एक बुक जर्नल प्रतियोगिता #1- वेलाराम देवासी की प्रविष्टि

एक बुक जर्नल की  प्रतियोगिता #1 में हमें आपसे एक लेख की दरकार थी। प्रतियोगिता के लिये प्रविष्टियाँ आना शुरू हो गयी हैं। आज पढ़िए वेलाराम देवासी की प्रविष्टि। वेलाराम देवासी भटाणा राजस्थान के रहने वाले हैं और उन्होंने हमसे उन किताबों की सूची साझा की है जिन्हें उनके अनुसार उतनी प्रसिद्धि और उतना व्यापक पाठकवर्ग नहीं मिला जिसके वो हकदार थीं।

आइये पढ़ते हैं उनका लेख:

नमस्कार मित्रो, मेरा नाम वेलाराम देवासी है। मै भटाणा, राजस्थान का रहने वाला हूँ। आज मै 5 ऐसे उपन्यासो के विषय मे बताने जा रहा हूँ–जो न तो बहुचर्चित हैं,न किसी बड़े लेखक के नाम से जाने जाते है और न ही उनकी लाखो करोड़ों प्रतियाँ बिकी हैं।

फिर भी ये 5 कृतियाँ पाठक का भरपूर मनोरंजन करने के साथ उसके मन-मस्तिष्क पर अमिट छाप छोड़ने का पूरा दायित्व निभाती हैं।

इन पाँच उपन्यासो का वर्णन निम्न है–

1. दुक्खम-सुक्खम – ममता कालिया

ये बेहद रोचक और दिलचस्प पारिवारिक उपन्यास है। इसका कथानक वृंदावन क्षेत्र मे स्थापित है।

कविमोहन का विवाह इन्दुमति से होता है। इन्दुमति लगातार दो बेटियों को जन्म देती है। दूसरी बेटी होने पर उसके सास, ससुर और ननद नाराज हो जाते हैं और इन्दुमति के साथ रूखा व्यवहार करने लगते है।

एक मध्यमवर्गीय परिवार में  होने वाली सारी हलचल इस उपन्यास में सहजता से वर्णित की गयी है।

उपन्यास की वर्णन शैली इतनी दिलचस्प है कि पढ़ते समय मैं शुरु से ही ऐसा चिपक गया था कि अंत तक उचटने का मन नहीं हुआ। इसकी भाषा और नाटकीयता इस तरह सम्मोहित कर लेती है कि सारे दृश्य जहन मे साकार हो जाते है।

मुझे ये उपन्यास बहुत अच्छा लगा। इसे पढ़कर प्रेमचंद की ‘गोदान’ और ‘निर्मला’ की याद आ गई।

ममता कालिया जी का यह उपन्यास प्रेमचंद जी के उपन्यासो की तरह ही पठनीय और विचारणीय है।

इसके सारे किरदार मुझे बहुत पसंद आए—एक लाला नत्थीमल जो कंजूस दुकानदार है और तानाशाह प्रवृति का गृहमालिक होने के बावजूद बहू के साथ नर्मदिली से पेश आने वाला ससुर है। भग्गो, इन्दुमति की एक बड़बोली और झगड़ालू ननद है। संकोची बहू इन्दुमति, नपा तुला व्यवहार करने वाली सास विद्यावती और अन्तर्मुखी स्वभाव वाला कविहृदय व्यक्ति कविमोहन है।

ये सारे किरदार आम जिंदगी से उठाये गये है जो असली भी लगते है और रोचक एवं दिलचस्प भी है।

कुल मिलाकर उपन्यास मुझे मनोरंजक लगा और इसकी मधुर याद मेरे दिल और दिमाग मे बसकर रह गई।

2. गोली  – चतुरसेन शास्त्री

ये उपन्यास एक ‘गोली’ की व्यथा कथा है। राजस्थान में  सामन्तयुग के समय ‘गोला गोली’ की एक प्रथा थी। राजा महाराजाओं के विवाह पर गोले और गोलियो को दहेज में  दिया जाता था जो आजीवन उनके सेवक और वफादार बनकर रहते थे।

प्रस्तुत उपन्यास में  एक शादीशुदा गोली को राजा द्वारा अपनी पलंग सेविका बनाने की कहानी है। जिसमे गोली पर सिर्फ राजा का अधिकार रहेगा, उसके पति का भी नही। गोली अपनी जुबानी अपना दुख बताती है और अपनी माँ का भी जिक्र कहती है जो इसी व्यथा से गुजरी है।

हालाँकि अब ये प्रथा विलुप्त हो चुकी है, फिर भी पूर्णतः विलुप्त नहीं  हुई। गोले जाति के लोग आज भी ठाकुरों की जी हुजूरी करते हैं। हमारे गाँव में भी गोलो के कई परिवार रहते है जो अपने आपको राजपूत मानते है। हालाँकि मानना भी चाहिए क्योंकि इतनी पीढीयो तक राजपूतो की सेवा की तो इन्हे भी राजपूती का तमगा तो मिलना ही चाहिए।

वास्तविकता पर आधारित होने के कारण मुझे ये उपन्यास काफी रोचक और हैरतअंगेज लगा। ये मेरे द्वारा पढ़े गये स्मरणीय उपन्यासो की सूची मे शामिल है।

3. आनंदमठ- बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय

सन् 1773 के आसपास बंगाल की जनता पर दोहरी मार पड़ती है–एक तो भयंकर अकाल पड़ता है और उस पर नवाबो द्वारा लगातार मालगुजारी लेते रहना। जनता आतंक और भूखमरी से त्राहि त्राहि करने लगती है। ऐसे में  आनंदमठ नामक आश्रम के सन्यासियों भवानन्द आदि द्वारा जनता को एकजुट करके क्रूर शासको के खिलाफ सशस्त्र जंग की जाती है।

भारत का राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम’ इसी उपन्यास से लिया गया है। आपदा के समय लोगो की हालत लेखक ने जो बयान की है वो दिल को छू जाती है–

“पहले लोगो ने भीख मांगना शुरू किया, इसके बाद कौन भिक्षा देता है? उपवास शुरू हो गया। फिर जनता रोगाक्रांत होने लगी। गो, बैल, हल बेचे गये, बीज के लिए संचित अन्न खा गये, घर-बार बेचा, खेती-बारी बेची। इसके बाद लोगो ने लड़कियाँ बेचना शुरू किया, फिर लड़के बेचे जाने लगे, इसके बाद गृहलक्ष्मियो का विक्रय प्रारंभ हुआ। लेकिन इसके बाद लड़की, लड़के, औरतें कौन खरीदता? बेचना सब चाहते थे लेकिन खरीददार कोई नहीं।खाद्य के अभाव मे लोग पेड़ों के पत्ते खाने लगे, घास खाना शुरू किया, नरम टहनियाँ खाने लगे। छोटी जाति की जनता और जंगली लोग कुत्ते, बिल्ली, चूहे खाने लगे। बहुतेरे लोग भागे, वे लोग विदेश मे जाकर अनाहार से मरे। जो नही भागे,वे अखाद्य खाकर, उपवास और रोग से जर्जर हो मरने लगे।”

इस उपन्यास ने मेरे जेहन मे एक हृदयस्पर्शी छाप अंकित की और इसे पढ़ना मेरे लिए एक अविस्मरणीय अनुभव रहा।

4. दिव्या -यशपाल 

यह बौद्धकाल की पृष्ठभूमि पर आधारित काल्पनिक उपन्यास है। इसकी वर्णनशैली और भावप्रवाह इतना सशक्त है कि पढ़ते समय ऐसा अनुभव होता है कि जैसे टाईम मशीन में बैठकर 2500 साल पीछे के समय में चले गये हो। अनाथ दिव्या को दासी धाता पाल पोसकर बड़ी करती है। सयानी होकर दिव्या दासीपुत्र पृथुसेन से प्रेम करती है और गर्भवती हो जाती है। पृथुसेन द्वारा युद्ध मे जाने पर दिव्या अपनी सहेली के साथ बाहर टहलने जाती है तो एक वृद्धा अपने घर मे आश्रय देने का बहाना बनाकर दिव्या और उसकी सहेली को एक पुरोहित के हाथों बेच देती है।

आगे क्या होता है? ये तो आप उपन्यास पढ़कर ही जान सकेंगे। 

काल्पनिक होने के बावजूद लेखक ने इसे बौद्धकाल के समय मे इस तरह स्थापित किया है कि यह यथार्थ लगता है।

यशपाल जी का ये उपन्यास अनेक कारणो से पढ़ने लायक है। और मेरे द्वारा पढ़े गये अंडररेटेड उपन्यासो की सूची मे शामिल होने का पूरा माद्दा रखता है।

5. वैशाली की नगरवधू – आचार्य चतुरसेन शास्त्री

बौद्ध भिक्षुणी अंबपाली भिक्षुणी बनने से पहले वैशाली नगर की नगरवधू थी। उससे भी पहले एक साधारण सिपहसालार की पुत्री थी। प्रस्तुत उपन्यास अंबपाली के वैशाली की नगरवधू , और उसके बाद भिक्षुणी बनने की कहानी दर्शाता है।

उपन्यास मे तत्कालीन ऐतिहासिक तत्त्वो का समावेश है। वैशाली गणराज्य की उस समय की स्थिति और व्यवस्था को लेखक ने बहुत ही सजीव और जीवंत अंदाज मे प्रस्तुत किया है।

अक्सर विद्वानो का मानना है कि ऐतिहासिक उपन्यास लिखना एक चुनौती है। इसमे या तो उपन्यास मर जाता है या इतिहास मर जाता है। क्योंकि नाटकीयता रचने के कारण इतिहास तत्त्व की हानि होती है और इतिहास का सटीक वर्णन करने से उपन्यास तत्त्व के साथ छेड़खानी होती है। परन्तु आचार्य चतुरसेन जी ने अपनी सशक्त लेखनी से इन दोनो खाईयो को पाट दिया और इतिहास और उपन्यास दोनो के साथ पूरा न्याय किया। 

ये उपन्यास हिन्दी के नायाब रचना रत्नो में शुमार किया जाना चाहिए।

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अब इन उपन्यासो के मुझ तक पहुँचने की दास्तान सुनाता हूँ। मैंने अलग अलग इसलिए नही कहा क्योंकि इन सभी के मुझे उपलब्ध होने की कहानी कॉमन ही है। ऊपरवर्णित आचार्य चतुरसेन जी के दोनो उपन्यास ‘गोली’ और ‘वैशाली की नगरवधू’ पढ़ने के लिए मैं काफी समय से लालायित था, लेकिन मुझे ये इंटरनेट पर कहीं नहीं मिले। बुक स्टॉल जाकर किताब खरीदने का समय नहीं था और घर बैठे किताब मंगाने की उस समय जानकारी नही थी। इसलिए मैंने यूट्युब से इन दोनो उपन्यासो को ऑडियो वर्शन मे डाउनलोड किया और एकांत मे बैठकर इत्मीनान से सुना।

हालाँकि पढ़ना और सुनना तो एक ही बात है। और हमारे देश मे कहानियाँ सुनने की प्रथा कहानियाँ पढ़ने की प्रथा से ज्यादा पुरानी है क्योंकि हम सब दादा-दादी की कहानियाँ सुनकर ही तो बड़े हुए हैं।

खैर,बाकी के तीनो उपन्यास ‘दुक्खम-सुक्खम’, ‘आनंदमठ’ और ‘दिव्या’ को मैने इंटरनेट पर ही पढ़ा था। मुझे दुख इस बात का है कि मै इन पाँचो नायाब किताबो को कागज के पन्ने पर नहीं पढ़  सका और खुशी भी इस बात की है कम से कम मैने इन किताबो को सुना या पढ़ा तो अवश्य ही है।

ऊपर वर्णित उपन्यासो को वो ख्याति और पहचान न मिल पाई, जिसके वे हकदार थे। ये सभी नायाब साहित्यिक कृतियाँ है। मै प्रत्येक हिन्दीभाषी पाठक को ये पाँचो उपन्यास पढने का सुझाव देता हूँ।

वेलाराम देवासी,
राजस्थान
संपर्क-8000590360

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लेख में जिन किताबों का जिक्र है उन्हें अगर आप चाहें तो निम्न लिंक्स पर जाकर खरीद सकते हैं:
दुक्खम – सुक्खम – पेपरबैक 
गोली – आचार्य चतुरसेन शास्त्री – किंडल, पेपरबैक
आनंदमठ – बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय –  किंडल, पेपरबैक 
दिव्या – यशपाल – किंडल, पेपरबैक 
वैशाली की नगरवधु – किंडल, पेपरबैक

तो यह था प्रतियोगिता के लिए वेलाराम देवासी का लेख। लेख आपको कैसा लगा यह हमें जरूर बताईयेगा। क्या आपने इन पुस्तकों को पढ़ा है? अगर हाँ, तो अपने विचारों से हमें जरूर अवगत करवाईयेगा।  

अगर आप भी प्रतियोगिता में भाग लेना चाहते हैं तो आप भी हमें अपना लेख निम्न ई मेल पते पर ई मेल कर दीजिये:

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लेख भेजने से पहले प्रतियोगिता में आपको किस तरह का लेख भेजना है इसकी जानकारी आप निम्न लिंक पर जाकर एक बार अवश्य पढ़िएगा :
एक बुक जर्नल प्रतियोगिता #1

आपके लेखों का हमें इन्तजार रहेगा। याद रखें लेख भेजने की अंतिम तिथि 30 सितम्बर 2020 है।


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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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12 Comments on “एक बुक जर्नल प्रतियोगिता #1- वेलाराम देवासी की प्रविष्टि”

  1. पांचों किताबें अच्छी हैं, परंतु इनके लेखक भी लोकप्रिय हैं और किताबें भी ।

    1. जी सही कहा। ये लेखक के अपने विचार हैं। उन्हें शायद ऐसा लगता हो कि इन्हें और लोकप्रिय होना चाईए था।

  2. पहली प्रविष्टि का स्वागत है. किताबों के बारे में भी संक्षेप में सटीक बताया किन्तु ये किताबें और लेखक तो अतिचर्चित रहे हैं और इनकी ये किताबें भी जब भी आचार्य चतुरसेन, यशपाल, बंकिम की चर्चा होती है – इन किताबों की अवश्य ही होती है. वैशाली की नगरवधू, गोली और आनन्दमठ साहित्यिक हलकों से लेकर आम पाठकों में लोकप्रिय रही हैं. किशोरावस्था में पढ़ीं और आज तक पर्याप्त चर्चित हैं.

    1. जी आपकी प्रविष्टि का इन्तजार रहेगा।

  3. बहुत बढ़िया शुरुआत ..इनमें से आचार्य चतुरसेन की गोली और वैशाली की नगरवधू ,बंकिमचंद्र की आनन्दमठ पढ़ी हुई हैंं । लेकिन बहुत सी ऐसी किताबें जो पढ़ी जानी चाहिए लेकिन किन्हीं किरणों से लोकप्रियता की पायदान पर नहीं आ पाई उनकी लोकप्रियता ऐसे प्रयासों से बढ़ेगी ।

    1. जी आभार। प्रतियोगिता का ध्येय ही यही है कि किताबों को बढ़ावा मिलेगा। अगर हो सके तो आप भी प्रविष्टि भेजिएगा।

    1. जी चर्चा में मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए आभार।

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