रंग महल के प्रेत – राज भारती

 उपन्यास नवम्बर 18,2018 से नवम्बर 23,2018 के बीच पढ़ा गया

संस्करण विवरण:

फॉर्मेट:
पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 255 | प्रकाशक: रवि पॉकेट बुक्स

रंग महल के प्रेत - राजभारती
रंग महल के प्रेत – राजभारती 

पहला वाक्य:
धांय! धांय! धांय!
बन्दूक के घोड़े तीन बार खींचे गये थे।

गजेन्द्र पाण्डे इलाके का बाहुबली नेता था। पूरे इलाके में उसका दबदबा था। उसके समक्ष जो सिर उठता वो उसका सिर कुचल देता था। अब उसके सामने अमन प्रधान था।

अमन प्रधान ने गजेन्द्र के खिलाफ उठने की कोशिश की थी। उसने गजेन्द्र पाण्डे के बेटे के खिलाफ गवाही देने की कोशिश की थी। इसकी सजा तो मिलनी ही थी। और सजा मिली भी।

अमन ने खुद को अपनी माँ के खून के इल्जाम में जेल में पाया।

अब अमन के जीवन का केवल एक ही उद्देश्य था। और वो था बदला। पर उसे यह भी मालूम था कि अब वह उम्र भर के लिए जेल में ही था। और यह बदला केवल एक स्वप्न बनकर रहने वाला था।

लेकिन फिर एक उम्मीद की किरण उसे नज़र आई। जेल में उसे नागेश उर्फ़ कोबरा मिला। जेल के सभी लोग नागेश से डरते थे। उनका मानना था कि नागेश काली शक्तियों का स्वामी था। एक तांत्रिक था जो कुछ भी करने में सक्षम था और वक्त काटने के लिए जेल में आता था।

वहीं हालात ऐसे बने कि नागेश ने अमन को अपना शागिर्द बनाना कबूल कर दिया। नागेश का कहना था कि इन शक्तियों के बल पर वो अपना स्वप्न पूरा कर सकता था। लेकिन नागेश की भी कुछ शर्तें थी और अमन को वह माननी थी।


आखिर कौन था यह नागेश? क्या वो सचमुच में एक तांत्रिक था?
अमन प्रधान जेल में कैसे पहुँचा? क्या वो अपना बदला ले पाया?
अपने बदले के लिए उसे नागेश के साथ किस तरह के समझौते करने पड़े? 

ऐसे ही कई सवालों का जवाब आपको इस उपन्यास को पढ़कर प्राप्त होंगे।


मुख्य किरदार:
अमन प्रधान – एक एलएलबी का छात्र
गजेन्द्र पाण्डे – इलाके का विधायक
गौरांग पाण्डे – गजेन्द्र पाण्डे का बेटा
बंसी बाबा – जेल का एक कैदी जिसके साथ अमन की दोस्ती हुई थी
नागेश उर्फ़ कोबरा – एक कैदी जिसके विषय में मशहूर था कि वह काले जादू का जानकार है
शिवा – अमन के नये फ्लैट में उसका पड़ोसी
फरजीना – एक मिश्री औरत जिसे शिवा और अमन ने ईरोज क्लब में देखा था
सोनाली लाम्बा – एक व्यापारी की बेटी जो शिवा की परिचित थी और जो आजकल फरजीना के साथ थी
हर्षद लाम्बा – सोनाली के पिता
मिसेज हर्षद लाम्बा – सोनाली की माँ
पारो देवी – एक तांत्रिक
पूर्णी – एक काली शक्ति
सुल्तान सिंह – हरिपुर का एक व्यापारी
सपना – सुल्तान सिंह की छोटी बेटी
स्वामी मुरली शाह – एक धर्म गुरु
माला देवी – एक समाज सेविका
राम सिंह – एक ड्राईवर जिसे अमन के लिए माला देवी ने चुना था
गोपाल मेहता – पुलिस में एस पी
शीला रानी – एक तबायफ
नील कमल – एक लड़की जिसे अमन पसंद करने लगा था
राधेलाल – शीला रानी का आदमी
मेनकॉन – एक तांत्रिक
शक्ति – मेनकॉन का आदमी
भीमा – मेनकॉन का पहरेदार
राधिका बोस – मेनकॉन की एक बंधक
सोनिया – मेनकॉन की एक बंधक

सबसे पहले तो यह बता देना उचित है यह उपन्यास दो भाग में पूरा होता है। ‘रंग महल के प्रेत’ से जो कहानी शुरू होती है वह ‘प्रेत मण्डली’ में जाकर समाप्त होती है। इसलिए मेरी राय यही रहेगी की अगर आप इस उपन्यास को खरीदें तो इसके दूसरे भाग को भी लेने की कोशिश करें।

उपन्यास की बात करूँ तो काफी अरसे बाद मैं राज भारती जी के उपन्यास को पढ़ रहा हूँ। इससे पहले शंखनाद पढ़ा था जो कि 2017 में था। रंग महल के प्रेत से पहले प्रेत को सलाम करो शुरू तो किया था लेकिन किसी वजह से वो पूरा नहीं कर पाया। अब वह उपन्यास घर पर पड़ा है तो घर जाऊँगा तो उसे पूरा करूँगा। खैर, चूँकि काफी समय बाद राजभारती के उपन्यास को पढ़ रहा था तो उत्साहित था। मुझे वैसे भी हॉरर,भूत प्रेत, और ऐसी अलौकिक शक्तियों को दर्शाने वाले उपन्यास पढ़ने में मजा आता है।

रंग महल के प्रेत के उपन्यास की शुरुआत ही रोमांचक है। बदला लेने के चक्कर में उपन्यास का नायक परिस्थितिवश काले जादू की दुनिया में दाखिल हो जाता है। उसके बाद उसके जीवन में ऐसी ऐसी घटनाएं होती हैं जो पाठक को रोमांच से भर देती हैं। अपने गुरु के कहने पर वह बदले की राह से अलग होकर एक सफर पर निकल पड़ता है। उपन्यास में अमन एक के बाद एक अलग अलग चीजों से टकराता है। कभी उसके जीवन में खून चूसने वाली डायन आती है, तो कभी एक तांत्रिक जो कि उसे प्रेत मण्डली का सदस्य बनाती है। कभी कोई बाबा मिलता है और कभी प्रेत मिलते हैं। आखिर में वह एक ऐसी अनोखी दुनिया में खुद को पाता है जिसकी रचना एक बड़े तांत्रिक ने की है।  इन सब जगहों में अमन के साथ जाने में मुझे तो काफी मजा आया। उनका इन सब से टकराव रोमांच पैदा कर देता है। ऐसा लगता है आप एक रोमांचकारी सफर पर निकले हो।

उपन्यास में ऐसे दृश्यों की भरमार है जिनको अगर आप अपने समक्ष होते हुए देखेंगे तो शायद आपके रोंगटे खड़े हो जायेंगे।  उदाहरण के लिए यह दृश्य देखिये:

फिर उसने उसे आगे की तरफ घसीटा और अमन ने दुनिया का सबसे भयानक दृश्य देखा। उसने सबसे पहले पारो की एक आँख अपने दाँतों से निकाल ली थी और उसे कुत्ते की तरह चप-चप चबाने लगा था। पारो की आँख से खून का फव्वारा निकल रहा था और वो दहशत से हाथ पाँव मार रही थी, चीख रही थी, लेकिन वो काला साया उसके गाल का गोश्त उधेड़ रहा था।……….


पारो देवी का जो खून जमीन पर गिर रहा था, उसे दूसरे लोग अपनी ज़ुबानों से चाटने लगे थे।

मैं जब उपन्यास पढ़ता हूँ तो मेरे मस्तिष्क पर उपन्यास फिल्म की तरह चलने लगती है। उपन्यास में हो रही घटना पढ़कर मैं कल्पना करता हूँ कि वह मेरे सामने घटित हो रही है और इस कारण ऐसे दृश्यों को पढ़कर मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। मुझे मज़ा आता है। इस उपन्यास में भी काफी ऐसे दृश्य थे जिन्होंने मेरा मनोरंजन किया।

ऐसा नहीं है कि उपन्यास में मुझे कुछ चीजें खटकी नहीं थी। कुछ बातें जो मुझे खटकी वो निम्न हैं:

उपन्यास में एक जगह अमन प्रधान को एलएलबी फाइनल इयर का छात्र बताया है। और उसके अगले ही अनुच्छेद में एलएलबी के द्वितीय वर्ष का छात्र बताया है।


यह घर एक पूर्व स्कूल टीचर के बेटे और वर्तमान में एलएलबी फाईनल कर रहे अमन प्रधान का था।(पृष्ठ 8)
और अमन प्रधान उम्र तेईस साल, एल. एल. बी ले द्वतीय वर्ष का छात्र था और बलिष्ठ शरीर तथा नर्म स्वास्थ्य वाला नौजवान अपने घर के अंदर ही था।(पृष्ठ 8)

ये है तो छोटी बात लेकिन एलएलबी तीन साल के होता है। यह कोई भी आसानी से पता कर सकता है तो ऐसी गलती नहीं होनी चाहिए थी।

एक जगह गजेन्द्र पांडे उर्फ़ गज्जी पाण्डे के बेटे का नाम नीरज पाण्डे बताया गया है और अगले ही पृष्ठ में यह नाम बदलकर गोरांग पाण्डे हो जाता है।

सामने वाले पार्क की दीवार के साथ खुली जगह में गज्जी पाण्डे , उसका नीरज पाण्डे और चार-पाँच अन्य आदमी रिवॉल्वर और बन्दूकें लिये खड़े हुए थे।(पृष्ठ 10)
अमन ने कुछ कहना चाहा था कि तभी गजेन्द्र पाण्डे का बेटा गौरांग चीखकर बोला था (पृष्ठ 11)

ऐसे ही कई जगह अमन के नाम की जगह मोहन भी इस्तेमाल किया है।

उपन्यास का नाम रंग महल का प्रेत जरूर है लेकिन रंग महल इसका छोटा सा हिस्सा ही बंनता है। इसलिए शीर्षक मुझे जमा नहीं। शीर्षक पढ़कर लगता है कि पूरा उपन्यास ही रंग महल में मौजूद प्रेतों के ऊपर होगा। यह एक गलत अपेक्षा पाठक के मन में उठाता है जिससे उसे निराशा भी हो सकती है। बेहतर शीर्षक चुना जा सकता था। कवर का भी उपन्यास से लेना देना नहीं है। इसमें इतने खतरनाक किरदारों का विवरण है कि अगर कोई आर्टिस्ट उन्ही किरदारों को आवरण चित्र में दर्शा देता तो बेहतरीन कवर बन सकता था। अगर मेरे हाथ में आवरण चित्र बनाना होता तो मैं अमन को नागेश,फरजीना,पारो,पूर्णी,भीमा, मेनकॉन की दुनिया के किरदारों से घिरा दिखाता है और शीर्षक भी मौत का सफर रखता जो कि इस कहानी पर बेहतर फिट बैठता।

इसके अलावा कहानी में कुछ बातें थी जो मेरी समझ में नहीं आई। एक जगह ऐसा दर्शाया जाता है कि पारो के शरीर को लोग खा रहे हैं। और फिर कुछ दस बीस पृष्ठों बाद अमन को पारो से बात करते हुए दर्शाया गया था। यह पढ़कर मेरे मन में संशय उभरा था कि पारो के साथ क्या हुआ था? क्या वह ज़िन्दा थी या मर गई थी? उसका खून क्यों पिया गया था? और वो बच कैसे गई।


पारो देवी का खून जमीन पर गिर रहा था, उसे दूसरे लोग अपने जुबानों से चाटने लगे थे। (पृष्ठ 98)
रात के करीब तीन बजे किसी ने अमन का पाँव झिंझोड़कर उसे जगा दिया। अमन ने देखा बूढी पारो देवी उसके सामने थी। (पृष्ठ 133)

अमन ने रंगमहल में मौजूद एक चीज उठाकर नागेश को दी। मुझे समझ नहीं आया कि यह चीज नागेश खुद क्यों नहीं उठा सकता था। अमन से उठवाने की क्या जरूरत थी। नागेश और रंगमहल का रिश्ता क्या था?

पृष्ठ 242 में एक किरदार के पास अचानक रिवॉल्वर आ जाती है। यह किरदार मेनकॉन की गुलाम रहती है। ऐसे में इसके पास रिवॉल्वर कैसे आई? यह बात मुझे अटपटी लगी।
पृष्ठ 249 में मेनकॉन अमन से कहता है – तुम जो कोई भी हो तुम्हारे अंदर एक बड़ी खराबी है, वो है तुम्हारी अक्ल। 
यह कथन भी तर्क संगत नहीं था क्योंकि इससे पहले जो पासा पलटा था उसमे अमन की अक्ल का हाथ कम था। वो चीज एक संयोग था। इधर हीरो को बिना किसी बात की फुटेज दी जा रही है। अमन तो मौका मिलने पर वार भी नहीं कर पाया था।

खैर, इन छोटी मोटी कमियों को छोड़ कोई बड़ी कमी मुझे उपन्यास में नहीं लगी। हाँ मेनकॉन वाला हिस्सा थोड़ा ज्यादा बड़ा लगा। इससे रफ्तार बाधित हुई। ऐसा लगा जैसे दूसरे भाग तक खींचने के लिए यह किया गया हो।

तो ऊपर लिखी बातें थी जो उपन्यास में मुझे कहीं न कहीं खटकी।

इन बातों को छोड़कर इस उपन्यास ने मेरा भरपूर मनोरंजन किया।  उपन्यास का अंत ऐसे मोड़ पर होता है जो पाठक के मन में कई प्रश्न छोड़ देता है। मैं इन प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए इच्छुक हूँ तो मैं अगला भाग ढूँढकर पढ़ने की कोशिश करूँगा। यह उपन्यास तंत्र-मंत्र, भूत-प्रेत, तांत्रिक, काली शक्तियाँ इत्यादी के चारो तरफ घूमता है। आपको यह सब पढ़ने में मजा आता है तो आपको पसंद आएगा। अगर आपको यह चीज बेतुकी लगती है तो शायद आपको पसंद न आये।

मेरी रेटिंग: 3/5

अगर आपने इस उपन्यास को पढ़ा है तो आपको यह कैसे लगा? अपने विचारों से मुझे जरूर अवगत करवाईयेगा। अगर आप अच्छे हिन्दी हॉरर उपन्यासों से वाकिफ हैं तो मुझे उनके नाम भी बताईयेगा।

अगर आपने इस उपन्यास को नहीं पढ़ा है तो इसे डेली हंट में खरीद कर पढ़ सकते हैं। इसके अलावा रेलवे स्टेशन में मौजूद स्टाल्स पर शायद यह मिल जाये।

डेली हंट

मैंने राजभारती के दूसरे उपन्यास भी पढ़े हैं। उनके विषय में मेरी राय आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
राजभारती
मैं हॉरर से जुड़ी अन्य रचनायें भी पढ़ता रहता हूँ। उनके विषय में मेरी राय आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
हॉरर

© विकास नैनवाल ‘अंजान’



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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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0 Comments on “रंग महल के प्रेत – राज भारती”

  1. बहुत पहले राज भारती जी का एक उपन्यास पढ़ा था जो बहुत बकवास था। उसके बाद राज भारती जी के किसी भी उपन्यास को पढ़ने की हिम्मत नहीं हुई आपकी समीक्षा पढ़ने के बाद इस उपन्यास को जरुर पढ़ना चाहूंगा।

    1. जी उनके उपन्यास ऐसे ही हिट और मिस होते हैं। कुछ अच्छे निकलते हैं और कुछ बुरे। मुझे याद है पिछले साल मैंने एक उपन्यास प्रेत को सलाम करो पढ़ना शुरू किया था।उसमें कुछ भी हो रहा था। ऐसे ही बहुत साल पहले अग्निपुत्र श्रृंखला का उपन्यास रक्त पिपासु पढ़ा था जो कि मुझे कुछ ख़ास पसंद नहीं आया था। इसलिए मुझे हैरत नहीं हुई है कि आपको वह उपन्यास पसंद नहीं आया होगा। आशा करता हूँ कि अगर आप यह उपन्यास पढ़े तो आपका वैसे ही मनोरंजन हो जैसे मेरा हुआ।

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