डायन – वेद प्रकाश शर्मा

रेटिंग : 2.5/5
उपन्यास दिसम्बर 11,2016 से  दिसम्बर 14,2016 के बीच पढ़ा गया

संस्करण विवरण :

फॉर्मेट:
पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 272 प्रकाशक: तुलसी पेपर बुक्स

पहला वाक्य :
तीस दिसम्बर की रात थी वह। 

कहते हैं मोहब्बत और जंग में सब जायज है। और वो मोहब्बत ही क्या जिसमे आप हद पार न करें। उसने भी अपने पति से बेइंतेहा मोहब्बत की थी। इतनी मोहब्बत के जब उसकी पति कि मृत्यु हुई तो उसने ऊपर वाले के इस  फैसले को स्वीकार करने से मना कर दिया।  उसने काले जादू का सहारा लिया और शैतानी शक्तियों की मदद से अपने पति को जिंदा करने के लिये जी जान से जुट गयी। उसे अपने पति को वापस पाने के लिए सात बच्चों की बली देनी थी। पाँच  की बलि वो दे चुकी थी और दो बालियाँ बाकी थी। लेकिन फिर उसे पता चलता है कि दो बालियों की जगह वो एक विशेष बच्चे की बलि दे सकती थी। और ये बलि वो हर कीमत पे देना चाहती थी।

अंगद को कोई अगर देखे तो उसको ये गलत फहमी हो जाती थी कि वो इमरान हाशमी है। उसकी शक्ल इमरान से काफी मिलती थी और इसी वजह से उसे इमरान के बॉडी डबल का काम भी मिल गया था। वो अपनी ज़िन्दगी से खुश था। लेकिन फिर अचानक उसे सपने आने शुरू हुए। वो सपनों में एक औरत को बच्चों की बलि देता हुआ देखने लगा। सपने उसके रोंगटे खड़े कर देने वाले थे लेकिन वो अपने को दिलासा देता था कि थे तो वो सपने ही।
परन्तु  जब चौथी बार उसने सपना देखा तो वो ये देखकर हैरान था कि जिस बच्चे की बलि दी जा रही थी उसे वो जानता था।  वो फिल्म ‘एक थी डायन’ का एक चाइल्ड आर्टिस्ट था। इस सपने ने उसे बौखला दिया। उस वक्त उसके कस बल निकल गये जब उसे पता लगा कि उस बच्चे का किसी ने अपहरण कर दिया था।

क्या लड़के का किडनैप होना और अंगद का सपना मात्र संयोग था? क्या बच्चों की बलि लेती डायन असल में थी या केवल अंगद के दिमाग का फितूर? अगर डायन असल में थी तो वो छटा बच्चा कौन था जिसकी बलि दो के बराबर होनी थी? अंगद को ये सपने क्यों आते थे? उसका डायन से क्या रिश्ता था? क्या वो आखिरी बलि होने से रोक पाया?

मेरे विचार

डायन वेद प्रकाश शर्मा का लिखा हुआ उपन्यास है। एक थी डायन के रिलीज़ होने से पहले वेद प्रकाश शर्मा जी का ये उपन्यास आया था। ये उस फिल्म के प्रमोशन का भी एक जरिया था और ये बात लेखक खुद भी स्वीकार करते है कि इस  फिल्म ने ही इस उपन्यास को प्रेरित किया था।

ये दोनों बिल्कुल जुदा कहानियाँ हैं। जहाँ फिल्म मुकुल शर्मा (कोंकणा सेन शर्मा के पिता) की लघु कथा mobius trips का फ़िल्मी रूपांतरण था वहीं ये उपन्यास फिल्म से खाली प्रेरित है।

पहले मुझे लगा था ये फिल्म का उपन्यासिकरण (अगर ये शब्द है तो। अंग्रेजी में novelisation) होगा लेकिन पढ़ने पर मालूम हुआ कि ऐसा नहीं है। इस उपन्यास की कहानी और फिल्म में रिश्ता है तो लेकिन वो रिश्ता दूसरी तरह है। उपन्यास फिल्म से दो तरीकों से जुड़ा हुआ है। पहला इस तरह से कि  उपन्यास की कहानी उसी समय घटित होती है जब फिल्म की शूटिंग चल रही है और दूसरा इस तरह से कि  उपन्यास का नायक फिल्म में इमरान हाशमी के बॉडी डबल का काम करता है। उपन्यास में फिल्म से जुड़े हुए लोग भी किरदार के रूप में आते हैं।

अब आते हैं उपन्यास के ऊपर। उपन्यास मुझे अच्छा लगा। उपन्यास की कहानी एक सपने से शुरू होती है और फिर हमे पता लगता है कि इसके पीछे राज क्या हैं। उस राज को जानने के लिए जैसे जैसे हम पढ़ते जाते हैं हमें एहसास होता जाता है कि इसकी खलनायिका कितनी ताकतवर है। उपन्यास में एक दो दृश्य ऐसे हैं कि अगर आपकी कल्पना शक्ति कुछ ज्यादा अच्छी है तो आपको उनसे थोड़ा ज्यादा परेशानी हो सकती है। एक दृश्य में एक छिपकली एक व्यक्ति का सिर फोड़कर बाहर निकलती है। ये सब डॉक्टरों की मौजूदगी में होता है। अगर आपका इसकी कल्पना करें कि आप उन डॉक्टर्स की जगह हैं तो ये दृश्य बड़ा भयावह होगा। मुझे तो ऐसे दृश्य पढने में मज़ा आता है इसलिए मैंने इनका लुत्फ़ उठाया था।

उपन्यास के किरदार जीवंत लगते हैं। उनमे वो फंतासी वाले तत्व नहीं है जो वेद जी के कुछ किरदारों में मिलते हैं।

हाँ,उपन्यास में कुछ एक बातें मुझे अटपटी लगी थी। पहली ये कि कहानी मुंबई की है और नायक का नाम अंगद बनर्जी है। अब जहाँ तक मेरा ज्ञान है बनर्जी बंगाली होते हैं। यहाँ तक तो कोई अटपटी चीज नहीं है। मुंबई में बहुत बंगाली रहते हैं। लेकिन उपन्यास में एक जगह ये बात दिखाई जाती है कि अंगद का परिवार ऐसे गाँव में रहता है जहाँ मुंबई से बाइक लेकर जाया जा सकता है। और वो अंगद का पैत्रिक गाँव है। उन्हें किसी कारणवश मुंबई आना पड़ता है। अब ये बात अटपटी है कि महाराष्ट्र के एक गाँव में बसने वाले लोगों का उपनाम बंगाली जैसा है।  अगर इधर कुछ महाराष्ट्रियन नाम होता तो मुझे मेरे ख्याल से ज्यादा ठीक रहता।

एक बात ये भी थी कि उपन्यास पढ़ते हुए आपको ये पता लगता है कि पहली बलि पाँच साल पहले दी गयी थी। और बलि पूर्णिमा की रात को ही दी जाती है। सबसे आखिरी बलि कुछ ही दिनों पहले दी गई थी। और उससे पहले की बलियों के बीच में ज्यादा वक्त नहीं था। क्योंकि अंगद एक बार कहता है कि ये सपने उसे बार बार आते हैं। फिर पहली बलि और पाँचवी बलि में  इतने साल का गैप क्यों आया?  क्या हर साल एक बलि देनी थी? ऐसा था तो फिर आखिरी बलि और चाइल्ड आर्टिस्ट की बलि के बीच में इतना वक्फा क्यों नहीं था? हो सकता है इसका जवाब उपन्यास के अगले हिस्से में मिले।

अब आप सोचेंगे की मैंने इस उपन्यास को ढाई रेटिंग क्यों दी है तो उसका कारण ये हैं कि उपन्यास कई जगह पर ज्यादा खिंचा हुआ लगता है। ये उपन्यास एकल उपन्यास नहीं है। इसका एक दूसरा भाग भी है जिसमे इस उपन्यास की कहानी खत्म होती है। और इसलिए मुझे लगा कि उपन्यास में जो प्रसंग जबरदस्ती डाले गये थे तो इसलिए डाले गये थे ताकि कहानी लम्बी हो। इससे कहानी कि गति थोड़ा कम हो जाती है जो कि न होती तो  ये और रोमांचक बन सकता था। दूसरी बात उपन्यास का वो भाग ज्यादा रोमांचक होता है जिसमे नायक और खलनायक लड़ते हैं। लेकिन इस उपन्यास अभी केवल नायक को इस बात का पता चलता है कि उसका खलनायिका से सम्बन्ध क्या है और उसे ऐसे सपने क्यों दिखते हैं। अभी उसे केवल खलनायिका से लड़ने का कारण ही मिला है। और इसमें रोचकता कम है।

अभी उपन्यास को पढ़ते हुए एक अधूरेपन का एहसास होता है क्योंकि इसे एक रोचक मोड़ पर छोड़ दिया गया है। ऐसा लगता है जैसे एक लजीज व्यंजन को खाते हुए किसी ने आपकी थाली बीच से ही खींच ली लो और फिर वो बोले और पैसे दो तो ही थाली मिलेगी।

अब अगला भाग पढना है।  अगर आपने इस उपन्यास को नहीं पढ़ा है और आप पढना चाहते हैं तो मैं तो यही राय दूंगा कि आप इस उपन्यास का दूसरा भाग भी खरीद लें और फिर इसे पढ़े। आप ऐसा करेंगे तो कहानी को ज्यादा अच्छी तरह से एन्जॉय कर पाएंगे।

उपन्यास डेली हंट एप्प पर उपलब्ध हैं। उधर आप इन दोनों उपन्यासों को खरीद सकते हैं। मुझे ये उपन्यास जयपुर के बस स्टेशन पे मौजूद एक दूकान पे मिला था। उधर इसका दूसरा भाग होता तो मैं जरूर खरीद लेता। अब डेलीहंट से ही काम चलाना पड़ेगा।

डेली हंट 

आपने अगर ये उपन्यास पढ़ा है तो आपको ये कैसा लगा था? क्या आपने डायन २ भी पढ़ा है? उसके विषय में भी अपनी राय जरूर दीजियेगा।


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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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6 Comments on “डायन – वेद प्रकाश शर्मा”

  1. वेद जी का ये उपन्यास मुझे ज्यादा अच्छा नहीं लगा।

  2. मुझे ठीक ठाक लगा। कुछ दृश्य सचमुच डरावने थे। हाँ, उपन्यास कई बार ज्यादा खींचा हुआ लगा था। और ये अधूरा भी है। इसके दूसरे भाग को पढने के बाद ही पूरी राय दे सकते हैं क्योंकि उसी में डायन और हीरो की जंग होगी।

  3. भाई जी हो सके तो आप उपन्यास का रेट भी साथ मे लिख दिया कीजियेगा प्लीज

    1. संदीप जी, आगे से ध्यान रखूंगा। इस नेक सलाह के लिए शुक्रिया।

      वैसे पोस्ट में डेली हंट का लिंक है उधर कीमत है। अगर उपन्यास अमेज़न पे उपलब्ध होता है तो उधर के लिंक दे देता हूँ। उस वक्त तो ये मौजूद नहीं था लेकिन शायद अब आ गया है। ६० रूपये का दिखा रहा है। नीचे लिंक पर क्लिक करके देख सकते हैं:
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  4. अभी तक जितने भी हॉरर उपन्यास पढ़ा है उनमें सर्वश्रेष्ठ है यह उपन्यास।

    1. उपन्यास आपको अच्छा लगा यह जानकार ख़ुशी हुई। ऐसे ही दूसरे उपन्यासों के नाम जरूर साझा कीजियेगा।

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