जीना इसी गली में – अनिल मोहन

उपन्यास 5 दिसम्बर 2020 से 6 दिसम्बर 2020 के बीच पढ़ा गया 

संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: पेपरबैक |   पृष्ठ संख्या: 231 | प्रकाशन: सूरज पॉकेट बुक्स |  श्रृंखला: देवराज चौहान
किताब लिंक: पेपरबैक | किंडल

पुस्तक समीक्षा: जीना इसी गली में - अनिल मोहन | book review

पहला वाक्य:
देवराज चौहान और जगमोहन पंजाब प्रांत के खूबसूरत शहर लुधियाना पहुँचे। 

कहानी:
देवराज चौहान और जगमोहन लुधियाना आये हुए थे। जिन्न और गजाला वाले मामले से निपटने के बाद अभी उनके पास वक्त था तो वह अपना एक पुराना कार्य निपटा देना चाहते थे।

वैसे तो उनका मकसद लुधियाना के जसदेव सिंह के पास रखा अपना पैसा वापिस लेना था लेकिन जब उनके सामने एक बैंक वैन को लूटने का मौका लगा तो दोनों ही इस योजना के लिए तैयार हो गये।

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हर महीने की नौ या दस तारीक को हिंदुस्तान लिमिटेड बैंक की वैन सौ या डेढ़ सौ करोड़ की दौलत लुधियाना में इधर से उधर करती थी। देवराज चौहान और जगमोहन को इसी वैन को लूटना था। योजना बनाने वाले पंचम के अनुसार देवराज और जगमोहन जैसे अनुभवी लोगों के लिए यह बहुत आसान काम होने वाला था। ऐसा जैसे प्लेट में मौजूद हलवा खाना। 

लेकिन क्या असल में ऐसा था? 

किरदार:
देवराज चौहान: डकैती मास्टर 
जगमोहन: देवराज का ख़ास आदमी 
जसदेव सिंह: लुधियाना का एक धनाढ्य व्यक्ति 
बिल्लो: जसदेव की बीवी 
पंचम लाल: जसदेव का साला 
लानती: पंचम का खास दोस्त 
बलवान सिंह: हिंदुस्तान लिमिटेड बैंक की वैन का ड्राईवर 
मदनलाल सोढ़ी: बैंक का गनर 
सतनाम सिंह: हिंदुस्तान लिमिटेड बैंक के हेड ऑफिस में काम करने वाला एक बन्दा
राजेन्द्र सिंह: एक गाँव वाला 
परमिंदर, दुलारा: दो व्यक्ति 
दिलीप सिंह: इंस्पेक्टर 
महिपाल सिंह: सब इंस्पेक्टर 

मेरे विचार:
जीना इसी गली में देवराज चौहान श्रृंखला का उपन्यास है। अगर आप देवराज चौहान के विषय में जानते हैं तो वह एक डकैती मास्टर है और इस कारण उसके ज्यादातर उपन्यास डकैती की इर्द गिर्द घूमते हैं। इन डकैतियों में अक्सर उसका साथी जगमोहन उसका साथ देता है। इसके अलावा भी कुछ किरदार हैं जो कि उपन्यासों में निरंतर आते रहते हैं। 

अगर प्रस्तुत उपन्यास की बात करूँ तो ‘जीना इसी गली में’ भी डकैती पर केन्द्रित उपन्यास है। कहा जाता है कि बेईमानी के धंधे में भी ईमान का होना बहुत जरूरी है। अगर इसमें भी ईमान न हो तो धंधा करना ,मुश्किल हो जाता है। जीना इसी गली में यही दर्शाता है कि बेईमानी के धंधे को अगर ईमानदारी से न किया जाए तो क्या हो सकता है।
देवराज चौहान चूँकि मुंबई का रहने वाला है तो उसके उपन्यासों के अधिकतर घटनाक्रम मुंबई में ही घटी होते हैं। लेकिन फिर भी कई बार ऐसे मौके आ जाते हैं कि देवराज को अपनी मास्टरी मुंबई के बाहर भी दिखानी पड़ती है। यह उपन्यास भी कुछ ऐसा ही है। इस उपन्यास का घटनाक्रम लुधियाना के आस पास घटित होता है। वहीं देवराज चौहान के उपन्यासों की शुरुआत डकैती के प्लान से होती है लेकिन इधर ऐसा नहीं है। शुरुआत में देवराज और जगमोहन लुधियाना अपना बकाया पैसा लेना आते हैं जहाँ उन्हें इस डकैती की योजना की जानकारी होती है और फिर वे इस कार्य की कमान सम्भालते हैं। 
आगे क्या होता है? इस कार्य को करने में उन्हें क्या क्या परेशानी आती हैं और वह इन परेशानियों से कैसे उभरते हैं यही कथानक का हिस्सा बनता है। उपन्यास जैसे जैसे आगे बढ़ता है इसमें ऐसी बातें उभर कर आती हैं जो उपन्यास पढ़ते चले जाने के लिए आपको प्रोत्साहित करती हैं। कथानक में ऐसा घुमाव भी है जो कि आपको आश्चर्यचकित कर देता हैं। अनिल मोहन के उपन्यास अक्सर रोमांचकथा होती हैं। इनकी कहानी एक सीधी रेखा में आगे बढती हैं। उन्हें पढ़ने वाले जानते हैं कि उनके कथानक की खूबी रहस्य नहीं बल्कि तेज रफ्तार होती है। इसलिए इस उपन्यास में मौजूद घुमाव ने मुझे अच्छा लगा। कभी कभी ही ऐसा देखने को मिलता है।
वैसे तो यह उपन्यास एक डकैती के विषय में है लेकिन उपन्यास के कई ऐसे किरदार और प्रसंग है जो कि हास्य पैदा करते हैं और इस कारण आपका भरपूर मनोरंजन करते हैं। उपन्यास में जसदेव नाम का किरदार है जिसके पास देवराज और जगमोहन आये हैं। जसदेव की बातें भी हास्यजनक रहती है लेकिन उपन्यास का जो किरदार सबसे उभर कर आया है वह जसदेव की बीवी बिल्लो का किरदार है जो कि बहुत ही बातूनी है और उसके जितने सीन हैं वो बेहद मनोरंजक है। मुझे यह उपन्यास का सबसे मजेदार और यादगार किरदार लगा है। उपन्यास पढ़ते हुए मैं ऐसे सीन्स की प्रतीक्षा करता था जब बिल्लो आएगी। 
बिल्लो की बातों का एक उदाहरण देखिये:
“कब तक तेरी बात चलती रहेगी। पटा-पट के बात खत्म कर।” फिर बिल्लो, जगमोहन से कह उठी-“देवर जी, पहले ही बता देती हूँ, इसकी बातों में आकर काम शुरू न करना। जेठ जी की सलह तो जरूर ले लेना। वो मुझे समझदार लगते हैं।” 

“मैं समझदार नहीं लगता?” जगमोहन सकपकाकर बोला।

“क्या बात करते हो देवर जी?” बिल्लो मुस्कराकर कह उठा-“आप समझदार क्यों नहीं हो। आप भी हो। लेकिन जेठ जी तो जेठ जी ही हैं। बड़ों की सलाह तो जरूर ले लेनी चाहिए। मैं हर काम में अपने पति की सलाह पक्का लेती हूँ। सलाह लेनी चाहिए। काम गलत हो जाए तो सबकुछ सामने वाले के ऊपर डाल दो कि सलाह तो आपसे ही ली थी।”
(पृष्ठ 33)
बिल्लो के अलावा भी काफी किरदार उपन्यास में हास्य पैदा करने वाली हरकते करते हैं। उपन्यास में लानती का किरदार भी ऐसा ही है जो कि हास्य पैदा करता है। उपन्यास में एक प्रसंग है जिसमें देवराज की गाड़ी  एक वैन से दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है। उसी दौरान वहाँ दो राहगीर परमिंदर और दुलारा आते हैं। इन दोनों को लेकर जितने भी सीन बने हैं वह भी मजेदार है। उपन्यास में मदनलाल सोढ़ी नाम का किरदार है जो कि उस वैन का गनमैन होता है जिसकी चोरी होनी है। इसे लेकर एक अध्याय उपन्यास में लिखा है। इस अध्याय में मदनलाल के घर एक बुजुर्ग दम्पति आता है। इस दम्पति और मदनलाल के बीच का वार्तालाप भी हास्यजनक बन पड़ा है।
मुझे लगता है अनिल मोहन हास्य अच्छा लिख सकते हैं और ये तत्व उनके काफी उपन्यासों में होते हैं। अगर वो एक खालिस हास्यकथा लिखे तो उसे पढ़ने में मुझे जरूर रूचि होगी।
उपन्यास का अंत भावनात्मक बना है जो कि मुझे पसंद आया। एक किरदार जो पहले नालायक सा दिखाई देता है वही दिल का अच्छा निकलता है वहीं दूसरा किरदार जो कि पहले अच्छा बना था वह नालायक दिखलाई देता है। उपन्यास में लानती और पंचम की जोड़ी भी अच्छी बनी है। उनके बीच का समीकरण रोचक बन पड़ा था। 
उपन्यास की कमियों की बात करूँ तो उपन्यास में थोड़ा बहुत प्रूफ रीडिंग की कमियाँ हैं। वर्तनी की भी काफी गलतियाँ हैं।मेरी प्रति में पृष्ठों की भी दिक्कत थी। कुछ पृष्ठ आगे पीछे हो गये थे जिससे उपन्यास पढ़ते हुए थोड़ी सी ही सही लेकिन परेशानी हुई। 
वैन की लूट की योजना में वैन का गैराज में जाने की तारीख निर्धारित होती है। इस तारीख में भी थोड़ा बहुत संशय है। जगमोहन सतनाम के साथ मिलकर कोई और तारीख निर्धारित करता है और वैन एक दिन बाद गैराज में आती है। वैन के टायर बुलेटप्रूफ थे। इनको बदलने के लिए एक कारीगर ढूँढा जाता है जिसका नाम पहले कुछ था और बाद में बदल दिया गया था।
कथानक की कमी की बात करूँ तो कुछ कमियाँ मुझे लगीं।
वैन की डकैती की योजना पंचम की है और मुख्य कार्य उसके गैराज में ही होते हैं। यह बात मुझे अटपटी लगी। क्योंकि इससे पंचम के फँसने की सम्भावना तो सबसे ज्यादा थीं। क्योंकि इन लोगों का केवल पैसा लूटने का विचार था। न ड्राईवर न गनर को मारने का विचार था। वहीं गाड़ी के साथ भी कुछ ये नहीं करने वाले थे। ऐसे में बाद में पुलिस को गाड़ी मिलती तो वह समझ जाती कि इसमें छेड़खानी हुई है और फिर ये पता लगाना कि छेड़खानी किधर हुई है उनके लिए आसान काम था। देवराज और जगमोहन तो बाहर के लोग थे। वो तो काम करके निकल जाने वाले थे लेकिन पंचम और उसके साथी तो फँसने ही वाले थे। उपन्यास की कहानी जब आगे बढ़ती है तो होता भी यही है। पुलिस बहुत आसानी से पंचम तक पहुँच जाती है।
देवराज चौहान, जो कि इतना बड़ा डकैती मास्टर है, इस बाबत पंचम से कुछ भी बात नहीं करता है और न ही इस खतरे के विषय उसे बताता है। वैसे तो यह इतनी आम बात है कि पंचम को भी यह सोचना चाहिए था लेकिन उसे नौसीखिया मान लो तो एक डकैती मास्टर का यह न सोच पाना  थोड़ा अटपटा लगता है।
उपन्यास जैसे जैसे आगे बढ़ता है तो इसमें एक रहस्यमय किरदार होने का  संकेत आपको दिखलाई  देता है। इसका अंदाजा लगाना काफी आसान है। मुझे लगता है यह ट्विस्ट बेहतर हो सकता था। 
उपन्यास के अंत की घटनाएं मुख्य डकैती के तीन महीने बाद होती हैं। यहाँ चीजें जल्दी से निपटाई गयी लगती हैं। यहाँ दिखलाई गये प्रसंग और रोचक बन सकते थे विशेषकर वो वाले जिसमें देवराज और जगमोहन अपने साथ किये गये धोखे का बदला लेते हैं। एक किरदार को वो जान से मार देते हैं लेकिन यह किस तरह होता है वह दिखाया नहीं है। अगर दिखलाया जाता तो प्रसंग अच्छा बन सकता था।

अंत में यही कहूँगा कि उपन्यास  मुझे पसंद आया। कथानक में कुछ कमिया हैं लेकिन इन कमियों के होने के बाद भी यह आपका भरपूर मनोरंजन करता है। खूबियाँ कमियों पर भारी ही पड़ती हैं। उपन्यास में मौजूद हास्य पैदा करने वाले प्रसंग गुदगुदाते हैं और उपन्यास पढ़ने के लुत्फ़ को और बेहतर बना देते हैं। उपन्यास एक बार पढ़ा जा सकता है। 

उपन्यास की शुरुआत में जिन्न और गजाला वाले मामले की बात है। अगर आपको पता हो कि यह किस उपन्यास की बात हो रही है और यह क्या मामला था तो मुझे जरूर बताईयेगा। 

रेटिंग: 3.5/5

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© विकास नैनवाल ‘अंजान’


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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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4 Comments on “जीना इसी गली में – अनिल मोहन”

  1. शानदार समीक्षा। अनिल मोहन जी मेरे फेवरेट लेखकों में से हैं।

    1. जी लेख आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा। आभार।

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