कुछ दिनों पहले मामा के घर गया था तो उनके कॉमिक्स के कलेक्शन में से कुछ कॉमिक्स लाया। कॉमिक्स ढूँढने के दौरान उन्होंने बाँकेलाल की इन दो कॉमिक्स के विषय में बताया था और इनकी काफी तारीफ की थी। दोनों एक ही कहानी के भाग हैं इसलिए इन्हें एक साथ मैं पढ़ना चाहता था। यही कारण है दोनों भाग उनसे माँग लिए। वरना मेरे साथ ऐसा कई बार हुआ है कि एक भाग तो आसानी से मिल जाता है लेकिन दूसरा भाग ढूँढने के बाद भी नहीं मिलता।
चूँकि गधाधारी से शुरू हुई कहानी सोने की लीद पर जाकर खत्म होती है तो मैं इस पोस्ट में इन दोनों कॉमिक्स के विषय में ही बात करूँगा।
गधाधारी और सोने की लीद |
गधा धारी
संस्करण विवरण:
फॉर्मेट : पेपरबैक
पृष्ठ संख्या : 48
प्रकाशक : राज कॉमिक्स
आईएसबीएन: 9789332415454
लेखक : नितिन मिश्रा, आर्ट व इंकिंग: सुशांत पंडा, कैलीग्राफी : हरीश शर्मा, सम्पादक: मनीष गुप्ता
कहानी:
राजा विक्रम सिंह से छुटकारा पाने के लिए बाँकेलाल ने इस बार एक नई योजना बनाई थी। योजना के अनुसार बाँकेलाल किसी ऐसे देवता की तपस्या करता जो कि वरदान आसानी से दे देते हों। बाँकेलाल ने विशालागढ़ पुस्तकालय में ऐसी किताब खोजी और अपने मतलब के देवता का नाम जानकर निकल पड़ा अपनी हसरत पूरी करने के लिए।
लेकिन आदमी जैसा सोचता है वैसा होता थोड़े न है? और फिर बाँकेलाल को तो कर बुरा हो भला का श्राप मिला हुआ है।
कई मुसीबतों से जूझकर बाँकेलाल वरदान पाने में तो सफल हो गया लेकिन उधर ऐसी चूक हो गयी कि बाँकेलाल को लेने के देने पड़ गये।
आखिर ऐसा क्या हुआ बांकेलाल के साथ? वरदान मांगते हुए उससे क्या गलती हुई?
और आखिर कैसे बना बाँकेलाल गधा धारी??
वही इन सब से अनजान विशाल गढ़ के वासियों को पता ही नहीं था कि कोई उनकी तरफ बढ़ रहा है। कोई ऐसा जो विशाल गढ़ से बदला लेना चाहता है।
आखिर कौन था वो व्यक्ति जो विशाल गढ़ से बदला लेना चाहता था? वो ऐसा क्यों चाहता था?
मेरे विचार:
बाँकेलाल के कॉमिक्स अगर आप पढ़ते हैं तो यह जानते होंगे कि लगभग सभी की कहानी एक ही तरह से शुरू होती है। बाँकेलाल इस फिराक में रहता है कि किस तरह विशालगढ़ की गद्दी हथियाए और इस कारण जो भी योजना बनाता है उसमें उसे लेने के देने पड़ जाते हैं। और उसकी हरकतों से उत्पन्न हुई परिस्थितियों से हास्य उत्पन्न होता है।
गधाधारी में भी मूल कहानी ये ही है। बाँकेलाल वरदान पाकर राजा विक्रम सिंह को अपने रास्ते से हटा देना चाहता है लेकिन उसका वरदान उल्टा पड़ जाता है।
वरदान पाने के चक्कर में वो कई किरदारों से टकराता है। लम्बडिंग, आचार्य पप्पी पौ,और राक्षस झप्पी पाई से उसकी मुलाक़ात होती है। इनके साथ की गयी उसकी मुलाक़ात मजेदार होती है। और फिर कुछ ऐसा होता है कि उसके पीछे इन लोगों के सिवा और भी कई लोग पड़ जाते हैं। इससे जो परिस्थितियाँ उत्पन्न होती हैं उनसे भरपूर हास्य उत्पन्न होता है।
वहीं कथानक में गलाटा गुरु नामक जादूगर भी इस कहानी में है जो कि अपने अपमान का बदला लेना चाहता है। वो विशाल गढ़ की तरफ बढ़ चुका है। यह किरदार अलग कनफ्लिक्ट पैदा कर रहा है और पाठक के तौर पर आप जानते हो कि गलाटा गुरु और बाँकेलाल का टकराव किसी न किसी तरह से होना निश्चित है। पाठक को इस टकराव के विषय में पढ़ने की उत्सुकता भी रहेगी।
गधा धारी की कहानी ऐसे मोड़ पर खत्म होती है कि आप इसके दूसरे भाग सोने के लीद को पढ़ना चाहेंगे ही चाहेंगे। मेरे पास तो थी तो मैंने गधाधारी खत्म करते ही सोने की लीद शुरू कर दी थी।
रेटिंग: 4/5
सोने की लीद
संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: पेपरबैक
पृष्ठ संख्या: 48
प्रकाशक: राज कॉमिक्स
आईएसबीएन:
लेखक : नितिन मिश्रा, आर्ट व इंकिंग: सुशांत पंडा, कैलीग्राफी : हरीश वर्मा, सम्पादक: मनीष गुप्ता
कहानी:
कहाँ तो बाँकेलाल चला था महाराज विक्रम सिंह की मौत का इंतजाम करने लेकिन अब उसके खुद के जान के लाले हो रखे थे। बाँकेलाल के पीछे साधुओ की टोली से लेकर पूरा विशाल गढ़ पड़ चुका था। सभी को लग रहा था कि बाँकेलाल के कंधे पर मौजूद गधा सोने की लीद देता था। अब सभी को सोने की लीद चाहिए थी।
और बाँकेलाल अपने कंधे में गधे को लटकाए मारा मारा फिर रहा था। बाँकेलाल की मुसीबतें अभी कम नहीं होने वाली थी बल्कि उन्हें अभी और बढना था।
वही दूसरी ओर डाकू छड़प्पा सिंह, जादूगर गलाटा गुरु और राक्षस दिलरुबा भी विशालगढ़ की तरफ आ रहे थे। विशाल गढ़ की तरफ आने के इनके अपने अपने मकसद थे। और वो मकसद विशाल गढ़ की भलाई तो कतई नहीं थे।
डाकू छड़प्पा सिंह, जादूगर गलाटा गुरु और राक्षस दिलरुबा क्यों विशालगढ़ की तरफ आ रहे थे? उनका मकसद क्या था?
क्या लोगों को सोने की लीद मिल पायी?
क्या बाँकेलाल अपने कंधे पर मौजूद मुसीबत से छुटकारा पा पाया?
क्या वो मायावी गधा सचमुच सोने की लीद देता था?
क्या विशालगढ़ और उसके वासी अपनी तरफ बढती मुसीबतों से छुटकारा पा पाये ?
मेरे विचार:
गधाधारी से शुरू हुई कहानी सोने की लीद पर आकर खत्म होती है। इस कहानी की शुरुआत तो गधाधारी के खत्म होने से होती है लेकिन इसमें काफी नए किरदार जुड़ जाते हैं। गब्बर सिंह की पैरोडी करते हुए छड़प्पा सिंह का किरदार रचा गया है। शोले का फेमस सीन की पैरोडी हास्य उत्पन्न करती है।
दिलरुबा का किरदार भी रोचक है।
इन सब नये किरदारों के आने से एक और आयाम कहानी में जुड़ जाता है। पुराने (गधाधारी के) किरदारों से घिरा बाँकेलाल तो है ही। ये भी हास्य उत्पन्न करने में कामयाब होते हैं।
परन्तु कॉमिक्स पढ़ते हुए कई बार लगता है कि जैसे कहानी को जानबूझ कर खींचा जा रहा है। इस भाग में मुझे थोड़ा कसाव की कमी लगी। ये कुछ ऐसा ही था जैसे अगर आप कोई ऐसी एक्शन फिल्मे देखें जिसमे लगातार एक्शन ही हो तो कुछ देर में आप उससे बोर होने लगते हैं। इसमें भी मुझे ऐसा ही लगा। हो सकता है ये इसलिए भी हुआ हो क्योंकि मैंने गधाधारी खत्म करते ही इसे उठा लिया था। अगर थोड़ा रूककर उठाता तो शायद मेरा अनुभव कुछ और होता।
खैर, कभी ऐसा भी करूँगा।
नितिन मिश्रा जी अच्छा लिखते हैं इस बात में कोई शक ही नहीं है। इस कहानी में हास्य भरपूर है। और अंत में सभी कनफ्लिक्ट रिसोल्व हो जाते हैं।
एक मजेदार पैसा वसूल कॉमिक्स।
रेटिंग: 3/5
क्या आपने ये दो कॉमिक्स पढ़े हैं? अगर हाँ, तो आपको ये कैसे लगे? अपने विचारों से मुझे अवगत करवाईयेगा।
मैंने राज कॉमिक्स के दूसरे कॉमिक्स भी पढ़े हैं। उनके विषय में मेरी राय आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
राज कॉमिक्स
नितिन मिश्रा जी की लिखी दूसरी चीजें भी मैंने पढ़ी हैं। उनके विषय में मेरे विचार आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
नितिन मिश्रा
© विकास नैनवाल ‘अंजान’