संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: पेपरबैक
पृष्ठ संख्या: 104
प्रकाशक: सूरज पॉकेट बुक्स
आईएसबीएन:
श्रृंखला: राजन इकबाल रिबोर्न #5
मूल्य: 165 Rs
राजन इकबाल पिछले जन्म में – शुभानन्द |
पहला वाक्य:
स्वतंत्रता दिवस मुबारक हो…भारत आजाद हो गया।
कहानी:
राजन इकबाल के अंदर मौजूद देशभक्ति की प्रबल भावना इसी जन्म में नहीं आई है बल्कि यह जन्म-जन्मान्तर से रही है। यह कहानी राजन और इकबाल के पिछले जन्म की है। वह जन्म जब वो राजीव और अहसान हुआ करते थे।
राजीव और अहसान दो दोस्त थे जिन्होंने भारत को स्वन्तन्त्र होते हुए देखा था। इन दोनों दोस्तों के भीतर देश के लिए कुछ करने का जज्बा था। लेकिन फिर परिस्थितियाँ कुछ ऐसी बनी कि राजीव और अहसान को अलग हो जाना पड़ा।
पर क्या ये हालात उनके अंदर से देश के प्रति कुछ करने का जज्बा मिटा पाए?
आखिर कौन थे राजीव और अहसान?
राजीव और अहसान को क्यों बिछड़ना पड़ा?
क्या ये अपने देश के लिए कुछ कर पाये?
क्या राजन इकबाल दोबारा कभी मिल पाये?
इन सभी प्रश्नों के जवाब आपको इस उपन्यास में मिलेंगे।
मुख्य किरदार:
राजन इकबाल – भारतीय सीक्रेट एजेंट
शोभा और सलमा – भारतीय सीक्रेट एजेंट
राजीव – राजन का पिछला जन्म
अहसान – इकबाल का पिछला जन्म
रतन सिंह – राजीव के इलाके का दरोगा
सेठ धनीराम – राजीव के इलाके का एक सेठ
बेनीलाल – राजीव के पिता
फारुख – अहसान के पिता
गिरधारीलाल – शहर में रहने वाला एक बूढा
दीनदयाल – सेठ धनीराम का सहायक
रशीद – अहसान का दोस्त
सलीमा – अहसान के कॉलेज में पढ़ने वाली एक लड़की जो उसे पसंद थी
कप्तान मनोज – राजीव का साथी
अजीत खुराना – एक आर्मी मेजर
अकबर हुसैन – एक व्यापारी जो जासूस थे
हफीज – अहसान का सहायक
शालिनी रावत – एक आर्मी डॉक्टर
अजय,वीर,सुखविंदर, अमजद – राजीव के साथी
मेरे विचार:
वैसे तो राजन इकबाल मूलतः एस सी बेदी जी के किरदार थे जिन्होंने इन्हें लेकर काफी उपन्यास लिखे। जब एस सी बेदी जी ने इन्हें लिखना बंद कर दिया था तो शुभानन्द जी ने इन किरदारों को लेकर एक नई सीरीज शुरू की थी जिसके उपन्यास राजन इकबाल रिबोर्न श्रृंखला के अंतर्गत आते थे।
‘राजन-इकबाल पिछले जन्म में’ इसी राजन इकबाल रिबोर्न श्रृंखला का पाँचवा भाग है। यह श्रृंखला राजन इकबाल श्रृंखला से इस मामले में अलग है कि इसमें शुभानन्द जी के इसमें शुभानन्द जी ने किरदारों का आधुनिकरण कर दिया है जिससे कथानक समसामयिक बन चुके हैं। वहीं अलग अलग प्रयोग भी इसमें उन्होंने किये हैं। प्रस्तुत उपन्यास भी ऐसा ही एक प्रयोग है।
जैसा की शीर्षक से साफ जाहिर है यह उपन्यास राजन इकबाल के पूर्व जन्म की कहानी है। इस उपन्यास की कहानी की शुरुआत राजन इकबाल के अस्पताल में होने से होती है। वो अस्पताल में भर्ती हैं और कोमा में हैं। और फिर उसके बाद इनके पिछले जन्म की कहानी शुरू होती है। पिछले जन्म में राजन इकबाल कौन थे? इनका जीवन कैसा रहा? और इनका अंत कैसे हुआ? यही सब मिलकर उपन्यास का कथानक बनता है। कहानी देश के आज़ाद होने से शुरू होती है और पाकिस्तान के साथ हुए एक मिशन पर जाकर खत्म होती है। इन सबके बीच राजीव और अहसान के बीच जो उतार चढ़ाव आते हैं वो पाठकों का मनोरंजन करते हैं।
राजन इकबाल श्रृंखला में इकबाल जिस प्रकार हास्य उत्पन्न करता है उसी प्रकार इधर भी अहसान का किरदार है। उसे लेकर जो कॉलेज का हिस्सा लिखा गया है और उसमें जो सलीमा और अहसान के बीच नोक झाँक होती है वह मुझे पसंद आया। अगर यह और होता तो मजा आता। वहीं राजीव की उम्र का यह हिस्सा हमको देखने को नहीं मिलता है जिसकी कमी मुझे खली। अगर यह भी होता मेरे ख्याल से उपन्यास का कथानक और ज्यादा रोमांचक हो जाता। राजन अक्सर शोभा से कटा कटा रहता है। ऐसा क्यों है इसका कारण भी इस उपन्यास में शुभानन्द जी ने देने की कोशिश की है जो कि मुझे अच्छा लगा।
उपन्यास में कमिया यूँ तो नहीं हैं लेकिन कुछ चीजों को साफ किया जाता तो शायद बेहतर होता। जैसे राजीव का लखनऊ छोड़कर दिल्ली रहने का प्रसंग है। राजीव दिल्ली तो चले जाता है लेकिन उसका अहसान से दोबारा सम्बन्ध बनाने की कोशिश न करना अटपटा लगा। दोनों की इतनी अच्छी दोस्ती थी और अहसान वहीं रह रहा था जहाँ वो पहले था। और राजीव जिस कारण से दिल्ली रह रहा था वह कारण कभी फलित नहीं हुआ था। ऐसे में राजीव का पत्र भी न लिखना थोड़ा अजीब लगा।
उपन्यास में एक और प्रसंग है जिसमें राजीव एक किरदार के पीछे पीछे धारमेर तक पहुँच जाता है। लेकिन कुछ देर पहले ही हम देखते हैं कि यह किरदार राहतगढ़ में राजीव से पीछा छुड़ाने में कामयाब हो गया था। ऐसे में राजीव को कैसे पता चला कि वो धारमेर जायेगा? यह ऐसा है प्रश्न है जिसका उत्तर कहानी में नहीं दिया गया है। अगर दिया गया होता तो बेहतर होता।
वहीं राजीव की टीम जब भारतीय छावनी से थोड़ा सफर करके पाकिस्तान में दाखिल होते है तो वहाँ पाकिस्तान की छावनी न होना अटपटा लगता है। ऐसे संवेदनशील हिस्से में छावनी तो रही होगी। हाँ, इधर उनका सीधा प्रवेश न दिखाकर कोई रोमांचक प्रसंग डाला जा सकता था।
कहानी 60 के दशक की है। इसमें एक जगह शालिनी का सनस्क्रीन लगाने का जिक्र है। मुझे नहीं पता कि 60 के दशक में सनस्क्रीन भारत में प्रचलन में था या नहीं। अभी भी मेरे आस पास लोग इसका इतना प्रयोग नहीं करते हैं। ऐसे में यह सुनकर अटपटा लगा। हाँ, इस जन्म की बात होती तो शायद अटपटा नहीं लगता।
ऊपर दी हुई यही कुछ चीजें थी जो कि मुझे उपन्यास में अटपटी लगी थी। बीच में एक आध जगह और कुछ रहा होगा तो वो मुझे याद नहीं है। हाँ, राजन इकबाल पिछले जन्म में आप में एक अलग उपन्यास है। मुझे लगता है कि अगर इसको राजन इकबाल से न जोड़ा जाता तो भी एकल उपन्यास के तौर पर यह चल सकता था। खैर, उपन्यास को राजन इकबाल से जोड़कर भी इसके एंटरटेनमेंट कोशेंट (entertainment quotient) में कमी नहीं आई है।
उपन्यास ने मेरा भरपूर मनोरंजन किया। उपन्यास में तेजी से घटता घटनाक्रम है, समय समय पर घुमाव आते हैं और किरदारों के जीवन के कई रोचक पहलू पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किये जाते हैं। अगर आप राजन इकबाल श्रृंखला के पाठक हैं तो आपको यह उपन्यास जरूर भायेगा। अगर नहीं भी हैं तो एक बार इसे पढ़ने की कोशिश कीजियेगा निराश नहीं करेगा।
रेटिंग: 3/5
प्रश्न:
प्रश्न 1: क्या आप पुनर्जन्म में विश्वास रखते हैं? अगर आपको अपना अगला जन्म चुनने का मौका मिले तो आप अपने अगले जन्म में क्या बनना चाहेंगे?
प्रश्न 2: राजन इकबाल के बाल उपन्यास सभी के बचपन का हिस्सा रहा है। ऐसे कौन से किरदार हैं जो कि बचपन में आपको पसंद आते थे और आप उनके बड़े होने के बाद की कहानियों को पढ़ना चाहेंगे?(मेरे लिए तो स्कूबी डू की टीम ऐसे किरदार हैं जिनके व्यस्क होने की बाद की कहानी मैं जानना चाहूँगा।)
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शुभानन्द जी के अन्य उपन्यासों के प्रति मेरी राय आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
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राजन इकबाल रिबोर्न सीरीज के अन्य उपन्यासों के प्रति मेरी राय आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
राजन इकबाल रिबॉर्न
©विकास नैनवाल ‘अंजान’
पहले प्रश्न की बात करूँ तो, हाँ मैं पुनर्जन्म मे विश्वास रखता हूँ।
पर यदि मुझे अगले जन्म पर नियंत्रण मिल जाए, तो मैं अगला जन्म ही नही लूँगा।
पृथ्वी धीरे-धीरे अपने पतन की ओर बढ़ रही है। आज ही इतना बुरा हाल है तो अगले जन्म मे पृथ्वी पर जीवन और भी बुरा होगा।
वही राजन इकबाल के बारे मे मुझे आपके ब्लॉग से ही पता चला था पहली बार।
और क्योंकि मैने बचपन मे कोई उपन्यास नही पढ़े थे इसलिए किसी उपन्यास के किरदार के बारे मे भी नही कह सकता।
हा बचपन मे कार्टून और एनिमे देखे थे बहुत।
बचपन मे मेरे प्रिय एनिमे मे से था Digimon Adventure और इसका चौथा भाग Digimon frontier।
Digimon के हर नए भाग मे नए नायक होते थे, पर मुझे DA और DF के ही मुख्य नायक बेहद पसंद थे।
मैं इन्ही की कहानी आगे तक देखना चाहूँगा। ऐसे DA के 20 वर्ष पूरे होने पर 6 फिल्मे बनाई गई है। पर वह कहानी DA के नायाको के वयस्क काल की है और अधिकतर प्रसंसको को यह फिल्मे पसंद नही आई है।
रोचक। मुझे न जाने क्यों यह लगता है कि जबसे मानव जाती का जन्म हुआ है मौजूदा पीढ़ी को यही लगता है कि आने वाला वक्त बद्द्तर होगा। व्यक्तिगत तौर पर मेरा मानना है कि जैसे हम इस वक्त में ढल गए वैसे ही आगे आने वाले मानव आने वाले वक्त के हिसाब से ढल जायेंगे।
ऐनिमे मैंने इक्का दुक्का ही देखें हैं। कुछ तो इसलिए देखता था क्योंकि उनमें हॉरर के तत्व ज्यादा रहते थे। पोकेमोन के कुछ एपिसोड मैंने देखे थे। दिजीमोन का नाम सुनकर मुझे उसी की याद आई। डिजिमोन देखने की कोशिश रहेगी।
रही बात सीक्वल फिल्मों की तो उसके विषय में मेरा अनुभव यह कहता है कि वो अक्सर निराश करती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि कई बार फिल्म कार केवल पुरानी लोकप्रियता को भुनाने की कोशिश करते हैं जिसके चलते वो कहानी पर उतना ध्यान नहीं दे पाते हैं। यही शायद इन फिल्मों के साथ रहा होगा।