकर संशय सबके मन में रहा है। भूत प्रेत की जो घटनाएँ घटित होती हैं उनमें से काफी कुछ मानव निर्मित ही होती हैं। कुछ ही ऐसी होती हैं जो शायद असल हों। प्रस्तुत बाल उपन्यास मांसभक्षी प्रेत (Mansbhakshi Pret) में राजन इकबाल और शोभा सलमा ऐसे प्रेतों से जूझते दिखते हैं जो कि मानव मांस का भक्षण कर रहे हैं।
मैंने काफी दिनों से एस सी बेदी के राजन इकबाल शृंखला (Rajan Iqbal Series) के लघु-उपन्यास नहीं पढ़े थे तो सोचा इस बार पढ़ा जाए। वैसे भी पिछला उपन्यास ‘
लड़कियों का हंगामा (Ladkiyon ka Hungama)’ जनवरी 2022 में पढ़ा था और इस शृंखला के कुछ बाल उपन्यास में मेरे पास मौजूद थे तो सोचा एक बार पढ़ लिया जाए।
प्रस्तुत बाल उपन्यास, जिसे पृष्ठ संख्या के हिसाब से उपन्यासिका कहना बेहतर होगा, की बात करूँ तो इस बाल उपन्यास में बाल सीक्रेट एजेंट दो मुसीबतों से जूझते हुए दिखते हैं। एक मुसीबत तो स्मॉल सी इलाके के प्रेत हैं जो कि वहाँ आने जाने वाले मानवों को मार रहे हैं वहीं दूसरी मुसीबत बच्चों के लगातार होते अपहरण हैं। बाल एजेंट किस तरह इन दो मुसीबतों से पार पाते हैं वह उपन्यास की कहानी बनता है। इस दौरान वह किन मुसीबतों से दो चार होते हैं। कहाँ कहाँ पर आकर उनकी तहकीकात अटकती है और किस तरह आखिर में गुनाहगारों तक पहुँचते हैं यही सब इस बाल उपन्यास जिसे उपन्यासिका कहना बेहतर होगा की कहानी बनता है।
कहानी सीधी है और जहाँ घटनाए हो रही होती है वहीं सब रहस्यों के राज पता चल जाते हैं। हाँ, लेखक ने शक की सुई घुमाने के लिए एक किरदार का इस्तेमाल किया है जो कि रोचक रहता है। प्रेतों की हरकतें कई जगह जरूर विभत्स लगती हैं। वहीं दूसरी तरफ बाल एजेंट इस कहानी में असली प्रेतों से भी दो चार होते हैं जो कि मुझे रोचक लगा।
उपन्यास का कलेवर छोटा है और इसलिए रोचक है। हाँ, कथानक सरल है और तहकीकात तो बाल एजेंट करते हैं लेकिन वह इतनी रहस्यमय नहीं है। अगर थोड़ा दौड़ भाग आँख मिचौली इसमें होती तो बेहतर होता। अभी सीधे तरीके से निपट जाता है क्योंकि अपराधी खुद एजेंटों को अपने साथ ले जाते हैं और आपको पता होता है कि ये एजेंट उस पर भारी पड़ेंगे ही। अगर एजेंट खुद गुप्त ठिकाने तक पहुँचते तो बेहतर होता।
राजन इकबाल शृंखला (Rajan Iqbal Series) के उपन्यासों में मैने एक बात नोट की है कई बार राजन को इकबाल,सलमा और शोभा से ज्यादा जानकारी रहती हैं और वह बाद में इसे उजागर करता है। इस बार उसे बच्चे अपहृत होने की जानकारी तो होती है लेकिन इसके अलावा वह भी मामले से इतना ही अनभिज्ञ रहता है जितने की बाकी। ये देखना अच्छा था वर्ना कई बार ऐसा लगता है जैसे लेखक कुछ चीज पाठक से छुपा रहे हों और केवल फँसने पर उजागर करते हों।
चूँकि उपन्यास में इकबाल है तो हास्य भी उपन्यास में मौजूद है। इकबाल और सलमा की बहस हो या इकबाल की कॉमेडी दोनों ही पाठकों का मनोरंजन करती है।
अंत में यही कहूँगा कि बाल उपन्यास मांसभक्षी प्रेत (Mansbhakshi Pret) एक बार पढ़ा जा सकता है।
हाँ, आजकल के किशोर और बाल पाठक इतने जटिल कथानकों से दो चार हो गए हैं कि उन्हें ये पसंद आएगा या नहीं ये नहीं कह सकता। शायद आए या शायद न भी आए। कथानक में थोड़ा घुमाव होते तो यह और अधिक अच्छा बन सकता था। अभी इसकी कमी खलती है।
अगर आपने इस बाल उपन्यास को पढ़ा है तो इसके विषय में अपनी राय से हमें जरूर अवगत करवाइएगा।
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आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (30-03-2022) को चर्चा मंच "कटुक वचन मत बोलना" (चर्चा अंक-4385) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
पोस्ट को चर्चा अंक में शामिल करने हेतु हार्दिक आभार।
बहुत बढ़िया समीक्षा, विकास भाई।
जी आभार…
पुस्तक के बारे में जानकारी देती पोस्ट ।
सुंदर समीक्षात्मक।
लेख आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा। आभार।