खून की प्यासी – अनिल मोहन

रेटिंग : २.५/५
उपन्यास ख़त्म करने की दिनांक : २१ दिसंबर, २०१४


संस्करण विवरण :
फॉर्मेट : पेपरबैक
पृष्ठ संख्या : २२२
प्रकाशक : रवि पॉकेट बुक्स

पहला वाक्य :
“प्रणाम  भाभी।” एयरपोर्ट से बाहर आते ही राजेश ने प्रसन्नता भरी मुद्रा में चालीस वर्षीय विमला देवी के पाओं को छूकर कहा -“सब ठीक हैं ना ?” 


वीरेन्द्र सिन्हा एक नामचीन व्यापारी हैं। जब उनका छोटा भाई अमेरिका से बिज़नस मैनेजमेंट का कोर्स करके आता है तो उनकी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं रहता। वो अब अपनी जिम्मेदारी का कुछ भाग अपने भाई के कन्धों में डालने की सोचते हैं। लेकिन उनकी ख़ुशी को ग्रहण तब लग जाता है जब उनको एक गुमनाम फ़ोन आता है जो उन्हें बताता है कि उनका भाई उनकी बीवी कमला और उसके होने वाले बच्चे को रस्ते से हटाकर खुद उनकी पूरी जायदाद का वारिस बनना चाहता। वो अपने भाई को बेहद चाहते हैं लेकिन ये बात उनके मन में शक पैदा करती है।  तो क्या सचमुच राजेश अपनी भाई की जायदाद को हासिल करना चाहता था? ये गुमनाम आदमी कौन था जिसने वीरेन्द्र को फोन किया था और क्यूँ? क्या विमला की जान वाकई ख़तरे में थी ? और क्या राज़ है खून की प्यासी का ? कौन थी ये खून की प्यासी और कैसे बनी वो खून की प्यासी ??

यही सवाल आपके जेहन में उठ रहे हैं न । मेरे भी जेहन में उठे थे लेकिन मैंने तो उपन्यास पढ़कर इनसे निजाद पा ली अब आपकी बारी है।

‘खून की प्यासी’ अनिल मोहन का लिखा हुआ एक थ्रिलर है। ये किसी सीरीज का हिस्सा नहीं है और अपने में एक सम्पूर्ण उपन्यास है। ये पहला अनिल मोहन का उपन्यास है जो मैंने पढ़ा। उपन्यास की शुरुआत तो मुझे बेहतरीन लगी। रहस्य की गुत्थी इतनी पेचीदा थी की पहले १००-१५० पृष्ठों को मैं एक बार में ही पढ़ गया। लेकिन अंत तक आते आते कहानी मुझे थोडा सा ढीली लगने लगी। कुछ बातें कहानी में ऐसी हुई जो मुझे जची नहीं। मैं बातों का उल्लेख इधर करूँगा लेकिन इस बात का ध्यान रखने की कोशिश भी करूँगा की गलती से रहस्योत्घाटन न कर दूँ ।

१)जब पुलिस को फोटोग्राफ्स मिले थे तो उसने पहले ही इस बात की पुष्टि क्यूँ नहीं की की फोटोग्राफ्स असली हैं या नकली।

२)अगर मैं किसी व्यक्ति को अपने साथ षड्यंत्र में मिला चुका हूँ लेकिन इस बात को गुप्त रखना चाहता हूँ की वो मेरे साथ मिला है तो मैं क्यूँ अपने खाते से उसके रिश्तेदार का अस्पताल का बिल भरूँगा। बिल के पैसे मैं कैश से भी दे सकता था और इससे कोई पता भी लगा पाता कि मेरा किसी व्यक्ति से कोई लेना देना है। लेकिन इसमें वो बंदा ऐसा नहीं करता है बल्कि खुले आम अपने अकाउंट से ऐसे आदमी के रिश्तेदार का बिल भरता है जिसे वो अपना दुश्मन दिखाना चाहता है। पुलिस को भी उसके साजिश में शामिल होने का पता इसी बात से चलता है।

२) इस उपन्यास में एक जगह दिखाया गया है कि एक क़त्ल करते वक़्त कातिल अपनी स्विमिंग कॉस्टयूम से चाक़ू निकलती है जो उसने उसमे छुपा के रखा होता है। लेकिन एक स्विमिंग कॉस्टयूम में चाक़ू छुपाना क्या संभव है। भाई, मुझे तो मुश्किल लगता है।

३) इसमें एक लड़की खाली ये सुनकर अपने साथियों के राज़ उसपर जाहिर कर देती है कि सुनने वाला उससे शादी करेगा। लड़की को इस बात का इल्म है कि उन्होंने उस लड़के के साथ कितना बुरा किया। ऐसे में वो लड़की ये बात मान जाती है और अपने साथियों से दगा करती है। ये बात भी कुछ हज़म नहीं हुई।

कहानी की शुरुआत तो बेहतरीन होती है लेकिन ऊपर लिखी हुई खामियों तो उपन्यास को पढने का मज़ा थोडा कम कर दिया। अगर इन बातों को ध्यान में रखते हुए उपन्यास को लिखा जाता और तब कहानी को आगे बढ़ाया जाता तो कहानी काफी उम्दा हो सकती थी। और इसे में फिर २.५ की जगह ४ स्टार देता लेकिन अफ़सोस ऐसा नहीं हुआ। खैर ये अनिल मोहन साहब का लिखा हुआ पहला उपन्यास था जो मैंने पढ़ा और आगे शायद और भी पढ़ूँगा। अगर आपने अनिल मोहन जी के उपन्यास पढ़े हैं तो मैं चाहूँगा आप उन उपन्यासों के नाम टिपण्णी बक्से में ज़रूर लिखियेगा। अगर आपने  ये उपन्यास पढ़ा है तो भी अपनी राय ज़रूर साझा करियेगा। अगर लिखते समय कोई त्रुटी रह गयी है तो इस बात को ज़रूर इंगित करियेगा।


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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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5 Comments on “खून की प्यासी – अनिल मोहन”

  1. सही कमियाँ गिनाई लेकिन देवराज स्पेशल ही अनील मोहन को शूट करते है ।

  2. सही कमी गिनाई पर अनील मोहन पर देवराज ही जचतें है

    1. जी वो तो है लेकिन यह उपन्यास अगर थोड़ा सा सम्पादित किया जाता तो इन गलतियों को ठीक किया जा सकता था। ऐसा होता तो उपन्यास बेहतर हो सकता था। कई बार लिखते हुए कमियाँ नज़र नहीं आती हैं और ऐसे मौके पर सम्पादक ही काम आता है। उसका काम यही होता है कि ज्यादातर गलतियों में वह सुधार करवा सके।

  3. उक्त उपन्यास की‌ शुरुआत जितनी अच्छी है इसका अंत उतना ही खराब है।
    अगर उपन्यास अपने आरम्भ स्तर की तरह ही अंत को पहुंचता तो यह यक़ीनन एक यादगार रचना बनता।
    आपने उपन्यास में‌ जो कमियां बताई वह उपन्यास को बहुत प्रभावित करती हैं।।
    अच्छी समीक्षा के लिए धन्यवाद।

    1. जी आभार। इसमें थोड़ा सम्पादन की जरूरत थी। अगर होती तो इन कमियों को दूर किया जा सकता था।

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