फोटोग्राफर का रहस्य | तुलसी कॉमिक्स | मलय चक्रवर्ती

 संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: ई बुक | प्रकाशक: तुलसी कॉमिक्स | प्लैटफॉर्म: प्रतिलिपि | लेखक: मलय चक्रवर्ती | चित्रकार: जावेद आलम | कलर: रेशमा शमसी 

कॉमिक बुक लिंक: प्रतिलिपि

फोटोग्राफर का रहस्य | तुलसी कॉमिक्स | मलय चक्रवर्ती

कहानी 

प्रताप सिन्हा एक प्राइवेट जासूस था जो कि अपने मित्र इंस्पेकटर राज सिंह के घर मुंबई घूमने आया था। लेकिन फिर जब राज सिंह अचानक से घर से गायब हो गया तो प्रताप ने अपने दोस्त को तलाश करने का बीड़ा उठा लिया था। 

आखिर इंस्पेकटर राज सिंह कहाँ गायब हो गया था? 

उसे गायब किसने किया था? 

क्या प्रताप उसे ढूँढ पाया?

किरदार

प्रताप सिन्हा – एक प्राइवेट डिटेक्टिव 
राज सिंह – प्रताप का दोस्त और एक पुलिस इंस्पेकटर 
राजदान – पुलिस कमिश्नर 
अर्चना – एक युवती 
अख्तर खाँ – एक अपराधी 
बागवोन – एक सेठ 

मेरे विचार

फोटोग्राफर का रहस्य मलय चक्रवर्ती द्वारा लिखा गया कॉमिक बुक है। मौत का नाच के बाद यह मलय चक्रवर्ती द्वारा लिखा गया यह दूसरा कॉमिक बुक है जो कि मैंने पढ़ा है। मौत का नाच के समान ही फोटोग्राफर का रहस्य में भी उन्होंने पाठकों को एक रहस्यकथा देने की कोशिश की है।

ह भी पढ़ें: मौत का नाच की समीक्षा

यहाँ मैं कोशिश इसलिए कहूँगा कि क्योंकि वह अपनी इस कोशिश में पूरी तरह सफल नहीं हो पाए हैं। 

कहानी की शुरुआत दो दोस्तों राजसिंह और प्रताप सिन्हा के बीच में हो रही बतकही से होती है जिसमे पाठक जानते हैं कि जहाँ राजसिंह इंस्पेकटर है वहीं प्रताप एक प्राइवेट डिटेक्टिव है। कहानी एक नया मोड़ तब लेती है जब राजसिंह अचानक से अपने घर से गायब हो जाता है। राज सिंह कहाँ गया और इसके बाद कहानी में जो जो बातें उजागर होती हैं वो प्रताप सिन्हा को इस मामले में आगे बढ़ने और पाठक को पृष्ठ पलटने के लिए विवश कर देती हैं। 

कहते हैं व्यक्ति का असल चरित्र तब उजागर होता है जब उसे कोई ताकत मिल जाती है। आज के सभ्य समाज में पुलिस की वर्दी वह ताकत है जो कि लोग हासिल तो कर लेते हैं लेकिन फिर उसकी आड़ में कई अपराधों को भी अंजाम देते हैं। यह कहानी इसी विषय पर लिखी हुई है। कहानी का अंत भी मुझे पसंद आया। ‘अपराध से नफरत करो अपराधी से नहीं’ एक ऐसी सूक्ति है जिस पर हम सभी को मनन करने की जरूरत है। कई बार लोग इसे अपराधी से सहानुभूति के तौर पर भी ले लेते हैं जबकि अपराधी से नफरत न करने को कहना उसकी सजा को माफ करने को कहने के बराबर नहीं है। इस कहानी का नायक इस बात को बहुत बखूबी दर्शाता है। 

प्रताप सिन्हा फोटोग्राफर का रहस्य का नायक है और एक वन मैन आर्मी है जो कि एक एक करके सबूत इकट्ठा करता है और आखिर में बात की तह तक पहुँच जाता है। वह एक कुशल योद्धा भी है जो कई लोगों को चित करने की काबिलियत रखता है। असल बात का पता लगाने के दौरान प्रताप को कई लोगों की धुनाई करनी पड़ती है जो कि कहानी में रोमांच और एक्शन बनाकर रखता है।  

कहानी के कमजोर पहलू की बात करूँ तो यह कहानी में प्रताप को प्राप्त होने वाले सबूत हैं। कहानी में जिस तरह से ये सबूत प्रताप को मिलते हैं वो कहानी को कमजोर बनाते हैं फिर चाहे वो तस्वीर के पीछे लिखा हुआ पता हो या फिर चोर का लड़खड़ा कर आवाज करना या फिर खलनायक का गाड़ी उसी इमारत के नीचे छोड़ना जिसमें वह जाने वाला है। यहाँ मैं इतना ही कहूँगा कि अगर मैं किसी के साथ मिलकर कोई गैरकानूनी या कानूनी कैसा भी कार्य कर रहा हूँ तो मैं उसके पते को उसकी तस्वीर के पीछे क्यों लिख कर अपने पास रखूँगा। साथ ही अगर कोई मेरे पीछे कोई पड़ा है तो मैं जिस इमारत में घुसूँगा उसके ठीक सामने तो अपनी गाड़ी नहीं ही छोड़ूँगा। गाड़ी छोड़ने के कई बेहतर विकल्प मुझे ठिकाने से पहलए ही मिल जाएंगे।  यह कुछ ऐसी चीजें हैं जिन्हें पढ़ते हुए लगता है कि लेखक ने एक आसान रास्ता अख्तियार किया है और खुद की सुविधा के लिए ऐसे सबूत छोड़ दिये हैं। अभी कहानी में एक्शन तो बहुत है लेकिन अगर इन सबूतों के ऊपर और काम किया गया होता तो शायद रहस्य का तत्व भी और अधिक मजबूत बन पाता और कॉमिक एक बेहतर कॉमिक बनता। 

यहाँ मैं ये बात भी जोड़ना चाहूँगा कि एक अच्छी रहस्यकथा लिखना वैसे भी काफी मुश्किल कार्य है लेकिन कॉमिक बुक के लिए लिखना उसे और दुरूह बना देता है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि कॉमिक आपको बांध देती है। आपको सीमित पैनलों में यह कथा कहनी होती है जिसके कारण कथानक ज्यादा जटिल बना नहीं सकते हैं। इस कारण कथानक के कमजोर होने कएए संभावनाएँ काफी बढ़ जाती हैं। इसलिए अगर मुझे कॉमिक में रहस्य के तत्व उतने मजबूत नहीं भी मिलते हैं तो मैं इस लेखक की कमी ही नहीं कुछ हद तक माध्यम की कमी भी मानता हूँ। 

कॉमिक बुक में चित्रांकन जावेद आलम द्वारा किया गया है जो कि अच्छा है। वैसे भी मुझे ऐसे चित्र पसंद नहीं पाते हैं जिसमें किरदारों की बॉडी हद से ज्यादा बना रखी हो। आम आदमी जैसे चित्र मुझे ज्यादा पसंद आते हैं और यहाँ पर ज्यादातर किरदारों को इस तरह से दिखा रखा है। मुझे आर्टवर्क पसंद आया।  अगर आर्टवर्क में फिर भी कमी निकालनी हो तो मुझे इसमें बस नकाबपोश को जिस तरह से दर्शाया गया है वो खला। नकाबपोश किसी सुपरहीरो कॉमिक से आया हुआ लगता है। अगर उसे भी आम पोशाक में दर्शाते तो शायद बेहतर होता क्योंकि नकाबपोश को उस तरह का परिधान पहनाने की ऐसी कोई आवश्यकता थी नहीं। 

नाकबपोश

कॉमिक बुक का शीर्षक ‘फोटोग्राफर का रहस्य’ रखा गया है लेकिन मुझे लगता है कि अगर इसे ‘फोटोग्राफ का रहस्य’ रखा गया होता तो शायद बेहतर होता। कहानी के कवर में भी प्रताप एक फोटो हाथ में लिए दिखता है। कवर से भी यही प्रतीत होता है कि वह उस फोटोग्राफ के रहस्य को उजागर करना चाहता है। फिर कहानी में तस्वीरों का कहानी को आगे बढ़ाने में काफी योगदान रहता है और साथ ही प्रताप की सोच का केंद्र भी तस्वीरें ही रहती हैं तो इसलिए भी ‘फोटोग्राफ का रहस्य’ मुझे कथानक पर ज्यादा फिट बैठता हुआ लगता है। 

अंत में यही कहूँगा कि फोटोग्राफर का रहस्य एक अच्छी रहस्यकथा बन सकता था अगर रहस्य वाले तत्व पर और मेहनत की जाती। अभी तो वह एक सीधी साधी एक्शन कथा बन गया है जिसे एक बार पढ़ा जा सकता है। 

कॉमिक बुक लिंक: प्रतिलिपि


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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर उन्हें लिखना पसंद है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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6 Comments on “फोटोग्राफर का रहस्य | तुलसी कॉमिक्स | मलय चक्रवर्ती”

  1. मलय चक्रवर्ती जी के कामिक्स पर सहज सुलभ समीक्षा।
    पुस्तक पढ़ने को रुझान बढ़ा रही है।
    साधुवाद।

    1. लेख आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा आभार।

  2. सभी पहलुओं को उजागर करती शानदार समीक्षा।

  3. मैने भी पढ़ा था इसे कुछ माह पूर्व!
    यह समीक्षा देखने से पहले एक बार दुबारा नज़र मार ली उस कॉमिक पर। आपके सभी बिंदु सही है बस कुछ अतिरिक्त बिंदु जोड़ना चाहूँगा।

    कमिश्नर प्रताप को बताते है कि राज के पास कोई केस नही था वही अर्चना के पास एक आलीशान फ्लैट था। राज का मकान भी शानदार लग रहा था जो एक आम इंस्पेक्टर की पहुँच से बाहर का ही लगता है। अगर प्रताप शुरुआत मे ही अर्चना की आय के बारे मे पता लगवा लेता तो केस बहुत जल्द खत्म हो जाता।
    लेखक चाहते तो राज की एक डायरी छोड़ जाते जिसमे प्रताप को कुछ एक अज्ञात नंबर मिलते। ब्लैकमेल करने वाले हिसाब किताब रखते ही है अपने शिकार का ऐसे मे यह ज्यादा बेहतर विकल्प होता बजाए उसके जो लेखक ने किया। यह बस मेरी राय है।

    बढ़िया समीक्षा लिखी है आपने।

    1. एक्चुअली मकान वाली बात इसलिए भी गड़बड़ हो सकती है क्योंकि हमें प्रताप के घर वालों के विषय में जानकारी नहीं थी। मैं कई ऐसे लोगों को जानता हूँ जो मामूली नौकरी कर रहे हैं लेकिन चूँकि पारिवारिक रूप से अमीर हैं तो उनका रहन सहन काफी ऊँचे दर्जे का होता है। ऐसे में प्रताप के पैसे का स्रोत क्या था ये जाँचना थोड़ा मुश्किल काम है। अर्चना के ऊपर तो खैर प्रताप को शक हो ही गया था। डायरी वाली बात से सहमत। वैसे भी सीक्रेट लॉकर चोरों के कारण पता तो लग गया था तो उधर ऐसे दस्तावेज मिलते दिखाया जा सकता था। खैर, लेख आपको पसन्द आया यह जानकर अच्छा लगा।

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