उपन्यास 16 अक्टूबर 2016 से 18 अक्टूबर 2016
संस्करण विवरण:
फॉर्मेट : पेपरबैक
पृष्ठ संख्या: 148
प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन
आईएसबीएन : 9788126719280
मूल भाषा : मराठी
पहला वाक्य:
“… मैं गर्व और प्रसन्नता के साथ इस महाकाय दूरबीन का उद्घाटन करता हूँ और इसे राष्ट्र को समर्पित करता हूँ।”
दुनिया भर के कंप्यूटर में अचानक खराबियाँ आना शुरू हो चुकी है। सभी कंप्यूटर विशेषज्ञ इस बात से परेशान हैं कि इस अप्रत्याशित हुए हमले का कारण क्या है? हमला इस कदर खतरनाक है कि दुनिया की व्यवस्था जो कि अब कंप्यूटर पे आधारित है चरमराने के कगार पे है।
आखिर कहाँ से आया है ये वाइरस? क्या इसका हल निकल पायेगा? और दुनिया को इस वाइरस से निजाद पाने के लिए क्या करना होगा?
हिन्दी साहित्य में अगर देखा जाए तो विज्ञान गल्प काफी कम मात्रा में लिखा गया। कुछ दिनों पहले मैंने सुरेन्द्र मोहन पाठक जी का उपन्यास बदसूरत चेहरे पढ़ा था और उसमे विज्ञान गल्प के कुछ तत्व थे । लेकिन कोई ऐसा लेखक मेरी नज़र में नहीं था जिसने केवल विज्ञान गल्प ही लिखा हो। फिर नार्लीकर जे के विषय में पढ़ा और उन्हें पढने की इच्छा जागी। नार्लीकर जी मूलतः मराठी में लिखते है और ये उपन्यास भी उनके मराठी उपन्यास ‘व्हायरस’ का ही हिंदी अनुवाद है। लेकिन वाइरस चूँकि लेखक ने ही अनूदित किया है तो इसे हिंदी की मूलकृति के समतुल्य समझा जा सकता है।
उपन्यास की बात करूँ तो उपन्यास मुझे बहुत पसंद आया। उपन्यास का मुख्य किरदार जगताप नारायण नाम का विज्ञानिक है। वो एक ऊँचे ओहदे पर है जहाँ उसे नहीं चाहते हुए भी सरकारी अमले के साथ काम करना होता है। उपन्यास में सरकारी लालफीताशाही कैसे काम करती है उसको हम जगताप की नज़रों से देखते हैं। उससे वो जूझता है। हम ये भी देखते हैं कि हर जगह कैसे राजनीति काम करती है फिर चाहे वो किसी विज्ञान केंद्र का निदेशक चुनने की प्रक्रिया ही क्यों न हो। उपन्यास में दिए गये ये विवरण उपन्यास को यथार्थवादी बनाते हैं।
उपन्यास के किरदार काफी जीवंत है और कथानक के साथ सम्पूर्ण न्याय करते हैं। हाँ, चूँकि उपन्यास यथार्थ के नज़दीक है तो इसमें ऐसे रोमांच की थोड़ी कमी है जिसकी अपेक्षा मैंने एक विज्ञान गल्प के तौर पर मैंने की थी।
अगर आपको विज्ञान गल्प (साई-फाई) पसंद है तो आपको इस उपन्यास को जरूर पढना चाहिए। मुझे पूरी उम्मीद है कि आप इससे निराश नहीं होंगे।
अगर आपने ये उपन्यास पढ़ा है तो आप इस उपन्यास के विषय में क्या सोचते हैं ये बताना नहीं भूलियेगा। अगर आपने यह उपन्यास नहीं पढ़ा है तो आप इस उपन्यास को निम्न लिंक से मंगवा सकते हैं:
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यह किताब राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित की गयी थी। उनसे सम्पर्क कीजिये। किताब उनके पास मिल जानी चाहिए। पीडीएफ के विषय में कोई जानकारी मुझे भी नहीं है।