संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: पेपरबैक | प्रकाशक: सूरज पॉकेट बुक्स | पृष्ठ संख्या: 174
पहला वाक्य:
लखनऊ के पॉश इलाके में स्थित लगभग आधे एकड़ में बनी डी एस पी प्रशान्त सिंह की कोठी में उल्लास का वातावरण था।
कहानी
डी एस पी प्रशांत सिंह के घर में उल्लास का वातावरण था। और हो भी क्यों न, उनके लाड़ले बेटे समर्थ सिंह की शादी जो थी। लेकिन उन्होंने सोचा भी नहीं था कि ये खुशनुमा माहौल अचानक से शोक में तब्दील हो जायेगा।
लेकिन ऐसा हुआ क्योंकि किसी ने समर्थ सिंह को उसकी ही गाड़ी से उसके ही घर के सामने कुचल कर मार डाला था।
इस हत्याकांड ने पुलिस महकमे में हलचल मचा दी थी। जब पुलिस वाले अपनों को ही नहीं बचा पा रहे थे तो जनता की सुरक्षा क्या ख़ाक करते।
आखिर क्यों मारा गया था समर्थ को? क्या ये एक पुरानी रंजिश थी या कोई और बात थी?
जब पुलिस महकमा एड़ी चोटी का जोर लगाने के बाद भी इस गुत्थी को नहीं सुलझा पाया तो सी बी आई के मदन मिश्र को ये काम सौंपा गया।
क्या वो हत्यारे का पता लगा पाया? क्या वो उसे पकड़ पाया? और सबसे बड़ा सवाल आखिर ये हत्या हुई क्यों थी?
टिप्पणी
उपन्यास पर बात करने से पहले मैं उपन्यास के कवर को बनाने वाले हनुमेन्द्र मिश्र को बधाई देना चाहूँगा। उनका डिजाईन किया हुआ कवर बेहद खूबसूरत है। अंग्रेजी में एक कहावत है कि ‘डोंट जज अ बुक बाय इट्स कवर’ जो ये दर्शाती है कि एक अच्छे आवरण का किताब को आकर्षक बनाने में कितना महत्वपूर्ण योगदान होता है। वो पाठक को अपनी और खींचती है। हनुमेन्द्र मिश्र जी इस मामले में सफल होते हैं।
अब उपन्यास की कथावस्तु पर आएँ तो ‘सिंह मर्डर केस’ रमाकांत मिश्र का पहला उपन्यास है। उपन्यास एक रहस्यकथा है और इस कारण साहित्य की उस श्रेणी में आता है जिसे कभी हिंदी में लुगदी साहित्य कहा गया था या अंग्रेजी में पल्प फिक्शन। जहाँ अंग्रेजी में पल्प का अपना स्थान है वहीं हिंदी में लुगदी को हिकारत की नज़रों से देखा जाता था। लेकिन यहाँ देखने वाली बात ये है कि अंग्रेजी में ऐसी विधाओं में लिखने वाले लेखकों को इधर भी सिर आँखों में बैठाया जाता था। लेकिन अब ये चीज़ बदल रही हैं और जहाँ एक तरफ अंग्रेजी में थ्रिलर उपन्यासों की भरमार है वहीं हिन्दी में भी नये लेखक इस विधा में हाथ आजमा रहे हैं। ये हिंदी साहित्य के लिये एक अच्छी बात है। कहा भी गया है ‘ऑल वर्क एंड नो प्ले मेक्स जैक अ डल बॉय’ (काम ही काम, न कोई मोद न आराम, फिर कैसे चमके चिपटू राम)।
प्रस्तुत उपन्यास ‘सिंह मर्डर केस’ पर वापस लौटे तो रमाकांत मिश्र का यह पहला प्रयास मुझे पसन्द आया। उपन्यास में रहस्य और रोमांच दोनों हैं। कथानक तेजी से भागता है और पाठक की दिलचस्पी अपने में बरकरार रखता है। कथानक वर्तमान और भूत के बीच आता जाता रहता है जिससे पाठक की रुचि कथानक में बढ़ती जाती है। अगर आप लिनीअर कथानक पढ़ने के आदि हैं तो आपको इससे कुछ तो परेशानी हो सकती है लेकिन व्यक्तिगत तौर पर मुझे कथा प्रस्तुत करने का ये फॉर्मेट अच्छा लगा।
अगर किरदारों की बात करूँ तो उपन्यास के किरदार जीवंत हैं। कहीं में ऐसा प्रतीत नहीं होता कि ये बातें यथार्थ से दूर हों।
हाँ, कहानी में एक छोटी बात मुझे खटकी थी। मदन 28 वे पृष्ठ में गजेन्द्र सिंह और विजय वर्मा की बात करता है। ये किरदार अचानक से ही बातचीत में आये हुए प्रतीत होते हैं। मुझे पता नहीं लग पाया कि मदन इन तक कैसे पहुँचा। मैंने ये किताब सफ़र के दौरान पढ़नी शुरू की थी तो हो सकता है कि कहीं कुछ छूट गया हो। लेकिन अंत तक ये बात मुझे खलती रही।
अंत में केवल इतना कहूँगा की उपन्यास पूरा पैसा वसूल है। इसने मेरा मनोरंजन किया और उम्मीद है कि रमाकांत जी आगे भी अपनी लेखनी से हमे मुग्ध करते रहेंगे। उपन्यास का कथानक चूँकि उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में घटित होता है तो इसमें मोजूद काफी जगहों में मैं जा चुका हूँ। दून में तो चार साल बिताये हैं। और इस वजह से भी उपन्यास से मैंने ज्यादा जुड़ाव महसूस किया।
आप हिंदी पढ़ना जानते हैं तो इस उपन्यास को एक बार आपको पढ़ना चाहिये। जितना मज़ा मुझे आया शायद उतना आपको भी आएगा। अगर आपने यह उपन्यास पढ़ा है तो इसके विषय में अपनी राय टिपण्णी बक्से में जरूर दीजियेगा। और अगर आपने ये उपन्यास नहीं पढ़ा है तो आप इस उपन्यास को निम्न लिंक से मँगवा सकते हैं:
अमेज़न

अच्छा उपन्यास है।
भाषा शैली भी परम्परागत उपन्यासों से अलग है।
अच्छी समीक्षा के लिए धन्यवाद।
रमाकांत जी का प्रथम उपन्यास होते हुए भी काफी रोचक है।
इस उपन्यास की भाषाशैली मुझे बहुत अच्छी लगी।
उपन्यास वाकई रोचक था। उनके अगले उपन्यास का बेसब्री से इन्तजार कर रहा हूँ।