मार्च ११ से मार्च १५ के बीच में पढ़ा गया
संस्करण विवरण:
फॉर्मेट :पेपरबैक
पृष्ठ संख्या : ३४६
प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स
सीरीज : सुनील #117
पहला वाक्य :
सुनील यूथ क्लब पहुँचा।
‘जाल’ सुरेन्द्र मोहन पाठक जी का सुनील सीरीज का ११७वा उपन्यास है। सुनील राजनगर नामक शहर के ब्लास्ट नामक अखबार का चीफ रिपोर्टर है और मीडिया में अपनी इनवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म के कारण काफी नाम कमा चुका है। अभी तक सुनील को छोड़कर मैं पाठक साहब के ज्यादातर किरदारों को पढ़ चुका था, तो सोचा अब सुनील चक्रवर्ती से रूबरू होने का समय हो चुका है। ये सुनील सीरीज का पहला उपन्यास है जो मैंने पढ़ा और यक़ीनन ये आखरी नहीं होगा। तो ज्यादा वक़्त न जाया करते हुए मैं कहानी पर आता हूँ।
अभिनन्दन शुक्ला सिग्मा कोर्प नामक कंपनी का मैनेजिंग डायरेक्टर है। आजकल वो एक प्रोक्सी वार का शिकार है जो कि उसे ऍम डी की कुर्सी से हटवाने के लिए चलायी जा रही है। इस कारण अभिनन्दन शुक्ला परेशान है और उसकी परेशानी का हल तब ही हो सकता है जब वो उन शेयर होल्डर्स की लिस्ट जान ले जो कि आने वाली मीटिंग में उसके खिलाफ अपना मत देने वाले हैं।
उसकी इस परेशानी का हल तब मिलता है जब एक रहस्यमयी लड़की, जो खुद को अनामिका बताती है, उसको फ़ोन करके कहती है कि वो उसे उन शेयर होल्डर्स की सूची मुहय्या करवा सकती है। यह सुनकर अभिनन्दन को उम्मीद की किरण तो नज़र आती है लेकिन ये शक भी होता है कि कहीं ये उसको फंसाने के लिए रचा हुआ कोई जाल तो नहीं है? मीटिंग कुछ दिन दूर है और उस सूची का अभिनन्दन के पास न होना उसको तबाह कर सकता है।
कौन थी ये लड़की ? क्या ये किसी की चाल थी अभिनन्दन को फांसने की ?
जब अभिनन्दन रमाकांत से इस बाबत मुखातिब होता है तो वो सुनील से उनका परिचय कराता है। सुनील उन्हें उस गुमनाम लड़की के फ़ोन की अनदेखी करने के लिए कहता है। लेकिन अभिनन्दन इस बात को टाल नहीं पाता है और अगली बार जब सुनील से मुखातिब होता है तो उसके हाथ में एक पिस्तौल होती है जिससे एक गोली चलायी गयी है। पिस्तौल जिस तरीके से अभिनंदन के हाथ पड़ती है उससे साफ़ जाहिर होता है कि ये उसपे थोपी गयी है। कहाँ चली थी पिस्तौल से गोली? और ये किसकी पिस्तौल थी ? क्या उस पिस्तौल से कोई गुनाह हुआ था ? अगर ऐसा है तो क्या अभिनन्दन की कोई मदद कर पायेगा सुनील ? इन सभी सवालातों के उत्तर आपको इस उपन्यास को पढने के पश्चात मिलेंगे।
उपन्यास मुझे बेहद पसंद आया। ये एक रहस्य और रोमांच से भरपूर उपन्यास है। पहले तो पाठक उस गुमनाम रमणी के विषय में सोचता है जो अभिनंदन शुक्ला को फोन पर जानकारी मुहय्या कराने की बात करती थी। इससे पहले कि वो उसे उस युवती के विषय में पता लगे पाठक अभिनन्दन को ऐसे चक्रव्यूह में फंसते हुए देखता है जिससे निजाद पाना नामुमकिन सा लगता है। इस नामुमकिन को मुमकिन करने का जिम्मा आता है सुनील चक्रवर्ती के ऊपर और जिसे वो बखूबी निभाता है। उसके काम करने का तरीका अलग है। वो अपने हिसाब से काम करता है और कई बार जानकारी अपने तक ही रखता है। सबसे अजीब बात ये कि वो कई जानकारियों से अपने दोस्त और सहायक रमाकांत को भी महरूम रखता है। ऐसा वो क्यों करता है मुझे कोई अंदेशा नहीं है? बहरहाल, उपन्यास बेहद रूचिकर था और कहीं भी बोरियत का एहसास नहीं कराता है। एक के बाद एक घटनाक्रम ऐसे होते हैं कि पाठक उपन्यास के पन्ने पलटने के लिए विवश हो जाता है।
उपन्यास का तेज गति से भागता हुआ कथानक ही उपन्यास की एक लौती खूबी नहीं है। अगर उपन्यास एक व्यंजन है तो इसमें सुनील की स्मार्ट टॉक तड़के और गार्निशिंग का काम करती हैं। सुनील के संवाद चाहे वो लड़कियों से हों , चाहे रमाकांत से या चाहे इंस्पेक्टर प्रभुदयाल से सभी को पढ़कर मज़ा आ जाता है। मैंने अक्सर सुनिलियन स्मार्ट टॉक के बाबत पाठक जी के प्रशंसको से सुना था लेकिन इस उपन्यास को पढ़कर खुद भी महसूस कर दिया। अगर इस कथानक में पाठक जी ने सुनिलियन मिश्रण नहीं मिलाया होता तो शायद ये उतना रोचक नहीं बनता जितना की अब बना है। इसलिए कथानक के इलावा इस उपन्यास के अंदाजे बयान का भी उपन्यास के रोचक होने के पीछे बराबरी का हाथ है।
तो दोस्तों अगर आप एक रोचक उपन्यास पढ़ना चाहते हैं तो जाल आपको निराश नहीं करेगा। और शायद आप भी इस उपन्यास को पढ़ने के बाद मेरी तरह सुनीलियन टॉक के दीवाने हो जायेंगे। अगर आपने इस उपन्यास को पढ़ा है तो अपनी राय टिपण्णी बक्से में देना नहीं भूलियेगा और अगर आपने इस उपन्यास को नहीं पढ़ा है तो आप इसे निम्न लिंक्स के माध्यम से मंगवा सकते हैं:
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