पिंटू

रेटिंग: 3/5
10 फरवरी 2018 को पढ़ी

संस्करण विवरण:
फॉर्मेट : पेपरबैक
पृष्ठ संख्या: 56
प्रकाशक: राज कॉमिक्स
आईएसबीएन : 9789332412439
लेखक : तरुण कुमार वाही, चित्रांकन: तौफीक, सम्पादक: मनीष गुप्ता

कहते हैं बच्चे मन के सच्चे होते हैं। उनके अन्दर  कोई बनावटीपन नहीं होता है। बस होती है तो एक तीव्र इच्छा। अपने आस पास के दुनिया को जानने की और अपने मासूम मन में उत्पन्न होते सवालों के जवाब पाने  की।

पिंटू भी ऐसा ही बच्चा था। तेरह वर्षीय पिंटू के मन में भी सवाल उठते थे और वो उनके जवाब जानने को आतुर हो उठता था। ये जुदा बात थी कि जवाब जानने की इस ललक में उसे सही गलत का ध्यान ही नहीं रहता था। उसे केवल उत्तर से मतलब था। उस उत्तर पाने की प्रक्रिया में किसपे क्या गुजरती है उसे इससे कोई लेना देना नहीं होता था।  इसी सनक में उसने ऐसे जघन्य अपराधों  को अंजाम दे दिया था कि उसके पिता प्रोफेसर विजय पाटिल को एंथोनी से मदद की गुहार लगानी पड़ी।

ऐसा क्या किया था पिंटू ने?   क्या एंथोनी पिंटू और प्रोफेसर पाटिल की मदद कर सका? आखिर पिंटू किधर था और क्या नया करने की सोच रहा था?

ऐसे ही कई सवाल होंगे आपके मन में। हैं न? सवालों के जवाब तो आपको इस कॉमिक को पढ़कर ही मिलेंगे। तो फिर देर किस बात की है।

सही या गलत क्या है? सही और गलत के पैमाने से नवजात बच्चा वाकिफ नहीं होता है। जैसे जैसे वो उम्र में बढ़ता है घर परिवार और उसके आस-पास का समाज ही उसके अन्दर सही और गलत के मापदंड तय करता है। लेकिन क्या हो अगर किसी के अन्दर सही और गलत के पैमाने ही न हो। बस हो तो एक जिज्ञासा और उस जिज्ञासा को शांत करने के लिए वो कुछ भी करने को तैयार हो। फिर उसे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि जो वो कर रहा है वो सही है या गलत। ऐसा ही कुछ किरदार है पिंटू का। कॉमिक्स पढ़ते हुए मैं यही सोच रहा था कि अगर ऐसा कोई किरदार असल जीवन में हो तो क्या होगा? और ये सोचकर सचमुच मेरे बदन में एक सिहरन सी दौड़ गयी। कॉमिक में पिंटू का किरदार मुझे पसंद आया। और जैसे कृत्य उसे करते हुए दर्शाया गया वो सचमुच डराने वाले हैं।

कॉमिक में एंथोनी की एंट्री जिस तरह से हुई वो मुझे इतनी पसंद नहीं आई। मुझे लगता था कि एंथोनी किधर से आता  है और किधर जाता है ये एक राज था। और ऐसा होना भी चाहिए क्योंकि अगर ऐसा नहीं होगा तो उसके दुश्मन दिन में जाकर उसकी कब्र को तहस नहस कर सकते हैं और उसकी लाश को नुक्सान पहुँचा सकते हैं। उस वक्त उन्हें कौन रोकेगा क्योंकि एंथोनी की आत्मा तो रात को ही शरीर में प्रवेश कर सकती है। हो सकता है पुरानी किन्ही कोमिकों में  इसका लॉजिक दिया हो क्यों एंथोनी के दुश्मन दिन में उसकी कब्र के निकट नहीं जाते। लेकिन मुझे तो प्रोफेसर पाटिल का एंथोनी को इतनी आसानी से उसकी कब्र के निकट ढूँढ निकालना कुछ जमा नहीं। मेरे ख्याल से उनकी मुलाकात और रोचक ढंग से करवाई जा सकती थी।

हाँ, एक बात जानकर मुझे जरूर आश्चर्य हुआ कि इंस्पेक्टर इतिहास डी सी पी बन गया है। जब मैं शुरुआत में कॉमिक्स पढता था तो इंस्पेक्टर इतिहास और इंस्पेक्टर चीता मुझे जुड़वा लगते थे। उसके बाद कॉमिक पढ़नी छूट गयी। अब पहली बार ये पता चला कि इतिहास की पदोन्नति हुई है तो अच्छा लगा। ऐसा लगा जैसे आप किसी जान पहचान से बहुत वर्षों बाद मिल रहे हो और आपको पता चलता हो कि उसकी तरक्की हो गयी है। जैसी सुखद अनुभव तब होता है ये अनुभव भी ऐसा ही था।  अगर किसी को आईडिया हो कि ये किन कॉमिक्सों  में हुआ तो जरूर बताईयेगा। मैं उन्हें ढूँढकर पढ़ना चाहूँगा।

इसके इलावा कहानी मुझे पसंद आई। कहानी में अंत से पहले तगड़ा मोड़ आता है जिसका मुझे अंदेशा नहीं था। इसने प्रभावित किया। हाँ, अंत में दूसरा मोड़ अटपटा लगा। खलनायक अपना काम करके अपने मुख्य मकसद पूरा करने के लिए एक जगह के लिए निकलता है लेकिन उससे पहले ही कोई और उधर पहुँचकर अपना खेल खेल जाता है। अब खलनायक के बाद वो बन्दा उधर से निकला था। उसने खलनायक का पीछा किया था और उसके अन्दर आने से पहले ही अपनी चाल चल दी थी। ये बिंदु कमजोर लगा क्योंकि इतने गुप्त तरीके से फेर बदल करना असंभव सा लगता है। मुझे पता है पाठक को थोड़ा सा आश्चर्य में डालने के लिए ऐसे मोड़ को लिखा गया है लेकिन लेखक मोड़ के पीछे के विवरण से मुझे तो सन्तुष्ट नहीं कर पाया। आपको कर पाया हो तो पता नहीं। (यहाँ आप सोच रहे होंगे कि मैं क्या गोल मोल बातें करने लग गया हूँ। मैं साफ़ बात लिख सकता था लेकिन उससे कहानी उजागर होने का अंदेशा होता तो इस तरह घुमाकर बात लिखी है। अगर आपने कॉमिक पढ़ी है तो शायद आप मेरी बात समझ जायेंगे और अगर नहीं पढ़ी है तो पढने के बाद समझ जायेंगे। हा हा अब और क्या कहूँ।)

खैर, कॉमिक में कुछ चीजें और मुझे खटकी। वो निम्न हैं:

 एक पैनल (पृष्ठ 33)  मुझे अजीब लगा। प्रोफेसर पाटिल कहानी सुनाना खत्म करता है तो उसके तुरंत बाद ही एंथोनी उस पर वार कर देता है।  एंथोनी इतनी देर तक उसकी बात सुन रहा था। उसे पता था वो उसके पास क्यों आया है तो उसके बाद ऐसी बचकानी हरकत उसके चरित्र पे फिट नहीं बैठती है। हाँ, कोबी ऐसी हरकत करे तो समझ भी आता है।

 एक फ्रेम में (पृष्ठ 35) प्रोफेसर पाटिल की मूछें गायब हो गयीं थी जबकि ज्यादातर पैनल में उसकी मूँछें हैं। ये छोटी सी गलती है लेकिन खटकी तो लिख दी।

हाँ, कॉमिक पढ़ते हुए मैं कवर के विषय में भूल गया था। कवर में एक तोता दिखता है। न जाने आवरण बनाने वाले ने क्या सोचकर पिंजरे में तोता बनाया। अगर आपने एंथोनी को पढ़ा है तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि उधर तोते की जगह किसे होना चाहिए था।

बाकी कॉमिक मुझे पसंद आई। मेरे हिसाब से एक अच्छी कॉमिक है जिसे एक बार पढ़ा जा सकता है। एक दो बिन्दुओं (जिनका जिक्र ऊपर है ही) पे काम किया होता तो कॉमिक की कहानी और बढ़िया बन जाती। उनके बिना भी मनोरंजन तो करती है।

अगर आपने कॉमिक को पढ़ा है तो आपकी इसके विषय में क्या राय है? जरूर टिपण्णी में बताईयेगा।
अगर कॉमिक को नहीं पढ़ा है और पढ़ना चाहते हैं तो निम्न लिंक पर जाकर मँगवा सकते हैं:
राज कॉमिक्स
अमेज़न


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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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2 Comments on “पिंटू”

    1. हम्म … बढ़िया। लेकिन आपकी टिपण्णी का अर्थ समझ में नहीं आया।

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