संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: पेपर बैक | पृष्ठ संख्या: 32 | प्रकाशक: राज कॉमिक्स बाय मनोज गुप्ता | शृंखला: डोगा #17
टीम:
लेखक: तरुण कुमार वाही | सहायक: राजा | चित्रांकन: मनु
कहानी
राहुल को टीवी पर सुपर हीरो फिल्में देखना पसंद था। उसे लगने लगा था कि उसे भी सुपर हीरो बनकर शहर में होने वाले अपराधों को रोकना चाहिए।
यही कारण है कि वह सुपर बॉय बन गया था और अपराधियों को रोकने के लिए निकल पड़ा था।
पर क्या उसका है फैसला सही था?
अपराधियों से राहुल की लड़ाई का क्या परिणाम निकला?
विचार
कॉमिक बुक पढ़ने वाले हर बच्चे और किशोर के मन में ये ख्याल कभी न कभी आता है कि काश वो सुपर हीरो बन पाता। कई बार सुपर हीरो की तरह कारनामें करने का मन भी करने लगता है पर क्या ऐसी इच्छा को पूरी करने की कोशिश करनी चाहिए? यह एक प्रश्न है जिससे बच्चे शायद जूझते रहते हैं। ऐसे में अगर वो अपनी इस इच्छा को पूरी करने की कोशिश करते हैं तो उनके साथ क्या क्या हो सकता है ये ही कॉमिक बुक ‘सुपरबॉय’ में दर्शाया गया है। ‘सुपरबॉय’ प्रथम बार 1995 में प्रकाशित हुई थी और 2022 में राज कॉमिक्स बाय मनोज गुप्ता द्वारा पुनः प्रकाशित की गयी है।
कॉमिक बुक के केंद्र में एक राहुल नाम का किशोर है जिसे सुपर हीरो फिल्में देखना पसंद है। वह इन फिल्मों में दिखाए जाने के सुपर हीरो के कारनामों से इतना प्रभावित हो जाता है कि सुपर हीरो बनने की ठान लेता है और घर से अपराधियों से दो दो हाथ करने निकलने लगता है। इस काम को वो किस तरह करता है? इसमें कौन कौन सी परेशानियाँ उसे आती हैं? वह क्या क्या गलतियाँ इधर करता है? डोगा की इस कहानी में क्या भूमिका होती है? और राहुल की इस इच्छा का अंत क्या होता है? इन्हीं प्रश्नों का उत्तर कहानी देती है।
हम राहुल को अपने मकसद के लिए निकलते देखते हैं और कई बार उसकी जान पर बन भी आती है। ये जान पर कैसे बन आती है और इन परिस्थितियों से वो कैसे और किसकी मदद से निकलता है ये देखना रोचक रहता है। वह अपने इस फितूर में कई गलतियाँ भी करता है।
कॉमिक बुक में एक्शन भरपूर है। यहां पॉकेट मार हैं, खूँखार अपराधी हैं और आतंकवादी भी हैं। डोगा इधर इन अपराधियों के दाँत खट्टे करते और राहुल को शिक्षा देते भी दिखता है। एक तरह से कहा जाए तो यह एक मनोरंजक कॉमिक बुक है जो कि उसके पाठक वर्ग को ध्यान में रखकर लिखा गया है। किशोरों के मन में ये सुपर हीरो बनने की इच्छा कहीं कोई ऐसी गलती उनसे न करवा ले जिससे वो या उनके आस पास के लोग खतरें में पड़ जाए,ये सोचकर यह लिखा गया है और किशोरों की आँखें जरूर खोलता है। कॉमिक बुक का अंत भावुक कर देता है और यह भी दर्शाता है कि हमारे देश के जवान कैसे कैसे बलिदान देश के लिए देते हैं।
डोगा की कॉमिक बुक में कमिश्नर त्रिपाठी का किरदार है जिसका तकियाकलाम ‘वाट नॉनसेंस’ है। ये किरदार जब भी आता है तो संजीदा से संजीदा सीन में चेहरे पर मुस्कान आ जाती है। कभी कभी सोचता हूँ ऐसा आदमी कमिश्नर बनने से पहले अपने अफसरों से ऑर्डर लेता होगा तो क्या अपने तकिया कलाम पर काबू पा पाता होगा। शायद नहीं और वो सीन बड़े मजेदार होते होंगे।
हाँ एक बिंदु ऐसा है जिस पर बात करनी जरूरी है। मुझे व्यक्तिगत तौर पर लगता है क्योंकि इसका कथानक किशोरों को सुपर हीरो बनने की राह पर न निकलने के लिए प्रेरित करना है तो अच्छा होता अगर ये कॉमिक डोगा के बजाए कोई आम आदमी इधर नायक होता। जैसे कोई पुलिस वाला यानी चीता या कोई इंस्पेक्टर या कोई फौजी इत्यादि। अगर ऐसा होता तो मुझे लगता है कि कहानी अधिक प्रभावी बन जाती। अभी चूँकि एक सुपर हीरो इधर नायक है तो बाल पाठक को लग सकता है कि ट्रेनिंग लेकर उसके जैसे बना जा सकता है।
कहानी को चित्रों में ढाला है मनु ने और यह काम उन्होंने बहुत अच्छे से किया है।
अंत में यही कहूँगा कि सुपर बॉय एक अच्छा कॉमिक बुक है जो कि शिक्षा देने के साथ साथ मनोरंजन करने में भी सफल होती है। एक बार इसे पढ़ सकते हैं।
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