संस्करण विवरण :
फॉर्मेट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 64 | प्रकाशक: सरस्वती ट्रस्ट | शृंखला: राजन इकबाल
पुस्तक लिंक: अमेज़न
पहला वाक्य:
गवाहों के बयान व सारे हालात पर गौर करने के बाद अदालत इस नतीजे पर पहुँची है कि अनवर हुसैन, वल्द शफीक हुसैन लुटेरा व कातिल है।
कहानी
आज राजन इक़बाल खुश थे। उनकी मेहनत से अनवर हुसैन नामक नामी डकैत को फाँसी की सज़ा मिली थी। एक और अपराधी धरती से कम हुआ था। खुश अगर कोई नहीं था तो वो था अनवर हुसैन। उसे लग रहा था उसके साथ ज्यादती हुई है।
और इस नाइंसाफी का बदला उसने अजीब तरीके से लेने का फैसला किया था। उसने घोषणा की थी कि वो मरने के बाद एक पिशाच बनेगा और जिन्होंने भी उसे इस कगार पे पहुँचाया है उन्हें पत्थरों से मार-मार कर उनकी ह्त्या कर देगा। इस सूची में उसने चार लोगों को रखा था :
राजन-इक़बाल – जिन्होंने उसे पकड़ा था।
जज रामदयाल, जिन्होने उसे सजा सुनाई थी।
इंस्पेक्टर बलबीर जिसने राजन और इकबाल के साथ मिलकर उसे जेल में डाला था।
पहले तो लोगों ने इसे एक खीझे हुए व्यक्ति का प्रलाप सुनकर नज़रअंदाज कर दिया। फिर जब सज़ा से पहले अनवर की मृत्यु हो गयी और मृत्यु के बाद उसके दुश्मनों के ऊपर एक वीभत्स पिशाच रुपी व्यक्ति पत्थर बरसाने लगा तो डर का माहौल बन गया। अनवर के चारों दुश्मनों पे उस पिश्चाच ने हमला किया था।
और इस डर से निजाद पाने का एक ही रास्ता राजन-इकबाल के पास था। इस पत्थरों के हमले के रहस्य का पता लगाना।
क्या सचमुच मरने के बाद अनवर पिश्चाच बन गया था? क्या वो अपना बदला लेने में कामयाब हो पाया? क्या राजन-इकबाल इन रहस्यों से पर्दा उठा पाए।
टिप्पणी
‘पत्थरों का रहस्य’ राजन इकबाल शृंखला का दूसरी उपन्यासिका है जिसे पढ़ना हुआ। राजन इकबाल शृंखला की पुस्तकों को एस सी बेदी जी ने बच्चों के लिए लिखा था इसलिए इसकी कहानी भी उन्हीं पाठकों के अनुरूप सरलता लिए हुए होती है। मैं जब इसे पढ़ता हूँ तो इसको एन्जॉय इसलिए कर पाता हूँ क्योंकि मैं इसे बच्चों के उपन्यास के तरह ही देखता हूँ। यानी मेरी अपेक्षा ये रहती है कि इसके प्लॉट में जटिलता कम होगी।
अगर आप व्यस्क हैं तो आपको लग सकता है कि कहानी में वो बात नहीं है। उतने घुमाव नहीं है, वो शॉक वैल्यू नहीं है जो कि अकसर जासूसी उपन्यास की पहचान है। लेकिन मेरे हिसाब से इन्हीं बातों का न होना इसे एक अलग फ्लेवर देता है।
मैंने अपने बचपन में इन बाल उपन्यासों को नहीं पढ़ा था और इसका मुझे दुःख है। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ कि भले ही मैं इस वक्त इन्हें यही सोचकर पढ़ता हूँ कि मैं अभी बचपन में हूँ लेकिन तब भी मुझे कहानी में क्या हुआ क्यों हुआ पता चल जाता है और इससे थोड़ा सा तो मज़ा कम हो ही जाता है। लेकिन अगर मैंने दस या ग्यारह साल की उम्र में इसे पढ़ा होता तो निसंदेह ये मुझे काफी पसंद आया होता।
अभी इतना ही कहूँगा। पत्थरों का रहस्य एक पठनीय रचना है। कहानी में थ्रिल और एक्शन भरपूर है। राजन इकबाल के संवाद मनोरंजक हैं। और इस कहानी में हमें सूरज और भारत नाम की एक और जोड़ी का पता चलता है जो कि राजन-इकबाल की तरह एजेंट हैं। मैंने चूँकि इसका ये दूसरा उपन्यास पढ़ा है तो मुझे इनके विषय में कोई जानकारी नहीं थी। राजन इकबाल के साथ साथ सूरज और भारत के भी कुछ अन्य कारनामें भी मैं पढ़ने का इच्छुक हूँ।
अंत में इतना ही कहूँगा अगर आपने राजन इकबाल की इस पुस्तक को नहीं पढ़ा है तो इस उपन्यासिका को एक बार पढ़कर देखा जा सकता है। 64 पृष्ठों में सिमटी ये किताब एक ही बैठक में खत्म की जा सकती है। अगर आपके घर में को आठ से तेरह साल तक के बच्चे हैं तो आप उन्हें पत्थरों का रहस्य जरूर पढ़ाईयेगा। उन्हें निसंदेह पत्थरों का रहस्य अधिक पसंद आएगा।
पुस्तक लिंक: अमेज़न