जिस देश में बाँके रहता है

 कॉमिक बुक 14 दिसम्बर 2020 को पढ़ी गई 

संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 32 | श्रृंखला: बाँकेलाल | लेखक: तरुण कुमार वाही | चित्रांकन: बेदी | प्रकाशक: राज कॉमिक्स 

समीक्षा: जिस देश में बाँके रहता है
समीक्षा: जिस देश में बाँके रहता है

कहानी:

विशालगढ़ की तलाश में भटकते हुए बाँकेलाल और विक्रम सिंह इस बार फिर एक नये नगर में जा पहुँचे थे। 
उनकी हैरत का उस वक्त ठिकाना न रहा जब उन्हें पता चला कि नगर में क्रीड़ा प्रतियोगिता का आयोजन हो रहा था। और फिर परिस्थितियाँ ऐसी बन गयी कि बाँकेलाल ने न केवल क्रीड़ा प्रतियोगिता में भाग लेने का मन बनाया बल्कि तैराकी, गदर्भ दौड़ और मुक्केबाजी के पिछले पाँच वर्षों के विजेताओं का काम तमाम करने का फैसला भी कर दिया।
लेकिन बाँकेलाल को कहाँ पता था कि कोई और भी इस फिराक में बैठा था। 

आखिर बाँकेलाल को क्रीड़ा प्रतियोगिता में क्यों भाग लेना पड़ा? 
बाँकेलाल को इन पिछले वर्षों के विजेताओं से क्या दिक्कत थी?
वह कौन सा रहस्यमय व्यक्ति था जो कि इन विजेताओं के पीछे पड़ा था? वह यह क्यों कर रहा था?

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मुख्य किरदार:
विक्रम सिंह:  विशालगढ़ के राजा 
बाँकेलाल: विक्रम सिंह का ख़ास 
देवकुमार: उस नगर का राजा जिसमें इस कॉमिक का कथानक घटित होता है
मुक्काराज, तैराकराज, गदर्भराज: मुक्केबाजी, तैराकी और गदर्भदौड़ के विजेता 
हल्लू हल्लू:  एक रहस्यमय व्यक्ति 
मेरे विचार:
जिस देश में बाँके रहता है बाँकेलाल डाइजेस्ट 11 में मौजूद चौथा कॉमिक बुक है। इस डाइजेस्ट में मौजूद सारे कॉमिक बुक उस वक्त हैं जब कंकड़ बाबा के शाप की अवधि पूरी करके बाँकेलाल और विक्रमसिंह पृथ्वी पर आ गये थे और विशालगढ़ की तलाश में इधर उधर भटक रहे थे। इसी तलाश में भटकते हुए उनके साथ क्या क्या होता है यही इस श्रृंखला के कॉमिक बुक्स का कथानक बनते हैं। 
जिस देश में बाँके रहता है चूँकि इसी श्रृंखला का हिस्सा है तो इसका फॉर्मेट भी यही है। बाँकेलाल और विक्रम सिंह एक नये नगर में जाते हैं और वहाँ रहकर या तो बाँकेलाल अपनी कोई कुटिल चाल चलता है या कोई परेशानी आकर उन्हें घेर देती है। और फिर कॉमिक का अंत बाँकेलाल के ‘कर बुरा हो भला’ शाप के सच होने से होता है।
कॉमिक बुक की शुरुआत सुनहरी मृग के बाद ही होती है। जब बाँकेलाल शक्तिनगर से चले थे तो महाराज शक्तिसिंह की कृपा से उनके पास एक आधुनिक गाड़ी थी। इसी गाड़ी में वह अपना सफर कर रहे थे कि कुछ ऐसा हो जाता है कि बाँकेलाल और विक्रमसिंह खुद को एक नये नगर में पाते हैं। 
इस नगर के राजा देवकुमार कम बुद्धि के मालिक हैं और उनकी दिली इच्छा ठीक होने की है। वहीं इस नगर में एक क्रीड़ा प्रतियोगिता का आयोजन हो रहा है जिसके विजेताओं के साथ बाँकेलाल की खुन्नस है। फिर परिस्थितियाँ कुछ ऐसी बनती हैं कि बाँकेलाल न केवल इन विजेताओं को ठिकाने लगाने की योजना बनाने लगता है वरन राजा से भी अपना बदला लेने की सोचने लगता है। उसकी इन योजनाओं का क्या असर होता है वह एक रोमांचक और हास्यजनक कथानक बनकर उभरता है। वहीं कथानक में हल्लू हल्लू नाम का एक किरदार भी है जो कि रहस्य का एक पुट कथानक में जोड़ देता है। यह किरदार भी विजेताओं के पीछे पड़ा हुआ है। वह यह सब क्यों कर रहा है यह जानने के लिए भी पाठक कॉमिक बुक पढ़ते चले जायेंगे।
यह कॉमिक डाइजेस्ट के पिछले कॉमिक बुक्स से कुछ मामले में अलग है। जहाँ पिछले तीन कॉमिक बुक्स में राक्षस मौजूद थे वहीं इस कॉमिक बुक्स में राक्षस नहीं हैं। यहाँ सब कुछ मनुष्यों के बीच में ही हो रहा है। फिर इसमें रहस्य का एक तत्व भी मौजूद है जो कि पाठकों को पढ़ते चले जाने के लिए प्रेरित करता है। 
कॉमिक बुक का कथानक 32 पृष्ठों का है और इन पृष्ठों में काफी चीजें होती रहती है जो कि पाठक को बोर नहीं होने देती हैं। प्रतियोगिताओं में भाग लेते हुए बाँकेलाल को देखकर लगता है कि भले ही वह सीखड़ी  सा दिखता हो लेकिन उसके अन्दर जान काफी है क्योंकि वह विजेताओं एक लगभग पहुँच ही जाता है। कॉमिक बुक में विक्रम सिंह के विकार भी मौजूद हैं जो कि सही मौकों में आकर हास्य उत्पन्न करते हैं।

हाँ, यह बात सोचने वाली है कि कॉमिक बुक में विक्रम सिंह के विकार शुरुआत में ही दिखते हैं। यह देखना रोचक है कि जरूरत पड़ने पर ही यह विकार उत्पन्न होते हैं और उसके बाद गायब हो जाते हैं। यह थोड़ा कहानी को कमजोर बनाता है या सम्पादन की गलती दिखाता है। यह विकार कितने देर में आते हैं इस बात का अंदाजा मुझे नहीं लग पाया है। शुरुआत में यह एक के बाद एक लगातार आते दिखते हैं लेकिन फिर पूरे कॉमिक बुक में नहीं दिखलाई देते हैं। आपको इस विषय में कोई जानकारी हो तो जरूर बतलाइयेगा।
कॉमिक बुक का चित्रांकन बेदी जी का है जो कि क्लासिक है और मुझे पसंद आता है।
 
अंत में यही कहूँगा कि यह कॉमिक बुक पठनीय है और मनोरंजन करने में सफल होता है। अगर आप बाँकेलाल के प्रशंसक हैं तो आपको यह पसंद आयेगा। 
रेटिंग: 3/5
© विकास नैनवाल ‘अंजान’

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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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