उपन्यास सितम्बर 23, 2016 से सितम्बर 25,2016 के बीच पढ़ा गया
फॉर्मेट : पेपरबैक
प्रकाशक : सूरज पॉकेट बुक्स
पृष्ठ संख्या : 174
लखनऊ के पॉश इलाके में स्थित लगभग आधे एकड़ में बनी डी एस पी प्रशान्त सिंह की कोठी में उल्लास का वातावरण था।
लेकिन ऐसा हुआ क्योंकि किसी ने समर्थ सिंह को उसकी ही गाड़ी से उसके ही घर के सामने कुचल कर मार डाला था।
इस हत्याकांड ने पुलिस महकमे में हलचल मचा दी थी। जब पुलिस वाले अपनों को ही नहीं बचा पा रहे थे तो जनता की सुरक्षा क्या ख़ाक करते।
आखिर क्यों मारा गया था समर्थ को? क्या ये एक पुरानी रंजिश थी या कोई और बात?
जब पुलिस महकमा भी एड़ी चोटी का जोर लगाने के बाद इस गुत्थी को नहीं सुलझा पाया तो सी बी आई के मदन मिश्र को ये काम सौंपा गया।
क्या वो हत्यारे का पता लगा पाया? क्या वो उसे पकड़ पाया? और सबसे बड़ा सवाल आखिर ये हत्या हुई क्यों थी?
इन सब सवालों का जवाब तो आपको इस उपन्यास को पढ़ने के बाद मिलेगा।
सबसे पहले तो मैं हनुमेन्द्र मिश्र जी को बधाई देना चाहूँगा। उनका डिजाईन किया हुआ कवर बेहद खूबसूरत है। अंग्रेजी में एक कहावत है कि ‘डोंट जज अ बुक बाय इट्स कवर’ जो ये दर्शाती है कि एक अच्छे आवरण का किताब को आकर्षक बनाने में कितना महत्वपूर्ण योगदान होता है। वो पाठक को अपनी और खींचती है। हनुमेन्द्र मिश्र जी इस मामले में सफल होते हैं।
‘सिंह मर्डर केस’ रमाकान्त मिश्र जी का पहला उपन्यास है। उपन्यास एक थ्रिलर और मिस्ट्री है और इस कारण इस श्रेणी में आता है जिसे कभी हिंदी में लुगदी साहित्य कहा गया था या अंग्रेजी में पल्प फिक्शन। जहाँ अंग्रेजी में पल्प का अपना स्थान है वहीं हिंदी में लुगदी को हिकारत की नज़रों से देखा जाता था। लेकिन यहाँ देखने वाली बात ये है कि अंग्रेजी में ऐसी विधाओं में लिखने वाले लेखकों को इधर भी सिर आँखों में बैठाया जाता था। लेकिन अब ये बातें बदल रही हैं और जहाँ एक तरफ अंग्रेजी में थ्रिलर उपन्यासों की भरमार है वहीं हिन्दी में भी नए लेखक इस विधा में हाथ आजमा रहे हैं। ये हिंदी साहित्य के लिये एक अच्छी बात है। कहा भी गया है ‘आल वर्क एंड नो प्ले मेक्स जैक अ डल बॉय’ (काम ही काम, न कोई मोद न आराम, फिर कैसे चमके चिपटू राम)। हिंदी का पहले यही हाल था। उसमे मनोरंजन को महत्व नहीं दिया जाता था। लेकिन अब दिया जा रहा है और इससे लेखक भी अलग अलग विधाओं में हाथ अजमा रहे हैं।
अच्छा उपन्यास है।
भाषा शैली भी परम्परागत उपन्यासों से अलग है।
अच्छी समीक्षा के लिए धन्यवाद।
रमाकांत जी का प्रथम उपन्यास होते हुए भी काफी रोचक है।
इस उपन्यास की भाषाशैली मुझे बहुत अच्छी लगी।
उपन्यास वाकई रोचक था। उनके अगले उपन्यास का बेसब्री से इन्तजार कर रहा हूँ।