संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: ई-बुक | पृष्ठ संख्या: 22 | एएसआईएन: B089DV9Q4B
किताब लिंक: अमेज़न
कहानी:
कातिल कैमरा विकास सी एस झा की लिखी एक कहानी है। विकास सी एस झा की कुछ किताबें हाल ही में सूरज पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित की गई हैं जिन्होंने अपनी विषय वस्तु के चलते मेरा ध्यान अपनी ओर खींचा था। ऐसे में मैं किताब आर्डर करने से पहले उनका लिखा हुआ कुछ पढ़ना चाहता था और इसलिए जब किंडल अनलिमिटेड पर उनकी यह कहानी देखी तो सोचा उपन्यासों से पहले एक बार इसे पढ़ लिया जाये। वैसे भी कहानी का सारांश पढ़ने के बाद यह एक हॉरर सस्पेंस लग रही थी जो कि मेरा पसंदीदा जॉनर है तो इसलिए भी इस कहानी को पढ़ने का मैंने मन बना लिया था।
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कहानी की बात करूँ तो यह एक फोटो जर्नलिस्ट विराज माथुर की कहानी है जो एक कैमरा लेने के बाद एक ऐसी मुसीबत में फँस जाता है जिससे निकलना उसके लिए जीवन मरण का प्रश्न बन जाता है। कहानी पठनीय है और पाठक की रूचि इसमें अंत तक बरकरार रहती है।
कई बार लेखक कहानी का घटनाक्रम किसी शहर में बसाते तो हैं लेकिन वह शहर कहानी में दिखता नहीं है। ऐसा इस कहानी के साथ कम से कम नहीं होता है। यह कहानी मुंबई में बसाई गई है और पढ़ते हुए आप खुद को मुंबई में पाते हैं। लेखक को वहाँ की जानकारी है और यह इस कहानी में दिखता भी है।
कहानी की कमी की बात करूँ तो कुछ बातें थी जो कि मुझे खटकी थी।
कहानी का एक किरदार सानिया मलिक है। वह परालौकिक चीजों की काफी जानकारी रखती है लेकिन जिस तरह उसकी कहानी में एंट्री हुई है वह बेहतर किया जा सकता था। अभी ऐसा लगता है क्योंकि यह किरदार लेखक को चाहिए था इसलिए उन्होंने बहुत ही सुविधाजनक तरीके से उसे नायक का पड़ोसी बना दिया है। उस किरदार को यह जानकारी क्यों रहती है? वह असल में करती क्या है? यह सब बातें कहानी में नहीं दिखती हैं जो कि दिखाई जाती तो बेहतर होता।
कहानी में कैमरे से कत्ल हो रहा है। यह कत्ल क्यों हो रहे हैं यह बात ज्यादा साफ़ नहीं होती है। यहाँ पर ज्यादा कहना स्पोइलेर देना होगा लेकिन इतना कहूँगा कि कत्ल होने वालो से ज्यादा ज़िम्मेदार तो दूसरा व्यक्ति था। कायदे से उस पर गाज गिरनी थी जो कि गिरती कई बार दिखती है लेकिन फिर क्यों नहीं गिरती है यह साफ़ नहीं किया जाता है।
वहीं विराज को कैमरा किसने बेचा था यह भी साफ़ नहीं होता है। विराज की दोस्त तानिया एक साया को देखकर उसे पहचान जरूर जाती है उससे थोड़ा आईडिया हो जाता है बेचने वाला कौन है लेकिन फिर सवाल ये उठता है कि उसने विराज को कैमरा क्यों बेचा??
यह कुछ बातें थी तो कहानी में मुझे लगा अगर साफ़ होती तो बेहतर होता और कहानी और अच्छी बन सकती थी।
अंत में यही कहूँगा कि कहानी एक बार पढ़ी जा सकती है। यह पाठकों को अंत तक पढ़ते जाने के लिए विवश कर देती है। मैं लेखक के नवप्रकाशित उपन्यास जरूर पढ़ना चाहूँगा।
किताब लिंक: अमेज़न
सब से पहले मुझे कथा का शीर्षक आकर्षक लगा। एक समय था जब इस तरह के शीर्षक कर्नल रंजीत के समय चलते थे।
समीक्षा कथा पढने की उत्सुकता पैदा करती है।
साइट का नया रूप भी रोचक लगा।
धन्यवाद
गुरप्रीत सिंह, श्रीगंगानगर, राजस्थान
हार्दिक आभार..कहानी के प्रति आपकी राय का इंतजार रहेगा। साईट का बदला हुआ रूप आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा। मेहनत सफल हुई।