संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: पेपरबैक
पृष्ठ संख्या: 32
प्रकाशक: राज कॉमिक्स
कथा एवं चित्र – अनुपम सिन्हा, सम्पादक – मनीष चन्द्र गुप्त
आई एस बी एन:
श्रृंखला: सुपर कमांडो ध्रुव #8
रूहों का शिकंजा |
कहानी:
भारत के पड़ोसी देश मापाल के राष्ट्रपति मानवेन्द्र जब भारत आये तो उनके आने का मकसद राजनीतिक न होकर व्यक्तिगत था। मानवेन्द्र की तबियत बहुत खराब चल रही थी। मानवेन्द्र की माने तो उन्हें उनके पिता और उनकी पत्नी की रूहों ने परेशान कर रखा था।
इन रूहों की ख़ास बात यह थी कि यह रूहे केवल उन्हें ही दिखाई देती थी जिस कारण लोग उनकी दिमागी हालत पर शक करने लगे थे।
मानवेन्द्र खुद भूत प्रेतों पर विश्वास नहीं करते थे और उनका अंदेशा था जरूर हो न हो यह किसी दुश्मन की चाल थी।
मानवेन्द्र को पूरा यकीन था कि अगर भारत के प्रधानमन्त्री, जो की उनके दोस्त भी थे, राजी हो जाए तो ध्रुव की मदद से वो इस षड्यंत्र से पर्दा उठा सकते थे।
क्या वाकई मानवेन्द्र किसी षड्यंत्र के शिकार थे? क्या सुपर कमांडो ध्रुव इस षड्यंत्र को रचने वाले व्यक्ति की पहचान को उजागर कर पाया? आखिर इन रूहों का क्या रहस्य था?
ऐसे ही कई सवालों के जवाब आपको इस कॉमिक को पढ़ने के बाद मिलेंगे।
मेरे विचार:
क्या आत्माएं होती है? क्या मरने के बाद भी जीवन है? यह ऐसे प्रश्न हैं जिनके उत्तर सदियों से इनसान ढूँढते आया है लेकिन कुछ निश्चित जवाब उसे नहीं मिल पाया है। कई लोग हैं जो इनके अस्तित्व को मानते हैं और कई लोग हैं जो इनके अस्तित्व को नकारते हैं। आत्माओं के नाम पर ठगी के भी कई किस्से आपको गाहे बगाहे मिलते रहते हैं जिसके कारण अधिकतर लोगों को लगता है कि शायद आत्माएं नहीं होती हैं। सबकी अपनी धारणाएं लेकिन निश्चित तौर पर शायद ही कोई कुछ कह सकता है।
अनुपम सिन्हा जी द्वारा लिखी यह कथा भी इसी प्रश्न के चारों और लिखी गयी है। कहानी में कुछ आत्माएँ हैं और उनके रहस्यों का पता लगाता ध्रुव है।
कॉमिक्स शुरू से लेकर आखिर तक रोचक है। रहस्य बना रहता है और षड्यंत्र करने वाले का पता लगाना कठिन है। कहानी में कहीं भी कोई प्लाट होल नहीं है और लगभग सभी प्रश्नों के उत्तर आपको कहानी के अंत में मिल जाते हैं। कॉमिक्स के मामले ऐसा अक्सर कम होता है। कॉमिक्स का जिस प्रकार अंत किया गया वो भी मुझे अच्छा लगा।
बचपन की सादगी लिया हुआ यह कॉमिक सुन्दर, सरल और रोमांचक है। कॉमिक पढ़ते हुए मेरी बचपन की यादें ताज़ा हो गयी।
मुझे यह कॉमिक्स पसंद आया।
रेटिंग: 4/5
अगर आपने इस कॉमिक को पढ़ा है तो आपको यह कैसा लगा? मुझे कॉमेंट्स के माध्यम से आप अपने विचारों से अवगत करवा सकते हैं।
अगर आपने इसे नहीं पढ़ा है तो पढ़ना चाहते हैं तो इसे निम्न लिंक पर जाकर मँगवा सकते हैं:
अमेज़न
राज कॉमिक्स
कुछ प्रश्न:
प्रश्न 1 : ध्रुव की वो कौन सी पाँच कॉमिक्स हैं जिन्हें आप मुझे पढ़ने की सलाह देंगे?
प्रश्न 2 : क्या आप आत्माओं पर विश्वास करते हैं? अगर हाँ, तो क्या आपको इनका अनुभव हुआ है?
सुपर कमांडो ध्रुव के दूसरे कॉमिक्स जो मैंने पढ़े हैं उनके प्रति मेरी राय आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
सुपर कमांडो ध्रुव
राज कॉमिक्स की दूसरी कॉमिक्स के प्रति मेरी राय आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
राज कॉमिक्स
© विकास नैनवाल ‘अंजान’
मैने राज कॉमिक्स के कुछ ही कॉमिक्स पढ़े है।
मैं मुंबई मे रहता हूँ और यहा दुकानों मे राज कॉमिक्स अब लुप्त हो चुके है।
बचपन मे तो दिख भी जाते थे, पर माता-पिता उन्हें पढ़ने नही देते थे।
काफी ढूंढने पर मुझे एक सेकंड हैंड विक्रेता से कुछ कॉमिक्स मिली थी।
उनमे 2 हॉरर सस्पेंस थ्रिलर श्रृंखला की थी।
वही 2 नागराज और सुपर कमांडो ध्रुव की खास श्रृंखला नागायण की थी।
हॉरर सस्पेंस थ्रिलर श्रृंखला ठीक थी, वही नागायण पड़ना मेरे लिए मुश्किल हो गया था।
पढ़ते समय मैं एक काफी सख्त नियम का प्लान करता हूँ, जो है कि कहानी कितनी भी बेकार क्यों न हो, उसे पूरा खत्म जरूर करना।
नागायण ने मुझे मजबूर लगभग मजबूर कर दिया यह नियम तोड़ने के लिए।
मेरी मुख्य परेशानी थी असंख्य संवाद।
ऐसे मैने काफी तारीफ़ सुनी है नागायण शृंखला की,
और शायद मेरा टेस्ट आपसे अलग है, एक बार पढ़कर देखिएगा।
यह श्रृंखला स्टैंड एलोन है। इसमे नागराज और कमांडो ध्रुव के पूर्व के कॉमिक्स के कुछ रेफेरेंस है, पर उन्हें भी समझा दिया गया है।
रही बात भूतों कि, तो इस मामले मे मैं बीच मे कही हूँ।
जी नागायण पढ़ने की मेरी भी इच्छा है लेकिन मुझे अभी पक्का पता नही है कि वो श्रृंखला समाप्त हुई है या नहीं। राज कॉमिक्स की दिक्कत यह है कि श्रृंखला शुरू तो कर देते हैं लेकिन खत्म नहीं कर पाते। मुंबई में कॉमिक्स की दिक्कत तो है। मैं तीन साल(2012- 2015) मुंबई रहा था। उस वक्त राज कॉमिक्स के ऑनलाइन स्टोर से ही कॉमिक्स मँगवाता था। कभी कभी अमेज़न से भी मँगवा लेता था। वैसे चर्च गेट स्टेशन और वी टी स्टेशन पर मिल जाती थी कॉमिक्स भी।
हाँ, आत्माओं और भूतों के मामले में मेरा भी कुछ ऐसा ही है। बीच का।कभी कुछ ऐसा घटित हो जाता है कि विश्वास हो जाता है और कभी सब मन का वहम लगता है।
जी जितना मुझे पता है उस हिसाब से नागायण खत्म हो चुका है केवल 9 भागो का ही है।
वाह!! फिर तो उसे एक बार जरूर पढ़ना चाहूँगा। जल्द ही पढ़ता हूँ।
बचपन से काॅमिक्स पढने की रूचि रही है। बहुत से काॅमिक्स पढे हैं पर अब नाम से याद नहीं।
मैं दो काॅमिक्सों का अवश्य जिक्र करूंगा दोनों पार्ट हैं।
1. मैंने मारा ध्रुव को
2. हत्यारा कौन?
दो पार्ट में लिखी गयी यह बहुत रोचक काॅमिक्स है।
धन्यवाद।
-गुरप्रीत सिंह
जी मैंने इन दोनों को ही पढ़ा है। उस वक्त इन्हें पढ़कर मुझे बहुत मजा आया था। मुझे याद है मैं उन दिनों अपने घर से दिल्ली सर्दियों की छुट्टियों में आया था और नानी के घर छत में धूप का आनन्द लेते हुए इस श्रृंखला को पढ़ा था। अद्भुत अनुभव था।
किरगी का कहर, सुपर कमांडो ध्रुव और नागराज , प्रतिशोध की ज्वाला यही नाम याद आ रहे हैं अभी..वैसे गुरप्रीत सिंह जी वाली बुक्स भी बेहद अच्छी हैं ।
आत्माओं के बारे में बहुत सुना और पढ़ा है । इस अवधारणा को मनौवैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर नकारने का मन करता है तो कभीकभार की देखी-सुनी घटनाओं पर मन मानता भी है ।
किरिगी का कहर बेहतरीन है। यह भी मैंने पढ़ा हुआ है। जल्द ही दुबारा पढूँगा। आत्माओं के ऊपर आपके विचारो से सहमत हूँ। कुछ व्यक्तिगत अनुभव भी ऐसे रहे हैं कि मानने का दिल करता है लेकिन अगर मानने लगो तो फिर रात में निकलना दूभर हो जाये। वैसे कई बार तो लगता है शहरों में आते जाते हमे आत्मा दिखेगी भी तो हमे पता कैसे चलेगा। गाँव या कस्बों में रहते थे तो कम से कम मालूम होता था कौन जीवित है या नहीं। इसलिए मृत व्यक्ति दिखे तो लग जाता था कुछ गड़बड़ है। शहरों में दिखे भी तो पता ही न होगा। हा हा हा।
काफी पहले पढ़ा था. रोचक कहानी है, लेकिन आखिरी दृश्य में लेखक जबरन हमें आत्माओं के अस्तित्व पर विश्वास दिलाने की कोशिश करता है. मूर्ति का गिरना संयोग भी हो सकता था.. लेकिन…
जी वो बिंदु मुझे खूबसूरत लगा। इसीलिए मैंने लेख में विशेषकर अंत का जिक्र किया था। मूर्ती वाली बात स्पोइलेर हो सकती थी तो मैंने केवल अंत लिखकर ही अपनी बात रख दी। दुनिया में कई ऐसी चीजें हैं जिनकी हम व्याख्या नहीं कर सकते हैं। इसलिए सम्भावनाओं से इनकार नहीं कर सकते हैं। लेकिन ने उसी सम्भावना को दर्शाया है जो कि शायद एक तरह की उम्मीद जगाती है।इनसान इसी उम्मीद के सहारे तो जीता है।