किताब परिचय
धनक के सातों रंगों से बनी, सबसे अनोखी, भारतीय स्त्रियों पर लिखी आठ कहानियाँ संजोये आपके समक्ष प्रस्तुत है कहानी संग्रह ‘अग्निपाखी’। आठ अलग-अलग कहानियों में अपनी ज़िंदगी जीतीं, अलग-अलग चुनौतियों का सामना करतीं ‘अग्निपाखी’ की नायिकाएँ स्नेही, संवेदनशील बेटी, बहन, प्रेमिका, पत्नी, माँ और बहू हैं, पर इनके साथ वे ज्वालजयी स्त्रियाँ हैं, जिनकी अपनी पहचान है, जिनका अपना आसमान है। भारतीय स्त्री के अग्नि तत्व को समर्पित, ‘अग्निपाखी’।
संग्रह में निम्न कहानियाँ मौजूद हैं:
एक सार्थक मना, सेटल, कान्टैक्टस,अग्निपाखी, बगुला भगत, वापसी, ताजमहल, गठबंधन
किताब लिंक: अमेज़न | साहित्य विमर्श
पुस्तक अंश
आज राजधानी में मुख्यमंत्री ने अपने विश्वस्त अफसरों की एक विशिष्ट बैठक बुलाई थी। अवनीश पिछली शाम ही पहुँच गया था, ताकि मीटिंग से पहले सफर की थकान उतर जाए और वहाँ पोस्टेड अपने मित्रों से गपशप भी कर सके। शाम को ऑफिसर्स मेस में जमी महफ़िल में फिर कई मुद्दों पर चर्चा हुई। इसी दौरान पता चला कि मीटिंग, कुछ नये चेहरों से उनका परिचय कराने के लिये रखी गयी है, जिन्हें मंत्री जी की इच्छा पर अलग-अलग महत्वपूर्ण ओहदों पर या तो प्रमोट किया गया है या वे दिल्ली से किसी विशिष्ट कारण से बुलाए गये हैं।
अवनीश ने फिर अपने आकर्षण की धार को एक बार और घिसने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कई दिनों से अपने जिले में वह इस सुगबुगाहट को सुन रहा था कि कई अफसरों को पदोन्नति मिलने वाली है, कइयों को दिल्ली से डेपुटेशन पर बुलाया जाने वाला है। उसे ये भी सुनने में आ रहा था कि गृह सचिव के लिये मंत्री जी की नज़र किसी काबिल चेहरे को खोज रही है। हालाँकि रेस में कई नाम दौड़ रहे थे। अवनीश का पिछले ही साल प्रमोशन हुआ था और हाल-फिलहाल वह अपने प्रमोशन की उम्मीद तो नहीं ही कर रहा था। इसलिये उसका ध्यान बस इस बात पर था कि नये आने वाले अफसरों विशेषकर नये गृह सचिव पर, वह अपने व्यक्तित्व की छाप छोड़कर जाए। यह उसका स्वभाव था, वर्षों से महत्वपूर्ण लोगों से संबंध बनाकर और बढ़ाकर वह इस मुकाम तक पहुँचा था। राजस्थान के एक छोटे से गाँव के, एक छोटे से विद्यालय के, अध्यापक पिता और अनपढ़ माँ की पाँचवी संतान को बचपन में ही समझ आ गया था कि जीवन में यदि उसे कुछ बनना है, तो सिर्फ मेहनत और अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होना ही काफी नहीं। इसीलिये बचपन में अपने सरपंच के बेटे को अपना सबसे अच्छा मित्र बना, उसने शहर जाकर आगे पढ़ने के अपने सपने को साकार किया। बारहवीं अच्छे अंकों से तो उत्तीर्ण की ही, अपने राजपूत समाज के प्रधानाध्यापक से इतने अच्छे सम्बन्ध कर लिये कि उन्होंने न सिर्फ कॉलेज में दाखिले के लिये उसकी मदद कर दी, आगे उसकी सिविल सर्विस की तैयारी के लिये भी एक कोचिंग सेंटर में प्रबंध कर दिया। जब अवनीश ने अपने कॉलेज का गोल्ड मैडल लिया, उसके पिता से ज़्यादा उनका सीना गर्व से चौड़ा हो गया। पर अवनीश को अब नयी मंज़िल दिख रही थी। कॉलेज के दिनों में उसने अपने दो-तीन ‘रिसोर्सफुल’ शिक्षकों से भी प्रगाढ़ सम्बन्ध बना लिये थे और अपने समाज के विधायक से भी। सभी ने मिल जुलकर उसकी सहायता की और वह दिल्ली चला आया। दिल्ली विश्वविद्यालय में उसका दाखिला बड़े आराम से हो गया। हॉस्टल भी मिल गया। विधायक जी ने कह-सुनकर अपने राज्य की एक स्कॉलरशिप का भी इंतज़ाम उसके लिये करा दिया। पहला साल उसने खुद ही पढ़ कर निकाला और इसी बीच विश्वविद्यालय के स्टूडेंट यूनियन के कुछ लोगों से अपने सम्बन्ध बनाये और बढ़िया बनाये । अगले साल से उसकी कोचिंग का भी इंतज़ाम हो गया। हर कदम अपनी मेधा को अपनी चतुराई के सहारे वह नये मुकाम तक पहुँचाता गया। अगले तीन सालों में उसने सिविल्स में अपने लिये जगह बना ही ली। पोस्टिंग हालाँकि सुदूर दक्षिण में मिली थी उसे, पर ‘कॉन्टैक्ट’ की अपनी चमत्कारी छड़ी के सहारे उसने न केवल अपनी पोस्टिंग बदलवा ली, अपनी कमज़ोर पारिवारिक पृष्ठभूमि पर उसने नयी -नवेली आए.ए.एस. बीवी और उसके धनाढ्य परिवार का पर्दा सदा के लिये डाल दिया। इतने वर्षों में फिर न उसने अपने उस गरीब परिवेश की ओर झाँका, न उन लोगों की ओर, जिन्होंने उसे अपने कंधे पर बिठा, सफलता के दरवाज़े तक पहुँचाया था। उसके माँ-बाप किसी दिन अपने राजा बेटे की रियासत देखने की बाट जोहते-जोहते ही चल बसे। भाई-बहनों की बोल-चाल और कपड़े-लत्तों से दिखती, उनकी आर्थिक स्थिति की झाँकी को देख, उसने उनसे भी दूरी बना कर रखी। यह उसकी स्वभावगत विशेषता थी। जब तक कोई व्यक्ति उसके किसी काम का होता, तब तक वह उसके संपर्क में रहता। फिर बड़े आराम से वह उनसे कब छिटक जाता, यह वे जान ही नहीं पाते। फिर कुछ तो उसके ओहदे और कुछ उसके मेहनती स्वभाव के चलते लोगों को लगता कि वह बेचारा चाह कर भी उनके लिये समय ही नहीं निकाल पा रहा। और इस तरह वह संबंधों को ‘कॉन्टैक्ट्स’ की अपनी मोटी डायरी में दफ़न करता जाता। जिन संबंधों की उसे ज़रुरत पड़ती, उन्हें बड़े आराम से वह फिर अपनी गर्मजोशी का काढ़ा पिला जीवित कर लेता।
अब उसका अपना राजसी परिवेश था, संसार था, मित्र थे, ‘कॉन्टैक्ट्स’ थे। लोग उसकी सफलता का श्रेय उसकी कड़ी मेहनत को ही देते रहे हैं, यह बात अलग है कि अपनी सफलता के इस असली राज़ को उसने आज तक कभी किसी के सामने ज़ाहिर नहीं होने दिया था। अब जबकि वह बहुत कुछ हासिल कर चुका था, अपने इस चमत्कारी मन्त्र को कैसे छोड़ता?
किताब लिंक: अमेज़न | साहित्य विमर्श
लेखक परिचय
डॉक्टर अंशु जोशी विश्व प्रसिद्ध जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के कनाडा, अमेरिका तथा लैटिन अमेरिका अध्ययन केंद्र, अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध संस्थान में सहायक प्राध्यापक हैं। वे यहीं के कूटनीति तथा निशस्त्रीकरण केंद्र से डॉक्टरेट हैं। अपने विषय के अलावा विभिन्न समसामयिक मुद्दों पर लिखे उनके सौ से भी अधिक लेख प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय तथा राष्ट्रीय शोध जर्नल्स, समाचार पत्रों तथा पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं।
अब तक उनका एक उपन्यास जे एन यू में एक लड़की थी प्रकाशित हो चुका है। उपन्यास हिंदी में तो पसंद किया ही गया था साथ में यह उपन्यास गुजराती में भी अनुवाद हुआ था जिसे गुजराती पाठकों द्वारा काफी सराहा गया था। अग्नि पाखी उनका पहला कहानी संग्रह है।
लेखन के अलावा अंशु जोशी लंबे समय तक आकाशवाणी के एफएम गोल्ड चैनल के साथ प्रेजेंटर के रूप में भी जुड़ी हैं। उन्होंने टीसीएस, टेक महिंद्रा जैसी कंपनियों के साथ भी कार्य किया है।
नोट: ‘किताब परिचय’ एक बुक जर्नल की एक पहल है जिसके अंतर्गत हम नव प्रकाशित रोचक पुस्तकों से आपका परिचय करवाने का प्रयास करते हैं। अगर आप चाहते हैं कि आपकी पुस्तक को भी इस पहल के अंतर्गत फीचर किया जाए तो आप निम्न ईमेल आई डी के माध्यम से हमसे सम्पर्क स्थापित कर सकते हैं:
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