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उपन्यास 24 अगस्त 2017 से 26 अगस्त 2017 के बीच पढ़ा गया
उपन्यास 24 अगस्त 2017 से 26 अगस्त 2017 के बीच पढ़ा गया
संस्करण विवरण:
फॉरमेट : पेपरबैक
पृष्ठ संख्या: 93
प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स
आईएसबीएन: 9788121609999
पहला वाक्य:
डुंगरु ने अपना वाद्य घास पर रख दिया जो अब भी सवेरे के ओस से गीली थी, और गाने लगा।
डुंगरु ने अपना वाद्य घास पर रख दिया जो अब भी सवेरे के ओस से गीली थी, और गाने लगा।
वैसे तो फेलूदा को कोलकत्ता से बहुत प्रेम है लेकिन आजकल वो काफी परेशान चल रहे थे। काफी दिनों से रात में बिजली गायब रहने लगी थी जिससे उनकी आदतों में खलल पड़ने लग गया था।
इस बिजली की कमी से परेशान फेलू, तपेश और उनके मित्र लालमोहन गाँगुली ने कोलकत्ता से पुरी जाने का फैसला कर लिया। उन्हें यकीन था कि पुरी के समुद्र तट के मौसम और बिजली की भरपूर उपलब्धता के कारण उन्हें उधर अपनी परेशानी से निजाद मिल जायेगी।
पुरी में जाते ही उन्हें राहत तो मिली थी लेकिन एक मामले से उनका पाला पड़ गया था। पुरी के तट पर एक लाश पाई गई थी। लाश नेपाल के एक वासी की थी और उसकी हत्या गोली लगने से हुई थी। आखिर उसका कत्ल किसने किया था?
पुरी के ही डी जी सेन पुरानी पांडुलिपियों और कुण्डलियों का संग्रह करते थे।इन पांडुलिपियों को वो अपनी जान से भी ज्यादा चाहते थे। लेकिन अब उनकी सबसे पुरानी और मूल्यवान पांडुलिपि चोरी हो गयी थी।
इसी दौरान किसी अंजान व्यक्ति ने फेलूदा के सर पर वार किया था।
आखिर किसने की थी ये चोरी? फेलूदा पे वार करने वाला कौन व्यक्ति था और उसने ये क्यों किया?
पुरी आने पर कई रहस्यों से फेलूदा और उसके मित्रों का सामना हो गया था। क्या फेलूदा इन रहस्यों का पता लगा पाया??
मुख्य किरदार:
फेलूदा – एक प्राइवेट डिटेक्टिव
लालमोहन गाँगुली – एक उपन्यासकार और फेलुदा के मित्र
तापसे – फेलूदा का छोटा भाई
एम एल हिंगोरानी – ट्रैन में पुरी तक का सफर इन्होंने फेलुदा और बाकियों के साथ किया था। स्वर्ण आभूषणों से ये लदे हुए थे
श्यामलाल बारिक – होटल नीलाचल, जहाँ फेलूदा लोग रुके थे, के मैनेजर
श्रीनिवास सोम – होटल में इन्होंने लालमोहन के कमरे को साझा किया था। एक व्यापारी थे जिनकी कलकत्ता में साड़ियों की दुकान थी
लक्ष्मण भट्टाचार्य – एक ज्योतिषि जो माथे पर ऊँगली रखकर आदमी के विषय में बता देता था
डी जी सेन – एक रिटायर्ड व्यक्ति जिनके पास दुर्लभ पांडुलिपियों और कुंडलियों का संग्रह था। इन्होंने अपना मकान भविष्यवक्ता लक्ष्मण भट्टाचार्य को दिया था
सतीश कानूनगो – एक रिटायर्ड प्रोफेसर जिसके पास फेलूदा पाण्डलिपियों के विषय में जानकारी इकट्ठा करने को गया था
इंस्पेक्टर महापात्र – पूरी के तट पर पाई लाश के केस की तफ्तीश कर रहे थे
रूपचंद सिंह – नेपाल का एक रहने वाला जो कि पूरी के तट पर मरा पाया गया था…
माहिम सेन – दुर्गा गति सेन के बेटे
निशीथ बोस- दुर्गा गति सेन के सचिव
सिद्धेश्वर बोस – फेलू के एक अंकल जिन्हें भी पांडुलिपियों में रूचि थी
लोकनाथ – सेन बाबू का नौकर
विलास मजूमदार – एक वन्यजीव फोटोग्राफर जो पुरी में मौजूद था
फेलूदा – एक प्राइवेट डिटेक्टिव
लालमोहन गाँगुली – एक उपन्यासकार और फेलुदा के मित्र
तापसे – फेलूदा का छोटा भाई
एम एल हिंगोरानी – ट्रैन में पुरी तक का सफर इन्होंने फेलुदा और बाकियों के साथ किया था। स्वर्ण आभूषणों से ये लदे हुए थे
श्यामलाल बारिक – होटल नीलाचल, जहाँ फेलूदा लोग रुके थे, के मैनेजर
श्रीनिवास सोम – होटल में इन्होंने लालमोहन के कमरे को साझा किया था। एक व्यापारी थे जिनकी कलकत्ता में साड़ियों की दुकान थी
लक्ष्मण भट्टाचार्य – एक ज्योतिषि जो माथे पर ऊँगली रखकर आदमी के विषय में बता देता था
डी जी सेन – एक रिटायर्ड व्यक्ति जिनके पास दुर्लभ पांडुलिपियों और कुंडलियों का संग्रह था। इन्होंने अपना मकान भविष्यवक्ता लक्ष्मण भट्टाचार्य को दिया था
सतीश कानूनगो – एक रिटायर्ड प्रोफेसर जिसके पास फेलूदा पाण्डलिपियों के विषय में जानकारी इकट्ठा करने को गया था
इंस्पेक्टर महापात्र – पूरी के तट पर पाई लाश के केस की तफ्तीश कर रहे थे
रूपचंद सिंह – नेपाल का एक रहने वाला जो कि पूरी के तट पर मरा पाया गया था…
माहिम सेन – दुर्गा गति सेन के बेटे
निशीथ बोस- दुर्गा गति सेन के सचिव
सिद्धेश्वर बोस – फेलू के एक अंकल जिन्हें भी पांडुलिपियों में रूचि थी
लोकनाथ – सेन बाबू का नौकर
विलास मजूमदार – एक वन्यजीव फोटोग्राफर जो पुरी में मौजूद था
फेलूदा के किस्से पढ़ने में मुझे मज़ा आता रहा है। इससे पहले राजा की अँगूठी पढ़ी थी जिसने मेरा भरपूर मनोरंजन किया था। प्रस्तुत उपन्यास भी रहस्य और रोमांच से भरपूर है। ये उपन्यास नेपाल में हुई एक घटना से शुरू होता है। एक व्यक्ति बहुत बुरी तरह से घायल पाया जाता है। ये आदमी कौन है इस विषय में शुरुआत में पता नहीं लगता लेकिन ये उपन्यास का एक महत्वपूर्ण बिंदु है।
इसके बाद फेलूदा, तपेश और उनके उपन्यासकार दोस्त लालमोहन गांगुली की एंट्री होती है। कोलकत्ता में रात को लगातार बिजली की कटौती से तीनों ही परेशान हैं। इसलिए तीनो पुरी के तट पर जाने की योजना बनाते हैं। इसी तट पे रहस्यमयी घटनायें होने लगती हैं। ये घटनाएं क्यों होती है और फेलूदा और उनके साथ इनके साथ कैसे जूझते हैं ये पाठक को बाँध कर रखती हैं। कहानी का रहस्य अंत तक बरकरार रहता है जो कि अच्छी बात है।
किरदारों की बात करूँ तो फेलुदा अभी भी उतना ही eccentric है जितना पहले था। एक बार तो उसके मित्र उसे चीजों को अपने तक रखने के स्वभाव के लिए झिडक देते हैं। हाँ, तपेश और फेलूदा के बीच इस बार रिश्ता इतना मजाकिया नहीं लगा जितना राजा की अंगूठी में था। हँसी मज़ाक की ये कमी मुझे थोड़ा खली थी। उस उपन्यास में तपेश और फेलूदा की नोक झोंक पढ़कर भी मज़ा आया था। अगर वो होता तो उपन्यास में चार चाँद लग जाते।
उपन्यास के बाकी के किरदार कहानी के अनुरूप ठीक ठाक लगे। हाँ, शीर्षक मौत का घर है लेकिन इस घर की उपस्थिति कहानी में बहुत देर में हुई इसलिए लगा कि उपन्यास का नाम कुछ और होता तो सही रहता।
उपन्यास मुझे पसन्द आया और मेरे अनुसार इसे एक बार पढ़ा जा सकता है। अगर आपके यहाँ तेरह से ऊपर के बच्चे हैं तो उन्हें इसे पढ़ने के लिए अवश्य दीजियेगा। वैसे मुझे उम्मीद है हर उम्र के लोगों को ये पसंद आएगा।
अगर आपने इस उपन्यास को पढ़ा है तो बताईयेगा कि आपको ये कैसे लगी? अगर आपने नहीं पढ़ा है तो इसे निम्न लिंक से मँगवा सकते हैं।
अमेज़न