मैं हूँ छुटकू – डॉ मंजरी शुक्ला | फ्लाईड्रीम्स प्रकाशन

मैं हूँ छुटकू - डॉ मंजरी शुक्ला | फ्लाईड्रीम्स प्रकाशन

संस्करण विवरण:
फॉर्मैट:
पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 38 | प्रकाशक: फ्लाईड्रीम्स पब्लिकेशन | चित्रांकन: श्रियंका दास और रोहित कर

पुस्तक लिंक: अमेज़न

कहानी

छुटकू एक सात महीने का छोटा सा कुत्ता था जिसे पसंद नहीं था कि कोई उसे कुत्ता कहे। अपने परिवार में वो सबसे ज्यादा रिमझिम को प्यार करता था और रिमझिम भी उसे बहुत प्यार करती थी। परिवार के दूसरे लोग भी उसे पसंद थे और उनके साथ भी उसके अनुभव थे। उन्हें लेकर भी उसे कुछ बातें करनी थीं।

ये क्या बातें थीं? क्यों उसे रिमझिम पसंद आती थी?

सुनिए छुटकू की जुबानी उसकी अपनी कहानी ‘मैं हूँ छुटकू’।

मेरे विचार

‘मैं हूँ छुटकू’ लेखिका डॉ. मंजरी शुक्ला की पुस्तक है। पुस्तक फ्लाईड्रीम्स प्रकाशन द्वारा प्रकाशित की गयी है। यह तीन अध्यायों में बँटी एक प्यारी सी पुस्तक है जिसमें हम छुटकू नामक सात माह के छोटे आकार के कुत्ते के नजरिए से उसकी कहानी जानते हैं। छुटकू कौन है? उसके परिवार में कौन कौन हैं? उनके छुटकू से कैसे रिश्ते हैं? छुटकू की उनके प्रति क्या सोच है और उसके परिवार की छुटकू के प्रति क्या विचार हैं? ये सब तो हम जानते ही हैं साथ ही छुटकू की पहली रेल यात्रा और उसके अनुभव को भी हम जान पाते हैं।

छुटकू के नजरिये से दुनिया को देखना मजेदार रहता है। जिस तरह से वह अपने आस-पास और अपने परिवार के लोगों विवरण देता है उसे पढ़ते हुए चेहरे पर मुस्कान बनी रहती है। विशेषकर पापा जब भी सीन में आते हैं या उनका जिक्र जब भी कहानी में आता है कुछ न कुछ हास्य जनक हो जाता है। इसके अतिरिक्त पुस्तक में तीन चूहों की तिकड़ी भी नजर आती है और उनसे छुटकू की मुलाकात बड़ी मनोरंजक बनी है।

परिवार में छुटकू और रिमझिम एक दूसर को सबसे ज्यादा चाहते हैं। छुटकू और रिमझिम के रिश्ते की खूबसूरती को दर्शाने में भी लेखिका कामयाब हुई हैं। अगर आपके यहाँ भी छुटकू जैसे सदस्य हैं तो आप इनके बीच के रिश्ते को समझ पाएँगे।

कहानी की कमी की बात करूँ तो मुझे लगता है कि इसकी कमी यही है कि ये थोड़ा छोटी है। मुझे लगता है कि तीन से थोड़ा अधिक अध्याय इसमें होते और छुटकू के दूसरे कारनामें भी हमें देखने को मिलते तो ये अधिक मजेदार हो जाती। अभी ये 38 पृष्ठ की ही है लेकिन मुझे लगता है कि 64 पृष्ठ की यह होती तो बेहतर होता।

कहानी तो मजेदार है ही साथ में एक और चीज है जो पुस्तक को और अधिक आकर्षक बनाती है। यह हैं श्रियंका और रोहित कर के रंगीन चित्र जो कहानी पर चार चाँद लगा देते हैं। यह पुस्तक पढ़ने के अनुभव को बढ़ा देते हैं। चित्र बड़े प्यारे बने हैं और पढ़ते हुए आपकी नजर इन पर टिकी रह जाती है।

अंत में यही कहूँगा कि मुझे तो छुटकू से मिलकर बड़ा मजा आया। उसके नजरिए से दुनिया देखना मुझे काफी अच्छा आया। मैं चाहूँगा छुटकू और उसके नए बने दोस्तों को लेकर भी लेखिका आगे जाकर कुछ लिखें। मैं ऐसा कुछ जरूर पढ़ना चाहूँगा। उम्मीद है बाल पाठकों को भी यह पुस्तक मनोरंजक लगेगी।

पुस्तक लिंक: अमेज़न

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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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