द ओल्ड कार – अंदालीब वाजिद

संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: ई-बुक | पृष्ठ संख्या: 13 | एएसआईएन: B07VH5TJKP

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कहानी 

वह पुरानी गाड़ी कभी उनके लिये परिवार के सदस्य की तरह हुआ करती थी। सुनील, जो कि परिवार का सबसे बड़ा बेटा था, की कई सुनहरी यादें उस कार से जुड़ी हुई थी। लेकिन सुनील अब बढ़ा हो गया था और इन यादों और इन भावनाओं की उसकी ज़िंदगी में अहमियत खत्म हो गयी थी।अब वह उस पुरानी गाड़ी को बेचना चाहता था। 

पर क्या यह इतना आसान था? 

मेरे विचार

द ओल्ड कार अंदालीब वाजिद की लिखी लघु-कथा है। हर एक व्यक्ति की ज़िंदगी ज़िंदगी में कई ऐसी चीजें होती हैं जो पुरानी होने पर भी उसके दिल के करीब रहती हैं। एक भावनात्मक लगाव उनके प्रति उसके मन में होता ही है। उदाहरण के लिये वह पुरानी किताबें हो सकती हैं, कोई पुराना रेडियो हो सकता है या कोई पुरानी गाड़ी हो सकती है। कई बार यह लगाव इतना अधिक होता है कि वह उन्हे अपनी ज़िंदगी से दूर नहीं कर पाता है। करने की कोशिश भी करे तो इसमें काफी तकलीफ होती है। लेकिन अगर वह पुरानी वस्तु भी उसके प्रति वैसा ही मोह रखने लगे और उसे उस व्यक्ति से जुदा होना पसंद न हो तो फिर क्या होगा? इसी ‘क्या ‘के इर्द गिर्द यह कहानी लिखी गयी है। कहानी के पीछे का विचार मुझे पसंद आया। वहीं कहानी हॉरर जरूर है लेकिन आधुनिकता के कारण परिवार कैसे टूट रहे हैं इस पर भी यह टिप्पणी करती है। परिवार के इस तरह टूटने से हमारे पहले वाली पीढ़ी किस तरह एकाकी हो रही है इस पर यह टिप्पणी करती है जो कि मुझे कहानी की अच्छी बात लगी। 

परन्तु अगर एक हॉरर कथा के तौर पर मैं इसे देखूँ तो इस कहानी को पढ़कर ऐसा लगा जैसे कहानी को और बेहतर तरीके से कहा जा सकता था। कहानी के कुछ दृश्य डर तो पैदा करते हैं लेकिन यह कहानी कई अनुत्तरित सवाल भी मन में छोड़ जाती है।  

कहानी एक चार सदस्यों वाले परिवार की है जिसमें कहानी के अंत में एक सदस्य बचा रहता है तो जाहिर सी बात है कि आपके मन में ये ख्याल आएगा कि उसके साथ क्या हुआ और उसने कार का क्या किया? क्या कार ने उसके साथ भी वही किया जो उस सदस्य के साथ किया था? वहीं उस सदस्य से निपटने के बाद कार का क्या हुआ? यह कुछ ऐसे सवाल है जो कहानी खत्म होने के बाद भी बचे रह जाते हैं। तो कहानी पढ़ने के बाद एक अधूरेपन का अहसास मन में रहता है जो कि मुझे नहीं जंचा। 

यह इसलिए भी होता है क्योंकि कहानी प्रथम पुरुष में लिखी गयी है और हम परिवार के एक सदस्य के नजरिए से इसे देखते हैं। कहानी के इस फॉर्म के चलते लेखिका के पास इन सवालों के उत्तर देने का कोई जरिया भी नहीं रहता है। इसलिए मुझे लगता है कि अगर यह कहानी हम कार के नजरिए से पढ़ते या यह कहानी तृतीय पुरुष में लिखी होती तो शायद बेहतर होता। तब लेखिका के पास इन सवालों के उत्तर देने का मौका भी होता जिस कारण इस कहानी का अधूरापन खत्म हो गया होता और मुझे कहानी पढ़कर संतुष्टि तो हो ही जाती।

अंत मे यही कहूँगा कि कहानी एक बार पढ़ी जरूर जा सकती है लेकिन इससे ज्यादा उम्मीद न रखें।

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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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