उपन्यास १० दिसम्बर से १३ दिसम्बर के बीच पढ़ा गया
संस्करण विवरण:
फॉर्मेट : पेपरबैक
पृष्ठ संख्या:३२०
प्रकाशक: राजा पॉकेट बुक्स
सीरीज:सुनील #118
पहला वाक्य:
सुनील यूथ क्लब पहुँचा।
सुनील जब यूथ क्लब पहुंचा तो उसे रमाकांत की रिसेप्शनिस्ट सोनल सिक्का थोड़ा परेशान लगी। उसने कारण जानना चाहा जो कि उसे नहीं पता लगा।
सुनील को यूथ क्लब रमाकांत ने संजीव सहगल से मिलने बुलाया था। संजीव सहगल एक व्यापारी था जो परेशान चल रहा था ।
उसे यकीन था कि किसी ने उसकी अंगूठियों में हेरा फेरी कर ली थी। वो ये अंगूठियाँ एक अनुष्ठान के अंतर्गत पहनता था जिसमे हर दिन एक अलग पत्थर की अँगूठी पहननी होती थी।
संजीव को ये शक था कि कोई उसकी अँगूठी गायब करके उसे किसी अपराध में फँसवाना चाहता है।
सुनील को उसकी ये बात अतिशयोक्ति लगती है लेकिन जब एक कत्ल होता है और जिसका क़त्ल हुआ है उसके हाथ में ये अँगूठी बरामद हो जाती है तो ये बात सुनील के ऊपर आ जाती है कि वो बात की तह तक जाये।
कातिल को एक गवाह में देखा था। लेकिन कातिल ने एक नकाब चेहरे पे लगाया हुआ था। जो चीज़ कातिल की पहचान करती थी वो थी उसके गाल के नीचे एक मस्सा जो कि संजीव के चेहरे के नीचे भी था।
तो कौन था कातिल?क्या संजीव ने ये कहानी अपने गुनाह को छुपाने के लिए गढ़ी थी?क्या सुनील इस कत्ल के राज को उजागर कर सका?
सोनल सिक्का को क्या परेशानी थी?
क्या सुनील उसकी परेशानी का कारण जान पाया और फिर उसकी मदद कर पाया?
इन सारे सवालों का जवाब तो आपको इस उपन्यास को पढ़कर ही मालूम होंगे।
उपन्यास ने मुझे कहीं भी बोर नहीं किया और अंत तक मेरा मनोरंजन करता रहा।
इसमें कई लोग थे जो शक ले घेरे में आते थे लेकिन अंत तक मैं इस बात का पता न लगा पाया कि कत्ल किसने किया जो कि मेरे लिए एक अच्छी मर्डर मिस्ट्री का उदाहरण है।
अगर आप एक अच्छी मर्डर मिस्ट्री पढ़ना चाहते हैं तो यह उपन्यास आपको निराश नहीं करेगा।
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राजकॉमिक्स