संस्करण विवरण:
फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 32 | प्रकाशक: राज कॉमिक्स | शृंखला: बाँकेलाल
टीम
लेखक: राजा | आर्ट: जितेंद्र बेदी
कहानी
सुल्तान सिंह के गिरोह का खौफ सभी राजाओं पर हावी होने लगा था।
सुल्तान सिंह एक डाकू था जो कि अपने गिरोह के साथ राज्यों पर हमला करता और राजाओं के राज कोष को लूटकर उन्हें कंगाल बना देता।
सभी राजा इस बात को लेकर परेशान थे कि न जाने कब उनके राज्यों पर डाकू सुल्तान सिंह
अपने गिरोह के साथ हमला कर दे और उनके राज कोष को लूटकर उन्हें कंगाल कर दे।
राजकोष के इस लुटेरे की खबर विशाल गढ़ तक पहुँच गई थी और उसने राजा विक्रम सिंह को भी परेशानी में डाल दिया था।
वहीं बाँकेलाल की खुराफती बुद्धि में इसने एक योजना का बीज बो दिया था।
आखिर क्या थी बाँकेलाल की योजना?
क्या राज कोष के लुटेरे विशालगढ़ पहुँचे?
विचार
राज कोष के लुटेरे बाँकेलाल का तीसरा कॉमिक बुक है। इसकी कहानी
राजा, जो कि एक प्रेत लेखक (घोस्टराइटर) था, ने लिखी है और आर्टवर्क जितेंद्र बेदी जी का है।
कॉमिक के केंद्र में डाकुओं का एक गिरोह है जिसे कि राजाओं के राजकोष पर हाथ साफ करने में महारत हासिल है। इन डाकुओं का सरदार सुल्तान सिंह नामक डाकू है। वहीं दूसरी ओर बाँकेलाल को विक्रम सिंह के बताए इस गिरोह का पता लगता है उसके अंदर एक इच्छा कुलबुलाने लगती है। वह इच्छा विशालगढ़ के राजकोष पर हाथ साफ करना है। बाँकेलाल इस इच्छा की पूर्ति के लिए क्या करता है, इससे किसी का क्या भला होता है और कैसे बाँकेलाल का यश चहूँ और फैलता है यही कहानी बनती है।
कहानी में हास्य कम है लेकिन कहानी पठनीय है। कहानी में डाकू वाला कोण तो है साथ ही उसमें मंगल सिंह और लाखन जैसे किरदार है जो कि इस गिरोह में सुल्तान सिंह के खिलाफ ही रहते हैं। पढ़ते हुए लगता है कि यह जरूर आगे जाकर कुछ ट्विस्ट लाएँगे। वह लाते भी हैं लेकिन ट्विस्ट अंत में ही आता है। मुझे लगता है सुल्तान सिंह और मंगल सिंह के बीच के समीकरण को और उभारा जा सकता था। इनके बीच की खींच तान को और अधिक दर्शाया जा सकता था जिससे कथानक अच्छा बनता।
वहीं बाँकेलाल के लिए यहाँ करने के लिए अधिक कुछ रहता नहीं है। वह एक काम करता है और उसके बाद सारे काम उसके लिए होते चले जाते हैं। अंत में भी सारा कार्यक्रम उसके मुख्य स्थान पर पहुँचने से पहले ही निपट जाता है। ऐसे में कहानी आप पढ़ तो लेते हो लेकिन थोड़ा रोमांच कम सा रहता है। अगर आखिरी के क्लाइमैक्स में बाँकेलाल की करामत भी दिखती तो बेहतर होता।
कहानी के आर्ट वर्क की बात करूँ तो वह जितेंद्र बेदी जी का है और अच्छा है।
अंत में यही कहूँगा कि यह एक कॉमिक बुक एक बार पढ़ा जा सकता है। कुछ बिंदुओं को थोड़ा और उभारा जाता तो कॉमिक बुक अधिक रोमांचक बन सकता था। अगर आप हास्य के लिये बाँकेलाल पढ़ते हैं तो उसकी कमी आपको शायद इधर खले। हाँ, बाँकेलाल की कुटितला इधर जरूर मौजूद है जो कॉमिक बुक की पठनीयता में कमी नहीं आने देती है।
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Oh God, it's been a LONG time since I read Bankelal comics. I found it enjoyable. So glad you are writing about these comic books.
I enjoy reading comic books. Often I read one weekly or if couldn't do weekly I make it a point to read atleast 2-3 in a month.