कुएँ का राज़ – इब्ने सफ़ी

रेटिंग : 3.5/5
किताब 3 सितम्बर 2016 को पढ़ी गयी
संस्करण विवरण :
फॉर्मेट : पेपरबैक
पेज काउंट : 124
प्रकाशक : हार्पर हिंदी
सीरीज : जासूसी दुनिया #6
पहला वाक्य:

गर्मी के मौसम की सुहानी रात के लगभग ग्यारह बजे थे।
नवाब रशीदुज़्ज़माँ अपने दोस्त तारिक के साथ अपने बाग़ में बैठे हुए थे जब उनके कुएँ से अँगारे निकलने  लगे। और यही नहीं उनकी हवेली से जानवरों की आवाज़ें आने लगीं। यह घटना उधर पहली बार नहीं हुई थी। नवाब साहब के हिसाब से जब उनके पिताजी छोटे थे तो ऐसा ही हुआ था और फिर उनके परिवार पर विपत्तियों का दौर शुरू हो गया था। नवाब को भी कुछ ऐसा ही होने का अन्देशा था।
और ये अन्देशा सच साबित हुआ जब उनके पालतू जानवर यकायक मरने लगे। नवाब साहब को यकीन था कि ये रूहों की करामात थी। तारीक का भी यही कहना था। पुलिस बुलाई गई तो उनका भी यही विचार था।
लेकिन नवाब साहब की बेटी गज़ाला को  इस बात पर  यकीन न हुआ।  और वो इंस्पेक्टर फरीदी को लेने चली गयी।
क्या फरीदी नवाब साहब की मदद कर सका? या नवाब साहब सही थे?और ये शैतानी ताकत का कमाल था?

कुएँ का राज़ जासूसी दुनिया सीरीज का छठा उपन्यास है जिसे हार्पर हिंदी ने छापा है। इसका कलेवर छोटा है लेकिन ये मुझे बेहद मनोरंजक लगा। कथानक तेज रफ्तार है और आपको कहीं भी बोर नहीं होने देता है।
जब मैंने किताब की पहली पंक्ति पढ़ी तो मुझे अचानक एल्मोर लियोनार्ड (Elmore Leonard) के इंटरव्यू का एक हिस्सा याद आ गया जिसमें उन्होंने कहा था कि उन्हें जब लोग उन्हें अपने उपन्यास रिव्यु करने के लिए देते हैं तो वो उन्हें कहते हैं कि एक तो उपन्यास की पृष्ठ संख्या 300 से ज्यादा नहीं होनी चाहिए और दूसरी उन्हें वो उपन्यास पसंद नहीं आते हैं जिनकी पहली लाइन में मौसम के बारे में लिखा होता है। जब इस उपन्यास को पढ़ रहा था तो ये ही बात दिमाग में कौंधी और इसलिए इधर लिख दी। एल्मोर लियोनार्ड अमेरिका के जाने माने  अपराध लेखक हैं। क्या आपको भी ऐसा लगता है कि उपन्यास के शुरुआत में मौसम के विवरण से आपकी दिलचस्पी उपन्यास में कम हो जाती है?
खैर,अब उपन्यास के ऊपर आते हैं। अगर आप इस सीरीज को पढ़ते हैं तो आपको पता होगा कि उपन्यास में हमीद रोमांटिक है और फरीदी पत्थर दिल। लेकिन इसमें फरीदी का दिल पसीजते हुए भी दिखेगा। हमीद जब जब उपन्यास में आता है तो थोड़ा बहुत मजाकिया माहौल हो जाता है। उसकी बातचीत पढ़ते हुए मुझे काफी मज़ा आया। फिर चाहे वो बातचीत वो अपनी महबूबा शहनाज़ बानो से कर रहा हो या फरीदी से।

“यक़ीनन चाय अच्छी है। तुम पी कर दो देखो।”
“छोड़िए…आप तो बेकार में जुमलों को तोड़ने-मरोड़ने लगते हैं।” शहनाज़ ने तंग आकर कहा।
“लेकिन आज तक किसी जुमले में मुझसे इसकी शिकायत नहीं की।”


“कहिए जनाब….इतनी बूढी औलादें लिए फिरते हैं और फिर फरमाते हैं कि मुझे इन बातों से कोई मतलब नहीं।” हमीद बोला।
“क्या बकते हो।” फरीदी ने अपनी हँसी रोककर संजीदा बनने की कोशिश करते हुए कहा।
“हाँ,हाँ….!” परवेज़ ने उछल-उछल कर हँसते हुआ बोला। “अब्बा मियाँ ने चचा जान को डाँट दिया…आ हाँ हाँ हाँ।”
उपन्यास के बाकी चरित्र भी कहानी के हिसाब से फिट बैठते हैं। तारीक का चरित्र दिचस्प लगा। वो एक रहस्यमयी किरदार है। बहुत सारी ज़बाने जानता है।लोगों को हिप्नोटाइज़ भी कर देता है।उसके पास एक नेवला है जो किसी की भी खुशबू से उसे ढूँढ लेता है। ये किरदार उभर कर आता है। और एक मिस्ट्री क्रिएट करता है। 
आने वाले उपन्यास में मैं खाली ये देखना चाहूँगा की जो परिवर्तन फरीदी में दिखता है वो कायम रहता है या नहीं।
उपन्यास में कोई कमी तो मुझे नहीं दिखी। हाँ, एक जगह हमीद फरीदी के विषय में गज़ाला से कहता है कि :

“फरीदी साहब साढ़े नौ बजे तक वापस आ जायेंगे, क्योंकि ये उन साँपों के दूध पीने का वक्त होता है”
“दूध कौन पिलाता है उन्हें?” गज़ाला ने पूछा।
“खुद फ़रीदी साहब।”


ग़ज़ाला उसे फिर फटी फटी नज़रों से देखने लगी।
अब साँप दूध पीते है ये एक काफी बड़ी गलतफहमी है।  दूध उन्हें आसानी से पचता नहीं है। विस्तार में आप इधर पढ़ सकते हैं। लेख अंग्रेजी में है लेकिन इसमें साँपों के विषय में कई भ्रांतियाँ जिनके विषय में बताया है। रोचक है पढ़िए। 
अब इधर ये कहना मुश्किल है कि ये बात करते हुए हमीद संजीदा था या मज़ाक कर रहा था। खैर, ये पढ़कर थोड़ा अटपटा लगा। लेकिन उस वक्त क्या आज भी ये भ्रान्ति सबको है कि साँप दूध पीते हैं।
इसके इलावा उपन्यास में मुझे तो कोई कमी नज़र नहीं आयी। एक पाठक के तौर पर तो मैं ये ही कहूँगा कि कहानी आपका मनोरंजन करने में सफल होती है। इसे एक बार पढ़ा जा सकता है। क्या मैं इसे दुबारा पढूँगा। शायद एक बार अगर पूरी श्रृंखला एक साथ पढूँ तो इसे भी पढ़ लूँगा।
अगर आपने इस उपन्यास को पढ़ा है तो इसके विषय में अपनी राय ज़रूर दीजियेगा।
और अगर आपने इसे नहीं पढ़ा है तो आप इसे निम्न लिंक से मँगवा सकते हैं:
पेपरबैक

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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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