उपन्यास ख़त्म करने की तारीक : २२ फेब्ररी २०१५
संसकरण विवरण :
फॉर्मेट : पेपरबैक
पृष्ठ संख्या : २५५
प्रकाशक : धीरज पॉकेट बुक्स
सीरीज : रीमा भारती #६७
पहला वाक्य :
तड़….तड़….तड़।
रीमा चौंकी और साथ ही उसने बड़ी तेजी से कार में ब्रेक लगाए।
रीमा तो रात को केवल खाना खाने के लिए निकली थी। उसकी मंजिल सिक्योरा क्लब थी और मसकद क्लब में जाकर कुछ खाना और मौज मस्ती करना। लेकिन रास्ते में ही उसे दो गुटों के बीच गोली बारी होती दिखी। कुछ बन्दे मिलकर एक बन्दे के खिलाफ गोली चला रहे थे और ये गोलियाँ उसकी कार के शीशे से भी टकराई। फिर वो उसको बचाने के लिए इस लड़ाई में कूद गयी। उसने इन पर काबू पाया और उन लोगों को पुलिस के हाथों पकड़वाने में भी कामयाब हो गयी।
फिर जब उनसे पूछताछ हुई तो पता चला वो लश्कर ए तैयबा से संबधित आतंकी थे।
अब रीमा को इस सोच ने गिरफ्त में लिया था कि ये लोग आधी रात को इधर आपस में क्यों लड़ रहे थे? क्या था इनके भारत आने का मकसद ?
ऐसा क्या जाना उसने कि उसे पाकिस्तान जाने पर मजबूर होना पड़ा ? क्या वो अपने मकसद में कामयाब हो पाएगी और दुश्मन की साजिश को असफल कर पाएगी?
रीमा भारती भारत के एक स्पेशल ब्यूरो आई एस सी की एजेंट है। ये रीमा भारती सीरीज का पहला उपन्यास था जिसे मैंने पढ़ा है। उपन्यास में लेखिका के नाम की जगह किरदार का ही नाम है। व्यक्तिगत तौर पे कहूँ तो मुझे ये ट्रेंड बिलकुल पसंद नहीं क्योंकि इससे लेखक उस प्रसिद्धि को पाने से महरूम रह जाता है जिसका कि वो हकदार होता है। खैर, ये जुदा मसला है और इस विषय में इधर ज्यादा कहना ठीक नही होगा।
मुझे रीमा भारती का ये उपन्यास काफी पसंद आया। उपन्यास काफी रोमांचक था और मुझे कहीं भी इसने बोरियत का एहसास नहीं होने दिया। कहानी में एक्शन की मात्रा भरपूर थी और अगर आप मनोरंज के लिए उपन्यास पढ़ना पसंद करते हैं तो ये आपको ज़रूर पसंद आयेगा। अगर ऐसा नहीं है तो आपको ये उपन्यास काफी फ़िल्मी लगेगा। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ कि जिस हिसाब से रीमा भारती कत्ले आम मचाती है और जिस तरीके के हत्कंडे अपनाती है वो कतई यथार्थ के नज़दीक नहीं थे। इसलिए अगर आप इसे यथार्थ के साथ जोड़ने की कोशिश करेंगे तो कई प्रश्नों को अपने मन में उठता पायेंगे जिनका कि जवाब आपके पास नही होगा। जैसे की :
रीमा किसी के मंगेतर के रूप में पकिस्तान आती है लेकिन दूसरे ही दिन ये कहकर होटल से कूच कर जाती है कि वो लाहोर जा रही है और अगर उसका मंगेतर आये तो उसे इतेल्ला कर दें कि वो अगले दिन शाम तक वापस आ जायेगी। लेकिन वो वापस नहीं पहुँचती है। ऐसे में कोई भी होता तो अपने गायब होने की रिपोर्ट लिखाता। लेकिन इधर ऐसा कुछ नहीं हुआ। क्योंकि वो भारतीय शहरी थी इस वजह से अगर रिपोर्ट हो जाती तो दाल में कुछ काला देखकर वहाँ के पुलिस वाले कुछ करते।
दूसरा सवाल ये उठता है कि वो अपने मकसद के कामयाबी के लिए किडनैपिंग करती है और फिर मकसद पूरा होने के बाद भारत के फ़ौज के अफसरो की मदद से उन अगुआ किये गये लोगों को पाकिस्तान वापस भिजवाती है। लेकिन अगर कोई बंदा ऐसा करेगा तो क्या भारतीय राजनीतक माहौल बदल नहीं जायेगा। क्या ऐसी वरदात करने की मंजूरी भारितीय संस्था अपने किसी मुलाजिम को देगी और वो भी ऐसे खुल्लम खुल्ला जबकि भारत पाकिस्तान के राजनैतिक सम्बन्ध इतने संवेदनशील हैं। कोई भी सरकारी संस्था ऐसा बेवकूफी भरा कदम किसी भी एजेंट को नहीं उठाने देगी क्योंकि इससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जो खलबली मचेगी वो काफी शर्मनाक होगी और भारत की साख को भी दाँव पर रख देगी।
तीसरी चीज़ ये है की मैंने गूगल सर्च किया तो मुझे पता चला कि पाकिस्तानी पुलिस फ़ॉरस में कमिश्नर की कोई रैंक होती ही नहीं है। ये बात जब एक गूगल सर्च से मुझे मालूम पड़ सकती है तो लेखिका को भी पड़ सकती थी। मैं बाल की खाल तो नहीं निकालना चाहता हूँ बस इतना कहना चाहता हूँ कि थोड़ा बहुत रिसर्च करनी चाहिए थी पाकिस्तान के विषय में इस उपन्यास को लिखने से पहले। बाकि चीज़ों के विषय में तो मैंने इतने गौर से देखा भी नही। ये तो इसलिए मेरे मन में रह गया था क्योंकि मुझे ये देखकर कर अजीब लगा था कि भारतीय पुलिस रैंक और पकिस्तानी पुलिस रैंक एक जैसे ही होंगी।
ये तो बात हुई उन चीजों की जो लोगों को अटपटा लग सकती हैं। आप लोगों को लग सकता है कि ये बाल की खाल निकालने जैसी बात है लेकिन आजकल के ग्लोबलाइजेशन के दौर में रीमा भारती के प्रतिद्वंदी कोई भारतीय किरदार नहीं बल्कि जैसन बॉर्न , जेम्स बांड, रोबर्ट लैंगडन जैसे किरदार हैं जिनके विषय में बड़ी रिसर्च करके ही लिखा जाता है। अगर हिंदी उपन्यासों को अपनी एक जगह कायम करनी है तो इन्ही मापदंडों को मानकर चलना होगा तभी किताबें लोग खरीदेंगे और पढ़ना पसंद करेंगे।
खैर, इन तीन सवालों के इलावा मुझे तो कोई अटपटी बात नहीं लगी। मुझे तो उपन्यास पसंद आया और मैं तो इस सीरीज के अन्य उपन्यासों को भी पढ़ूँगा। इसका एक कारण इस उपन्यास की कहानी तो है ही इसके इलावा रीमा भारती का चरित्र भी मुझे काफी रोचक और अच्छा लगा। रीमा भारती एक देश भक्त एजेंट तो है ही लेकिन साथ में बहुत संवेदनशील इंसान भी है। उसकी संवेदनशीलता का पता उपन्यास में जगह जगह लगता है। वो कई बार अपने मकसद के लिए अपने शरीर को इस्तेमाल करने से नहीं हिचकती है लेकिन जहाँ कहीं भी वो गलत होते हुए देखती है उधर हो उस गलत होते हुए को सही करने की कोशिश करती है चाहे फिर इसके लिए उसे अपनी जान ही क्यों न देनी पड़े। वो बुरों के लिए बुरी है लेकिन अच्छों के लिए अपनी जान न्योछावर करने से भी नहीं हिचकती है। इसके कई उदाहरण उपन्यास में मिलते हैं। जैसे :
जब उसे पता चलता है कि उसे शगुफ्ता बनकर पाकिस्तान जाना है। और शगुफ्ता उधर शादी के विचार से जाने वाली थी तो उसका सवाल होता है :
लेकिन चीफ क्या ये ठीक होगा कि वहाँ’ एक शरीफ लड़के को मैं धोखा दूँगी?
वो सुरभि को उसके पति के जिंदा होने कि खबर दे देती। जबकि वो सुरभि को जानती भी नहीं थी। बस उसने सुरभि के विषय में तब देखा और पढ़ा था जब उसके पति फ़ौज में नौकरी के दौरान एक दुर्घटना के शिकार हो गये थे। वो एक तूफ़ान में फंस गये थे और जब वो लौटे नहीं तो उन्हें मृत घोषित कर दिया था। वो सुरभि को जानती नहीं थी और ये जानकारी सुरभि को देना का कोई तुक भी नहीं था। लेकिन उसे सुरभि से हमदर्दी भी थी और क्योंकि उसे इस बात की भी खबर थी कि पति के मौत के बाद सुरभि ने तीन बार आत्महत्या करने की कोशिश की थी इसलिए वो उसे इस बात से वाकिफ करने आ गयी।
ऐसे कई उदाहरण उपन्यास में बिखरे पढ़े हैं जो उसकी संवेदनशीलता को दर्शाते हैं और उसके तरफ आकर्षित करते हैं।
खैर, अंत में केवल यही कहूँगा कि मुझे तो उपन्यास पसंद आया और मैं रीमा भारती के अन्य उपन्यासों के प्रति तवज्जो दूँगा। ये उपन्यास अकसर रेलवे के स्टाल्स में मिल जाते हैं। मौका लगे तो अवश्य पढ़िएगा। अगर आपने रीमा भारती के उपन्यासों को पढ़ा है तो आप कुछ बेहतरीन उपन्यासों के नाम साझा करना न भूलियेगा। अगर इस उपन्यास को पढ़ा है तो इसके विषय में भी अपनी राय देना न भूलियेगा।
Bro bhedhiya novel reema bharti ka h to mujhe bhejo bhinder .006@gmail.com par
मैं तो ये नावेल खरीद कर ही पढता हूँ। भेदिया नाम का नावेल नहीं है मेरे पास,सॉरी