उपन्यास पढ़ा गया: ३१ मई से २ जून तक
संस्करण विवरण:
फॉर्मेट : पेपरबैक
पृष्ठ संख्या : ३४८
प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स
सीरीज : विवेक आगाशे #४
पहला वाक्य:
रोहित सूरी उस घड़ी करोलबाग थाने में मौजूद था जहाँ कि वो अपनी हाजरी गैरजरूरी समझता था।
रोहित सूरी महतानी इन्वेस्टमेंट्स नामक स्टॉक ब्रोकर्स फर्म में एक असिस्टेंट की नौकरी करता था। वो एक साधारण इंसान था जो कि एक मामूली सी ज़िन्दगी जी रहा था। लेकिन उसकी ज़िन्दगी में एकाएक गैरमामूली हरकते होने लगी और हरकतें भी ऐसी जिनके वजूद कि पुष्टि करने में वो हमेशा नाकामयाब रहा। ये हरकतें थी खूबसूरत लड़कियों को मरते हुए या मरे हुए देखना।
जब उसने पुलिस की मदद लेनी चाही तो उन्हें वो लड़कियाँ अपनी जगह से न केवल नदारद मिली बल्कि ऐसी घटना के होने के सबूत भी न मिले।
वो रोहित को दिमागी मरीज या नशेड़ी बता रहे थे जबकि रोहित अपने बात पर अड़ा था कि जो उसने देखा वो सच था। क्या थी असलियत?
रोहित कि हालत के विषय में जब विवेक अगाशे को पता चला तो एक बार को वो भी चकरा गया। रोहित क्या सचमुच पागल था या किसी साजिश का शिकार था? अगर उसके खिलाफ साजिश रची जा रही थी तो वो कौन कर रहा था? इन्ही प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए विवेक ने अपनी इन्वेस्टीगेशन शुरू कर दी थी। क्या विवेक बात कि तह तक पहुँच पायेगा? ये जानने के लिए तो आपको उपन्यास को ही पढ़ना पड़ेगा।
उपन्यास कि शुरुआत जब होती है तो पाठक खुद इस मुश्किल में पढ़ जाता है कि रोहित सही है या पुलिस वाले। रोहित क्यूँकी कि ऐसा व्यक्ति है जिसके प्रति ऐसी साजिश कि हम कल्पना भी नहीं कर सकते हैं तो यह कथानक को और रहस्यमय बना देता है। वो एक सामान्य इंसान है जिसके पास न रुतबा है न पैसे। उसके खिलाफ क्यों कोई साजिश करेगा ये ही बात पहले मन में उठती है। फिर ये कोई कौन हो सकता है ये सवाल उठता है। लेकिन विवेक बेहतरीन तरीके से इस गुत्थी को सुलझाता है और न केवल क्यूँ बल्कि उस कोई का भी पता लगा देता है। अगर आप रहस्मय उपन्यास पढ़ना पसंद करते हैं तो ये उपन्यास आपको ज़रूर पसंद आयेगा।
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उपन्यास की कुछ पंक्तियाँ जो पसंद आयीं :
लेकिन गुनाह- और गुनाह का हासिल – कागज़ की नाव है जो बहुत दूर तक, बहुत देर तक नहीं चलती।