हवलदार बहादुर और कमीश्नर का कुत्ता

संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 32 | प्रकाशक: मनोज कॉमिक्स | लेखक: विनय प्रभाकर | चित्रांकन: बेदी | श्रृंखला: हवलदार बहादुर #4

कॉमिक बुक समीक्षा: हवलदार बहादुर और कमीश्नर का कुत्ता


कहानी:
इंस्पेक्टर खड़गसिंह को एक गुमनाम व्यक्ति ने टेलीफोन कॉल करके जब एक ऐसी जगह के विषय में बताया जहाँ पर तस्करों ने ड्रग्स छुपा रखी थी तो वह हवलदार बहादुर के साथ इस बात को जाँचने वहाँ पहुँच गया। लेकिन इसके बाद वहाँ परिस्थितियाँ ऐसी बन गयी कि खड़गसिंह को अस्पताल जाना पड़ा और मामले की तहकीक्त करते इंस्पेक्टर त्यागी ने हवलदार को इस मामले से दूरी बनाने की नसीहत दे दी। 

वहीं उसी वक्त कमीश्नर का कुत्ता कहीं खो गया और उन्होंने हवलदार बहादुर को उसकी तलाश में लगा दिया। अब हवलदार कुत्ते की तलाश कर कमीश्नर को खुश करना चाहता था। 

उस गुमनाम फोन कॉल की सच्चाई क्या थी?
इंस्पेक्टर खड़गसिंह को अस्पताल में क्यों भर्ती होना पड़ा?
हवलदार बहादुर को मामले से क्यों हटाया गया?
क्या पुलिस नशे के व्यापारियों को पकड़ पाई?
क्या हवलदार कमीश्नर के कुत्ते का पता लगा पाया?

मेरे विचार:
हवलदार बहादुर और कमीश्नर का कुत्ता हवलदार बहादुर श्रृंखला का चौथा कॉमिक बुक है। कॉमिक बुक विनय प्रभाकर द्वारा लिखी गयी है और इसमें चित्रांकन बेदी द्वारा किया गया है। 

कहानी की बात करूँ तो यह टिपिकल हवलदार बहादुर टाइप कहानी है। हवलदार बहादुर एक ऐसा अँधा है जिसके हाथ आखिर में बटेर लग ही जाती है। इस कॉमिक्स में भी ऐसा ही कुछ हुआ है। कहानी ज्यादा जटिल नहीं है लेकिन हवलदार बहादुर की हरकतें हास्य पैदा करती हैं। कभी वह अपनी गलती के कारण पिटता है और कभी गलतफहमी के कारण। पिटते पिटते भी हवालात में सड़ा देने की धमकी बरबस की चेहरे पर हँसी ला देती है।  इस कॉमिक में हवलदार तहकीकात करते हुए भी दर्शाया गया है जो कि मुझे अच्छा लगा है। 

वैसे तो कॉमिक बुक एक हास्य कॉमिक है और इसमें हवलदार के पिटने के दृश्य हँसाने के लिए ही इस्तेमाल किये गया हैं लेकिन कॉमिक्स का शुरूआती हिस्सा कुछ सोचने के लिए भी दे जाता है। खड़गसिंह जिस तरह अपराधियों से लड़ता है और घायल होता है वह आपको सोचने पर मजबूर करता है ऐसे कितने पुलिसवाले रोज अपनी जान हाथ पर रखकर हमारी सुरक्षा कर रहे हैं। वे ऐसे लोग हैं जो कि हर दिन समाज की गंदगी से दो चार होते हैं। मानवता के कई घिनोने चेहरे रोज देखते रहते हैं और ऐसे में उनका सिनिकल(cynical) होना शायद लाजमी है। मुझे लगता है कि सेना को जो सम्मान मिलता है वह पुलिस विभाग को भी मिलना चाहिए। और पुलिस विभाग से जुड़ी जो नकारात्मकता है वह कम होनी चाहिए जिसके लिए नागरिकों और पुलिस विभाग दोनों को ही कार्य करने की आवश्यकता है। 

कॉमिक बुक के विषय में अंत में यही कहूँगा कि इसे एक बार पढ़ा जा सकता है।

© विकास नैनवाल ‘अंजान’


FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

View all posts by विकास नैनवाल 'अंजान' →

2 Comments on “हवलदार बहादुर और कमीश्नर का कुत्ता”

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (28-03-2021) को   "देख तमाशा होली का"   (चर्चा अंक-4019)    पर भी होगी। 
    — 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    —  
    रंगों के महापर्व होली और विश्व रंग मंच दिवस की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-    

    सादर…! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

    1. चर्चाअंक में मेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार…..

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *