‘पुछेरी’ और ‘ऐसी बदली नाक की नथ’ लेखक मनोहर चमोली ‘मनु’ की दो कहानियाँ हैं। ये कहानियाँ राष्ट्रीय पुस्तक न्यास (नैशनल बुक ट्रस्ट) द्वारा प्रकाशित की गई हैं।
पुछेरी
संस्करण विवरण:
फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 15 | प्रकाशक: राष्ट्रीय पुस्तक न्यास | चित्रांकन: सुभाष रॉय
कहानी
‘पुछेरी’ गाँव की लड़की थी। गाँव वालों की दया से उसका जीवन बसर होता था।
पर पुछेरी को किसी की दया पर पलना ठीक नहीं लगता था। वह गाँव के लिए कुछ करना चाहती थी। चाहती थी लोग उसका सम्मान करें।
क्या उसकी ये इच्छा पूरी हुई?
मेरे विचार
मनोहर चमोली की कहानी ‘पुछेरी’ एक पहाड़ी गाँव में रहने वाली लकड़ी पुछेरी की है। पुछेरी की माँ उसके पैदा होते ही चल बसी थी और उसके पिता तो पहले ही शहर जाकर गाँव को भूल गया था। गाँव वालों के रहमों करम पर बढ़ी हुई पुछेरी अपनी एक अलग पहचान बनाना चाहती है। वह लोगों के नजरों में अपने लिए दया नहीं अपितु सम्मान देखना चाहती है। वह यह कैसे करती है यही यह कहानी दर्शाती है।
अपनी इस कहानी के माध्यम से लेखक ने पूछेरी की जीवटता तो दर्शाया है और यह दर्शाया है कि व्यक्ति अगर चाह ले तो कुछ भी पा सकता है।
कहानी में पहाड़ी गाँव और वहाँ की जिन्दगी की भी झलक मिलती है। कैसे एक पहाड़ी में गाँव कई बार लोगों को जंगली जानवर के डर के साए में जीना पड़ता है यह इधर दिखता है। साथ ही पहाड़ी महिलाएँ कितना जतन करती हैं यह भी इधर दिखता है।
छोटी मगर रोचक कहानी है। भाषा शैली सरल है। कहानी में मौजूद चित्र कहानी पढ़ने के अनुभव को बढ़ा देते हैं।
कहानी लिंक: पुछेरी
ऐसी बदली नाक की नथ
संस्करण विवरण:
फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 15 | प्रकाशक: राष्ट्रीय पुस्तक न्यास | चित्रांकन: सुभाष रॉय
कहानी
पलाम गाँव में आज चहल पहल थी। मोहन की शादी हुई और बहु घर आई थी। जहाँ लोगों में मोहन की पत्नी राधा की सुंदरता की चर्चा थी वहीं उसकी नथ भी चर्चा का विषय था।
फिर ऐसा क्या हुआ कि नथ ही के कारण राधा की भद्द पिट गई।
राधा ने नथ की समस्या को कैसे सुलझाया?
मेरे विचार-
मनोहर चमोली की कहानी ऐसी बदली नाक की नथ राधा की कहानी है जिसे अपने ससुराल आकर पता लगता है कि जिस नथ को 9 तोले खरे सोने की समझ रही थी वो तो 6 तोले की और मिलावटी सोने की बनी है।
इस कारण उसकी उसके ससुराल में बेइज्जती भी होती है और वो फैसला कर देती है कि सही नथ लाकर रहेगी।
वह यह काम कैसे करती है यही कहानी बनती है।
यह कहानी एक तरफ तो यह दर्शाती है कि एक नई नवेली बहु को शादी के बाद किस तरह की चीजों का सामना करना पड़ता है। सास ससुर ऐसे न भी हों लेकिन आस पड़ोस के कमली की माँ जैसे लोग जिस तरह से उसको नापते तोलते हैं वह असहज करने वाला और कई बाद अपमानित करने वाला होता है। लेखक ने इसका जीवंत चित्रण किया है।
वहीं दूसरी तरफ यह कहानी एक उपभोगता के रूप में व्यक्ति के क्या अधिकार होते हैं इससे पाठक का परिचय करवाता है। यह कहानी यह दर्शाती है कि अगर एक उपभोग्ता के रूप में आपको सही सेवा नहीं मिलती है तो आप इस मामले को कहाँ और कैसे उठा सकते हैं और इससे क्या पा सकते हैं।
कहानी में उपभोक्ता अदालत की कार्यवाही लेखक नहीं दर्शाते हैं। राधा ने जो कार्य किया वो राधा द्वारा ही बुलवा देते हैं। अगर उपभोगता अदालत में हुई कार्यवाही दर्शाते तो बेहतर होता क्योंकि कहानी का मुख्य हिस्सा वही था। पर फिर शायद इसकी पृष्ठ संख्या बढ़ जाती और ये ज्यादा तकनीकी हो जाती। यह बाल किशोर पाठकों के लिए लिखी गई है तो उस हिसाब से शायद इसे सरल रखने का प्रयास किया गया है। इसकी भाषा शैली भी सरल ही रखी है।
हाँ, भाषा में पहाड़ कम दिखता है। यह चीज पुछेरी में भी है। अगर दोनों ही कहानियों में पहाड़ी शब्द भी होते तो बेहतर होता।
पुस्तक में दुर्गा दत्त पांडेय के चित्र हैं जो कि कहानी को पढ़ने के अनुभव को बढ़ा देते हैं।
कहानी पढ़ सकते हैं।
Full Disclosure (पूर्ण प्रकटीकरण): यह दोनों ही पुस्तकें मुझे पौड़ी प्रवास के दौरान लेखक द्वारा उपहार स्वरूप प्रदान की गई थीं।
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Interesting. Cover of Puchheri reminds me of Nandan stories. And the title and cover of Aise Badli Naak Ki Nath are intriguing.
True… I used to like reading Nandan… Glad you found the title and cover interesting…