संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 44 | प्रकाशक: एकलव्य फाउंडेशन | चित्र: प्रशांत सोनी
पुस्तक लिंक: एकलव्य पिटारा

‘कक्कू के कारनामें’ लेखक पी के बसंत द्वारा लिखे एक ग्यारह वर्षीय शरारती बालक कक्कू के किस्सों का संग्रह है। कक्कु के पिता की बदली चलते वह कस्बों या गाँव के स्कूलों में पढ़ता था। ऐसे ही एक स्कूल में हुए उसके अनुभवों को इस पुस्तक में जगह मिली है। जहाँ 7 में से 6 किस्सों में उसकी ही मुख्य भूमिका है वहीं आखिरी किस्से का वो कथावाचक है और अपने दादाजी के जीवन से जुड़ी घटना सुना रहा है।
कक्कू के शुरुआती 6 किस्से उसके विद्यार्थी जीवन और उससे जुड़ी शरारतों से जुड़े हैं। यह ऐसी शरारतें हैं जिन्हें स्कूली जीवन में हम सभी ने या तो किया है या तो किसी को करते देखा है या करने की कल्पना की है लेकिन अंजाम के डर से कर नहीं पाए। ऐसे में इन्हें पढ़ना आपको वापस स्कूली दिनों में ले जाता है।
यह छोटे छोटे किस्से हैं जिनकी पठनीयता प्रशांत सोनी के चित्र बढ़ा देते हैं। संग्रह में निम्न किस्से हैं:
और घंटी बजने लगी
स्कूल के समय सबसे अधिक इंतजार छुट्टी की घंटी बजने का होता है। कई बार जब पीरियड बोरिंग हो तो बस यही सोचते रहते हैं कि काश जल्दी घंटी बज जाए तो भाग जाएँ। कई बार गलती से घंटी बज जाए तो बच्चे फिर शिक्षकों की भी नहीं सुनते हैं। कई फिल्मों और धारावाहिकों में यह दृश्य दर्शाया गया है। ऐसा ही कुछ इधर भी होता है। बस अगले दिन स्कूल में क्या हुआ ये भी दर्शाते तो बेहतर होता।
गांधी टोपी की कहानी
कई बार हम सोचते कुछ और हैं और हो कुछ जाता है। भलाई करने के चक्कर में दिक्क्त हो जाती है। इस किस्से में भी कुछ ऐसा ही होता है। हाँ, इधर भी पहले किस्से की तरह अगले दिन की कहानी नहीं बताई गयी है। अगर वो होता तो बेहतर होता। हाँ, इसमें एक वर्तनी की गलती दिखी गांधी को गाँधी लिखा है। अगले संस्करण में इसे सुधारे तो बेहतर रहेगा।
कक्कु का फुटबॉल मैच
छात्र जीवन में सीनियर और जूनियर कक्षा के बीच में एक तरह की प्रतिद्वंदिता होती है। यह अक्सर एक कक्षा आगे के छात्रों के बीच होती है। कक्कु और उसकी कक्षा के छात्र भी अलग नहीं है। वह छठी में हैं और सातवीं कक्षा के छात्र उनसे प्रतिद्विंदिता रखते है। जब कक्कु और उसके साथियों ने फुटबॉल खरीदी तो सातवीं के बच्चों ने उन्हें मैच के लिए ललकारा। फिर जो हुआ वो ही इस किस्से का विषय बनता है।
कक्कु और अंग्रेजी की पढ़ाई
अंग्रेजी के उच्चारण कई बार संशय में डाल देते हैं। इससे कई बार मजाकिया स्थिति उत्पन्न हों जाती है। कुक्कू ने अंग्रेजी सीखी इसी के इर्द गिर्द लिखी है। हाँ, जिन उदाहरणों को इधर दिया गया है वो कई बार टीवी वगैरह में भी आ चुके हैं। बेहतर होता कि वो नये उदाहरण का प्रयोग वो करते। इस लेख में भी अंग्रेजी को अँग्रेजी लिखा गया है। इसे भी अगले संस्करण में ठीक कर दें तो बेहतर होगा।
कक्कु गया फिल्म देखने
पहले के जमाने में फिल्म देखना भी एक बड़ा कार्य होता था। फिल्मों की टिकट मिलना भी कठिन होता था। ऐसे में कक्कु और उसके दोस्त कैसे फिल्म देखने गए और इस चक्कर में उन्हें क्या-क्या पापड़ बेलने और फिल्म का अनुभव उनका कैसा हुआ ये देखना रोचक होता है। किस्सा पढ़ते हुए आपके चेहरे पर मुस्कान बनी रहती है।
घोड़ी ने दूल्हे को क्यों पटका
‘घोड़ी ने दूल्हे को क्यों गिराया’ एक शादी के दौरान का किस्सा है। शीर्षक से पता चलता है कि शादी में क्या हुआ? इसका रोचक विवरण लेखक ने किया है। हाँ, अगर जिसने शरारत की उस पर बड़े बुजर्गों की गाज गिरने की नौबत आती और वह उनसे बचने की कोशिश करता तो किस्सा और रोचक बन सकता था। अभी तो केवल शरारत हो ही जाती है।
ताड़का वध
यह एक मज़ाकिया किस्सा है जिसे कक्कु सुना रहा है। इस किस्से के नायक कक्कु के दादाजी हैं जो कि रामलीला में राम बनते थे। ताड़का वध के दौरान ताड़का बने रहीम चाचा को ज्यादा जोश आ जाता है और इससे क्या स्थिति होती है यह इसमें दर्शाया गया है। रोचक किस्सा है।
अंत में यही कहूँगा कि संग्रह में मौजूद किस्से पठनीय हैं। वयस्क पढ़ेंगे तो अपने स्कूली दिनों को जरूर याद करेंगे। बच्चों के मामले में ये कहना है कि सिमें कई बार लेखक ने शरारतों को ही दर्शाया है और उसके अगले दिन की बात नहीं बताई है। मुझे यकीन है अगले दिन उस शरारत के लिए कक्कु को जरूर सजा मिली होगी क्योंकि फँसना तय था। अगर अगले दिन को भी कथानक में दर्शाते तो बेहतर होता। कम से कम बच्चों को ये शिक्षा मिलती कि शरारत करके उस दिन तो बच सकते हैं लेकिन अगला दिन भी तो आना है।
पुस्तक में मौजूद कक्कु के इन किस्सों में से कुछ किस्से और कुछ अन्य किस्से आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं। कुछ नवीन किस्से जिन्हें पुस्तक में जगह नहीं मिली है वो भी इधर पढ़ने को मिलेंगे। उम्मीद हैं आपको वो पसंद आएँगे:
पुस्तक लिंक: एकलव्य पिटारा