वेयर इस द वेयरवुल्फ – नितिन मिश्रा

किताब 21 अक्टूबर 2018 को पढ़ी गई


संस्करण विवरण:
फॉर्मेट : पेपरबैक
पृष्ठ संख्या : 71
प्रकाशक : फ्लाई ड्रीम्स पब्लिकेशन

वेयर इस द वेयरवुल्फ -नितिन मिश्रा
वेयर इस द वेयरवुल्फ -नितिन मिश्रा

पहला वाक्य:
वाऊ! देखो आज चाँद कितना खूबसूरत नज़र आ रहा है। 


शांतनु की इच्छा एक फिल्म निर्देशक बनने की थी। वह पिछले छः सालों से अपने सपने को पूरा करने की कोशिश कर रहा था लेकिन उसके हाथ कुछ एक विज्ञापनों और डाक्यूमेंट्रीस को छोड़कर कुछ ऐसा खास नहीं लगा था जिससे उसे अपने सपने को हासिल करने में मदद मिले।

अब जाकर उसने यह आखिरी कदम उठाया था। उसने अपने जीवन की सारी जमा पूँजी अपनी इस शोर्ट फिल्म पर लगा दी थी। यह उसका सफलता का टिकेट होने वाली थी। उसकी उम्मीद तो यही थी।

यही उम्मीद उसे और उसकी टीम के लोगों को ब्लैक आर्किड वुड्स में ले आई थी। उसकी शोर्ट फिल्म की कहानी को यहीं फिल्माया जाना था।

परन्तु ब्लैक आर्किड में कुछ ऐसा भी था जिसके विषय में अगर फिल्म बनाने वालों को पता होता तो शायद ही वो इधर कदम रखते। कुछ ऐसा जो किसी के भी प्राण सुखाने के लिए काफी था। और फिर शुरू हुआ एक  ऐसा खूनी खेल जिसने पूरे क्रू के रौंगटे खड़े कर दिए।


आखिर ब्लैक आर्किड में ऐसा क्या था? इस खूनी का क्या नतीजा हुआ?


क्या शांतनु अपने सपने को हासिल कर पाया? क्या फिल्म का निर्माण हो सका? 


ऐसे ही कई प्रश्नों के जवाब आपको वेयर इस द वेयरवुल्फ पढ़कर मिलेंगे।

मुख्य किरदार:
शांतनु – एक डायरेक्टर जो फिल्म बनाना चाहता था
अमित,इशिका और किशोर – फिल्म में काम करने वाले कलाकार
केविन – फिल्म का कैमरामैन
जुगल दादा – एक मेकअप आर्टिस्ट जो इस फिल्म पर काम कर रहा था
गुरुमंग – ब्लैक आर्किड वुड्स में रहने वाला एक पन्द्रह वर्षीय पहाड़ी लड़का जो कि फिल्म की टीम का लोकल गाइड था
शुभम,प्रिशा  – प्रेमी युगल
मोहित,सिद्धांत, मल्लिका,रश्मि – शुभम और प्रिशा के दोस्त

हॉरर कथाएँ पढ़ना मुझे बचपन से ही पसंद रहा है। हिन्दी में हॉरर कम उपलब्ध रहा है। लेकिन जब उपलब्ध होता है तो मैं पढ़ने की पूरी कोशिश करता हूँ। ऐसे में जब पता लगा कि फ्लाई ड्रीम्स से प्रकाशित हुए किताबों के गुलदस्ते में कुछ हॉरर के फूल भी हैं तो मुझे उन्हें लेना ही था। यही कारण था मैंने फ्लाई ड्रीम्स प्रकाशन का पूरा सेट मँगवा लिया था।

वयेर इस द वयेरवुल्फ इसी गुलदस्ते का एक फूल है। यह एक लघु उपन्यास है जो कि स्लेशेर फिल्मों की तर्ज पर लिखा गया है। स्लेशर हॉरर फिल्मो की एक श्रेणी है जिसमें एक समूह के लोग बारी बारी बुरी और वीभत्स मौत मरते जाते हैं। उन्हें मारने वाला कौन होता है यह एक रहस्य होता है जो फिल्म के आखिर में खुलता है।

कहानी में शुरु से लेकर आखिर तक रोमांच बना रहता है। कहानी में जगह जगह लेखक ऐसे मोड़ लेकर आते हैं जो अप्रत्याशित होते हैं और इस कारण कहानी के पन्ने पाठक पलटता जाता है। कहानी की ख़ास बात यह कि इसमें रहस्य तभी खुलता है जब लेखक चाहता है और इस कारण से एक रहस्यकथा के रूप में इस लघु-उपन्यास ने मुझे पूरी तरह संतुष्ट किया।

कहानी के लगभग सभी किरदार युवा हैं। ये किरदार यथार्थ के निकट प्रतीत होते हैं। यह आम युवा हैं जो हमे आस पास देखने को मिल जायेंगे। इस वजह से युवाओं को इसके किरदारों से जुड़ने में ज्यादा परेशानी नहीं होगी। अगर आपको हॉरर उपन्यास और फिल्में पसंद है तो आपको यह पसंद आएगा।

उपन्यास में कमी तो ऐसी कुछ नहीं है। इसका कलेवर छोटा है तो किरदारों को पूरी तरह विकसित करने का मौका नहीं मिला है। हमे खाली शांतनु के विषय में ही पता चलता है। बाकी किरदारों के विषय में ज्यादा नहीं पता चलता है। अगर उनकी कहानी, उनके सपने या ऐसे ही उनके विषय में जानकारी मिलती तो पाठक के रूप में मेरे लिए वो ज्यादा जीवंत होते और उनकी नियति से मुझे और ज्यादा फर्क पड़ता।

एक दो जगह मुझे लगा कि उधर थोड़ा विवरण और होता तो कहानी में रोमांच बढ़ सकता था।
उदाहरण के लिए किताब के अंत के निकट  के पृष्ठों में दो किरादारों के बीच लड़ाई होती है। यह लड़ाई एक ही वाक्य में दर्शाई गई थी।


जाने कितनी ही देर दोनों एक दूसरे से द्वन्द करते रहे। (पृष्ठ 53)


मेरे ख्याल से इस पंक्ति को  विस्तार दिया जा सकता था। कुछ दांव पेंच होते दिखाए जा सकते थे।  इससे कहानी में रोमांच बढ़ जाता। इसके बाद विवरण दिया है लेकिन द्वन्द का विवरण और होता तो अच्छा रहता। आँखों के सामने वह दृश्य लेखक उकेरते तो रोमांच बढ़ जाता। 

कहानी के अंत में एक प्रसंग है जिसमें कुछ किरदार कार के पास जाते हैं  और उन्हें कार खस्ता हालात में मिलती हैं। लेखक ने यह नहीं साफ़ किया है कि कार के साथ क्या होता है। बस यह बताया है कि ऐसा लगता है कि कार से कोई राकेट टकराया हुआ हो।

कार यूँ तबाह हुई पड़ी थी जैसे उस पर राकेट दाग दिया हो। (पृष्ठ 62)

यह पढकर मेरे मन में बस यही ख्याल आया था कि उस बियाबान जंगल में कार इतनी बुरी तरह क्षति ग्रस्त होती तो क्या किरदारों को उसकी आवाज़ सुनाई नहीं देती। सुनसान जंगल में गाड़ी के टूटने की आवाज़ तो बहुत साफ़ पता चल जाती और फिर किरदार कार से दूर भी नहीं थे।

अगर उस जगह केवल इतना लिखा होता कि उसके टायर्स को चाकू से चीर दिया गया था जिससे गाड़ी किसी काम की नहीं रही थी तो मेरे अनुसार ज्यादा तर्कसंगत होता। इससे शायद इतनी आवाज़ भी नहीं होती और इसलिए यह काम किरदारों को पता लगे बिना भी हो सकता था। अभी गाड़ी के क्षतिग्रस्त होने का प्रसंग मुझे तो तर्कसंगत नहीं लगा।

यह बात है तो छोटी लेकिन चूँकि खटकी तो लिख दी। इसके अलावा कई जगह ‘प्लान’ को ‘प्लैन’ लिखा है। कई जगह हिन्दी के शब्दों की जगह अंग्रेजी के शब्द इस्तेमाल किये हैं। इनकी जगह आसानी से हिन्दी के शब्द इस्तेमाल हो सकते थे। हाइट को ऊँचाई लिखा जा सकता था, प्लान को योजना लिखा जा सकता था,टैलेंट को प्रतिभा या हुनर। यह हिन्दी के ऐसे शब्द है जो बोल चाल की भाषा में प्रचलित हैं। ऐसे में इनका इस्तमाल करना ही मेरी नज़र में ठीक है।  कथानक में अंग्रेजी के भी कुछ वाक्य हैं। उनके अर्थ कोष्टक में दिए होते तो बेहतर रहता। पढ़ने वाले को अंग्रेजी आती है यह मानकर नहीं चलना चाहिए।

यह कुछ बातें हैं जो मुझे या तो खटकी या तो ऐसा लगा कि इन पर ध्यान देने की जरूरत थी।

उपन्यास रहस्य और रोमांच अंत तक बरकरार रखता है। हॉरर और रहस्य का अच्छा मिश्रण है। जब रहस्य खुलता है तो पाठक के रूप में मैं चकित हुआ जो कि मेरे लिए एक अच्छी रहस्य कथा का मापदंड  है।
मुझे उपन्यास पसंद आया और मैं नितिन जी के दूसरी कृतियों को भी पढ़ना चाहूँगा। आशा करता हूँ कि वह अब कोई वृद्ध कथानक पाठकों के लिए पेश करेंगे।

मेरी रेटिंग: 4/5


अगर आपने इस लघु-उपन्यास को पढ़ा है तो आपको यह कैसा लगा? अपने विचारों से मुझे जरूर अवगत करवाईयेगा। 


अगर आप इस लघु-उपन्यास को पढ़ना चाहते हैं तो इसे निम्न लिंक से प्राप्त कर सकते हैं:
किंडल

मैं अक्सर हॉरर रचनाएँ पढ़ता रहता हूँ। दूसरी हॉरर रचानाओं के विषय में मेरी राय आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
हॉरर


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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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6 Comments on “वेयर इस द वेयरवुल्फ – नितिन मिश्रा”

  1. बहुत अच्छी विस्तृत समीक्षा है। नितिन जी एक बढ़िया लेखक है। और मैं भी उनका एक 200-400 पेजेज के नॉवेल का वेट कर रहा हूँ। जब उन्होंने यह स्टोरी अपने ब्लॉग पर पोस्ट की थी तब 1 पार्ट पढ़ा था दूसरा पार्ट समय नही मिलने की वजह से नही पढ़ा था। पर बाद में पता चला की यह पेपरबैक में आ रही है तो मेरे लिए यह बहुत अच्छी खबर थी क्योकि मुझे बुक हाथ में लेकर पढ़ना ही पसंद है। अभी तक पूरी नही पढ़ी मैंने जल्द ही फ्लाई ड्रीम्स की सभी बुक्स लेने का विचार है तभी पढूंगा।

    1. जी, जरूर पढ़िएगा। उम्मीद करता हूँ यह किताब आपका भी उतना ही मनोरंजन करेगी जितना इसने मेरा किया।

  2. बहुत बढ़िया समीक्षा।
    नितिन जी की लिखी कहानियाँ बहुत अच्छी होती है।मैने इनकी डोंट पेनीक, शकुंतला इन,रैना @ मिडनाईट,अनुकृति नेक्स्ट कहानियाँ पढी है । एक बार पढना शुरू कर दिया तो पूरी पढे बिना नहीं रह सकते।हारर,सस्पेंस,थ्रिल और मिस्ट्री का बेहतरीन मिश्रण इनकी कहानियों में होता है।

    1. जी शुक्रिया। नितिन जी की रैना @मिडनाइट भी किताब के रूप में प्रकाशित हो रही है। जल्द ही उसे भी पढूँगा। उम्मीद है वो भी बेहतरीन होगी।

    1. आभार नितिन जी। अगली किताब का इंतजार है।

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