किताब परिचय: एर्यनम का रक्षक – भानुप्रताप यादव ‘शुभारंभ’

भानुप्रताप यादव ‘शुभारंभ’ द्वारा लिखित एर्यनम का रक्षक उनकी संतप्तभूमि बेरुंडा रचना (चतुर्थांश) की पहली कड़ी है। पुस्तक फ्लाईड्रीम्स प्रकाशन से प्रकाशित हुई है। पुस्तक के विषय में अधिक जानकारी और पुस्तक का एक छोटा सा अंश आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:

पुस्तक के विषय में

रामायण काल की एक घटना जो इतिहास के पन्नों से मिट चुकी है, जिसने क्रूरता और षड्यंत्र की सारी सीमाएँ लाँघकर रच दिया था एक रक्त रंजित इतिहास।

यह कहानी है इतिहास के अंधकार में खो चुके एक विशाल साम्राज्य की। एक घटना जिसके पीछे छिपा हुआ है भयावह रहस्य जो आने वाले समय में शापित भूमि एर्यनम को फिर से पुनर्जीवित कर देने वाला था।

इस सन्तप्तभूमि के उद्धार हेतु अवतरित हुआ वह योद्धा, जो कहलाया एर्यनम का रक्षक।

जागृत हो चुके हैं ग्यारह हज़ार वर्षों तक मृत पड़े दानवीय योद्धा। तो क्या प्रारंभ हो चुका है एक और विध्वंस?

लेकिन सबसे बड़ा प्रश्न क्या एर्यनम का रक्षक कर पायेगा इन सभी दुष्टों का संहार और बचा पायेगा अपनी मातृभूमि को?

एक महागाथा, संतप्तभूमि बेरुंडा रचना (चतुर्थांश) की पहली कड़ी- एर्यनम का रक्षक (विलुप्त एर्यनम साम्राज्य की महागाथा)

पुस्तक लिंक: अमेज़न

पुस्तक अंश

त्रेतायुग की समाप्ति से पूर्व आज से ग्यारह हजार वर्ष पहले जब लंका का युद्ध समाप्त होने के पश्चात श्रीराम माता सीता को लेकर पुनः अयोध्या लौट रहे थे तब उन्होंने लंका का साम्राज्य अपने भक्त तथा रावण के सबसे छोटे भाई विभीषण को सौंप दिया था परंतु राक्षस अभी भी पूर्णतः समाप्त नहीं हुए थे और ना ही उनकी राक्षसी प्रवृत्तियाँ। इस युद्ध को प्रचंड रूप और उग्रता प्रदान करने वाली राक्षसी शूर्पणखा को उन्होंने ऐसे ही छोड़ दिया था और यही उनकी सबसे बड़ी गलती थी या कहें एक भयानक घटना को जन्म देने वाली शुरुआत।
जब युद्ध समाप्त हुआ तब शूर्पणखा लंका छोड़कर एर्यनम चली गई। उस समय वह गर्भवती थी। कुछ समय पश्चात उसने वहाँ दो संतानों को जन्म दिया जिनमें से एक पुत्र था और एक पुत्री।
शूर्पणखा के पति का नाम विद्युतजिह्वा था और वह राजा कालकेय का सेनापति था। कालकेय के साथ हुए युद्ध में रावण ने विद्युतजिह्वा को मार डाला था।
अपने पति की मृत्यु से उपजी क्रोधाग्नि से भरकर ही शूर्पणखा ने रावण को इस युद्ध में झोंका था परंतु यह भी सत्य था कि उसे राम के प्रति वासना का भाव जागृत हो गया था। जो भी हो! अपने आपको कुरूप बनाने के पश्चात वह ईर्ष्या, द्वेष और ना जाने कितनी व्याधियों से ग्रसित हो गई थी और यही व्याधियाँ उसके पुत्र और पुत्री में अनुवांशिकीय रूप से ढल चुकी थी।
राक्षसी कुल के होने के कारण उनमें राक्षसी शक्ति तो अपूर्व थी ही। साथ ही उनमें क्रूरता और अमानवीयता भी कूट-कूट कर भरी हुई थी। इस आधार पर उन्होंने अपने कई अनुयायी बना लिए थे जो उन्हीं की तरह निर्दयी और अमानवीय थे। उसने अपनी पुत्री का नाम लालसा रखा और अपने पुत्र का नाम भेरूँड।
कुछ समय पश्चात एर्यनम में यह विख्यात हो गया था कि लालसा और भेरूँड अमानवीय तो थे ही साथ ही वे नरभक्षण भी किया करते थे। जो व्यक्ति उनका साथ नहीं देता था वह अगले दिन का सूर्योदय नहीं देख पाता था।
उस समय लोगों के समक्ष केवल दो ही विकल्प हुआ करते थे एक या तो उनके अनुयायी बन जाओ या फिर अपनी मौत को स्वीकार कर लो।
भेरूँड ने एर्यनम की दसों दिशाओं में हाहाकार मचा रखा था। वहाँ की धरती रक्त की नदियों से पट पड़ी थी। भेरूँड की बहन लालसा ने सभी लोगों में लालसा का भाव उत्पन्न कर दिया था जिससे वे लालची और अहंकारी हो गए थे। हर समय एर्यनम में कोहराम छाया रहता था और हर क्षण एक नया युद्ध हो रहा था जिसे देखकर शूर्पणखा और उसकी दोनों संतानें आनंदित होते थे। भेरूँड के आतंक से सभी त्रस्त थे। उसने संपूर्ण एर्यनम पर अपना आधिपत्य जमा लिया था।
फिर कुरु वंश के एक प्रतापी राजा ने जिनका नाम विजेयक आर्य था। एर्यनम की पीड़ित प्रजा के द्वारा भेजे गए एक सन्यासी का अनुरोध स्वीकार किया तथा भेरूँड और उसकी भेरूँडा सेना पर आक्रमण कर दिया।
निरंतर कई दिनों तक चले इस महायुद्ध में महाराजा विजेयक के कई सैनिक मारे गए तथा वे स्वयं भी घायल हो गए परंतु उन्होंने बलशाली भेरूँड के समक्ष हार नहीं मानी और लगातार युद्ध करते रहे। आखिरकार उन्होंने चौरासीवें दिन भेरूँड और उसकी सेना को झुकने पर मजबूर कर दिया और उसकी सेना के कई सैनिकों को बंदी भी बना लिया। भेरूँड वहाँ से भागने में सफल रहा कदाचित उसकी शक्ति पूरी तरह क्षीण हो चुकी थी। एर्यनम के हथियाये हुए राजमहल से विजेयक ने लालसा को गिरफ्तार किया और उसे बंदीगृह में कैद करने के लिए आदेश सुनाया। शूर्पणखा भी वहाँ से भाग निकली हालांकि वह बहुत वृद्ध हो गई थी परंतु उसमें आसुरी शक्तियाँ अभी भी व्याप्त थी इसलिए उसने एर्यनम को श्राप दिया कि संपूर्ण एर्यनम सुनामी के कहर से तहस-नहस हो जाएगा तथा समुद्र में परिवर्तित हो जाएगा। वहाँ केवल और केवल रेत रह जाएगी। वह रेत जो अनंत काल तक लोगों को अपने अंदर दफ़न करती रहेगी। फिर हर एक अच्छी और सच्ची चीज का विनाश करने के लिए मेरा पुत्र पुनः लौटकर आएगा और सर्वनाश कर देगा इस पृथ्वी का।
युद्ध समाप्ति के पाँचवें दिन अचानक एक भयानक सुनामी आई और उसने संपूर्ण एर्यनम को तबाह कर दिया। लोग रोते बिलखते रहे परंतु महाराजा विजेयक भी उनकी सहायता ना कर पाए। इस तरह सारे एर्यनम का विनाश हो गया।
“क्या ये पूरी कहानी है?” बच्चे ने मासूमियत से पूछा।
“मुझे जितनी आती है मैंने तुम्हें सुना दी अब जाओ और सो जाओ।” वृद्धा ने थोड़ी कठोर आवाज में कहा।
“ठीक है।” बच्चा पैर पटकते हुए अपने बिस्तर की ओर रवाना हो गया।
“आपको उसे इस तरह की भयानक कहानियाँ नहीं सुनानी चाहिए दादी।” एक लड़की ने मधुर आवाज में कहा। 
“वह अभी बच्चा है।” 
“तो इसमें मैंने कौन सी गलती की। मैं उसे अपना इतिहास ही तो बता रही थी।” वृद्धा ने कहा।
“हाँ बता तो रहीं थीं पर! चलिए ठीक है आप भी सो जाइए।” लड़की बोली और अपने बिस्तर में जाकर सो गई।
“जिस दिन तुम लोगों को पूरी कहानी बताऊँगी उस दिन से चैन की नींद सोना भूल जाओगे।” वृद्धा ने काँपती हुई धीमी आवाज में कहा और उसके हाथ काँपकपाने लगे।
*****
तो यह था भानुप्रताप यादव के उपन्यास एर्यनम का रक्षक का एक छोटा सा अंश। उम्मीद है यह अंश आपको पसंद आया होगा। पुस्तक अमेज़न पर पेपरबैक और किंडल फॉर्मैट में उपलब्ध है। किंडल अनलिमिटेड सब्सक्रिप्शन धारक बिना किसी अतिरिक्त खर्च के इसे पढ़ सकते हैं। 
पुस्तक लिंक: अमेज़न

लेखक परिचय 

भानुप्रताप यादव 

लेखक भानुप्रताप यादव ‘शुभारंभ’ मध्य प्रदेश के सागर जिले में निवासरत हैं इन्होंने अपनी पोस्ट ग्रेजुएशन कॉमर्स समूह से पूर्ण की है तथा वर्तमान समय में एक निजी आर्मी स्कूल में शिक्षक के तौर पर कार्यरत हैं। 
इन्हें बचपन से ही कविताएँ एवं कहानियाँ लिखना पसंद था। इनकी हॉबी कविताएँ तथा उपन्यास लिखना और पेंटिंग करना है। इनका एक यूट्यूब चैनल भी है जिसका नाम ‘शुभारंभ बुक्स एंड योगा’ है जिसमें यह अलग-अलग जॉनर की बुक्स का रिव्यू देते हैं और योगा पद्धति पर उपयोगी वीडियो बनाते हैं। 
इनके द्वारा लिखा गया एक ऐतिहासिक उपन्यास ‘मणिकर्णिका शौर्य’, एक कविता संग्रह ‘आत्मशक्ति की यात्रा’ और संतप्तभूमि बेरुंडा रचना (चतुर्थांश) का प्रथम भाग एर्यनम का रक्षक प्रकाशित हो चुका हैं।  द्वितीय भाग वितंडा का अभिशाप शीघ्र प्रकाश्य है। 

लेखक से संपर्क करने हेतु – bhanuy1994@gmail.com

नोट: ‘किताब परिचय’ एक बुक जर्नल की एक पहल है जिसके अंतर्गत हम नव प्रकाशित रोचक पुस्तकों से आपका परिचय करवाने का प्रयास करते हैं। 

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