पत्थरों का रहस्य – एस सी बेदी

रेटिंग : 3/5
किताब 13 फरवरी 2017 से 14 फरवरी 2017 के बीच पढ़ी गयी

संस्करण विवरण :
फॉर्मेट : पेपरबैक
पृष्ठ संख्या : 64
प्रकाशक : सरस्वती ट्रस्ट
आईएसबीएन : 9788121616232

पहला वाक्य :
गवाहों के बयान व सारे हालात पर गौर करने के बाद अदालत इस नतीजे पर पहुँची है कि अनवर हुसैन, वल्द शफीक हुसैन लुटेरा व कातिल है। 


आज राजन इक़बाल खुश थे। उनकी मेहनत से अनवर हुसैन नामक नामी डकैत को फाँसी की सज़ा मिली थी। एक और अपराधी धरती से कम नहीं हुआ था। खुश अगर कोई नहीं था तो वो था अनवर हुसैन।  उसे लग रहा था उसके साथ ज्यादती हुई है।

और इस नाइंसाफी का बदला उसने अजीब तरीके से लेने का फैसला किया था। उसने घोषणा की थी कि वो मरने के बाद एक पिशाच बनेगा और जिन्होंने भी उसे इस कगार पे पहुँचाया है उन्हें पत्थरों से मार मार कर उनकी ह्त्या कर देगा। इस सूची में उसने चार लोगों को रखा था :
राजन-इक़बाल – जिन्होंने उसे पकड़ा था।
जज रामदयाल, जिन्होने उसे सजा सुनाई थी।
इंस्पेक्टर बलबीर जिसने राजन और इकबाल के साथ मिलकर उसे जेल में डाला था।

पहले तो लोगों ने इसे एक खीझे हुए व्यक्ति का प्रलाप सुनकर नज़रअंदाज कर दिया। फिर जब सज़ा से पहले अनवर की मृत्यु हो गयी और मृत्यु के बाद उसके दुश्मनों के ऊपर एक वीभत्स पिशाच रुपी व्यक्ति पत्थर बरसाने लगा तो डर का माहौल बन गया। अनवर के चारों दुश्मनों पे उस पिश्चाच ने हमला किया था।

और इस डर से निजाद पाने का एक ही रास्ता राजन-इकबाल के पास था। इस पत्थरों के हमले के रहस्य का पता लगाना।

क्या सचमुच मरने के बाद अनवर पिश्चाच बन गया था? क्या वो अपना बदला लेने में कामयाब हो पाया? क्या राजन-इकबाल इन रहस्यों से पर्दा उठा पाए।


राजन इकबाल श्रृंखला का ये दूसरा नोवेलेट है जिसे मैंने पढ़ा है। राजन इकबाल को एस सी बेदी जी ने बच्चों के लिए लिखा था इसलिए इसकी कहानी भी उसी हिसाब से रहती है। मैं जब इसे पढता हूँ तो इसको एन्जॉय इसलिए कर पाता हूँ क्योंकि मैं इसे बच्चों के उपन्यास के तरह ही देखता हूँ। यानी मेरी अपेक्षा ये रहती है कि इसके प्लॉट में जटिलता कम होगी।

अगर आप व्यस्क हैं तो आपको लग सकता है कि कहानी में वो बात नहीं है। उतने घुमाव नहीं है, वो शॉक वैल्यू नहीं है जो कि अकसर जासूसी उपन्यास की पहचान है। लेकिन मेरे हिसाब से इन्हीं बातों का न होना इसे एक अलग फ्लेवर देता है।

मैंने अपने बचपन में इन बाल उपन्यासों को नहीं पढ़ा था और इसका मुझे दुःख है। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ कि भले ही मैं इस वक्त इन्हें यही सोचकर पढता हूँ  कि मैं अभी बचपन में हूँ लेकिन तब भी मुझे कहानी में क्या हुआ क्यों हुआ पता चल जाता है और इससे थोड़े मज़े में फर्क पड़ता है।  लेकिन अगर मैंने दस या ग्यारह साल की उम्र में इसे पढ़ा होता तो निसंदेह मेरी रेटिंग 5 से कम नहीं होती।

अभी इतना ही कहूँगा। ये नोवेलेट पठनीय है। कहानी में थ्रिल और एक्शन भरपूर है।  राजन इकबाल के संवाद मनोरंजक हैं। और इस कहानी में हमे सूरज और भारत नाम की एक और जोड़ी का पता चलता है जो कि राजन-इकबाल की तरह एजेंट हैं।  मैंने चूँकि इसका ये दूसरा उपन्यास पढ़ा है तो मुझे इनके विषय में कोई जानकारी नहीं थी। इनके कारनामे भी मैं पढने का इच्छुक हूँ।

अंत में इतना ही कहूँगा। अगर आपने राजन इकबाल को नहीं पढ़ा है तो इस नोवेलेट को एक बार पढ़ा जा सकता है।  64 पृष्ठों में सिमटी ये किताब एक बार में खत्म हो सकती है। अगर आपके घर में को आठ तेरह  साल तक का बच्चा है तो आप इसे उसको जरूर पढ़ाईयेगा। उसे निसंदेह ये पसंद आएगा।

अगर आपने इस किताब को पढ़ा है तो आपको ये कैसी लगी इसके विषय में बताना नहीं भूलियेगा। इस किताब को आप निम्न लिंक में जाकर प्राप्त कर सकते हैं :
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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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