कब्रिस्तान का षड्यन्त्र – जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा

संस्करण विवरण: 

फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 120 | प्रकाशन: नीलम जासूस कार्यालय 

पुस्तक लिंक: अमेज़न 

कहानी 

हाँगकाँग में इन दिनों राजेश ने अपना केंद्र बना रखा था और चीनी जासूसों के भारत विरोधी कार्यों को धता बता रहा था। 

यही कारण था कि उसके खिलाफ षड्यंत्र रचा गया था। 

आखिर कौन था ये षड्यंत्रकारी?

वह क्यों राजेश के कब्रिस्तान बुलवाना चाहता था?

मुख्य किरदार

डार्लिंग – चीन की थियेटर की एक अदाकारा 
राजेश – भारतीय सीक्रिट एजेंसी का एक जासूस 
जयंत – राजेश का मातहत
चंद्रमाला – भारत की प्रसिद्ध नर्तकी
शिवराम दरियानी – इण्डिया होटल का मालिक जिसके यहाँ चंद्रमाला अपना प्रोग्राम देने आ रही थी
जगत – अंतरराष्ट्रीय ठग 
शमीम आरा – पूर्वी पाकिस्तान ढाका की तवायफ़ 
मिस लिन – एक चीनी युवती जो कि जगत की प्रेमिका थी और जगत की ठग फर्म की मैनजर थी
मिस्टर कोलविल – हॉन्ग कॉन्ग खुफिया पुलिस के चीफ
चिन तेह – चीनी जासूस जिसने राजेश के खिलाफ षड्यंत्र रचा था
हो, चांग – चिन तेह के आदमी 

मेरे विचार

भारत और चीन के सम्बन्ध कभी भी लम्बे समय तक मैत्रीपूर्ण नहीं रहे हैं। बीच-बीच में ऐसा होता जरूर है जब एक सकारात्मकता आती है लेकिन ज्यादातर वक्त भारत और चीन के बीच तनातनी चलती रहती है। इस तनातनी को लेकर लोकप्रिय लेखन करने वाले लेखकों ने भी अपनी कल्पना के घोड़े काफी चलाए हैं और कई जासूसी उपन्यास भारत चीन के इन सम्बन्धों पर लिखे गए हैं। ऐसा ही नीलम जासूस कार्यालय द्वारा प्रकाशित उपन्यास कब्रिस्तान का षड्यन्त्र है। 

जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा द्वारा लिखित इस उपन्यास ‘कब्रिस्तान का षड्यन्त्र’ का घटनाक्रम हाँगकाँग में घटित होता है। 120 पृष्ठों के इस उपन्यास में कथानक की शुरुआत एक चीनी अदाकारा के कमरे से होती है। हाँगकाँग की रंगमंच की अदाकारा ‘डार्लिंग’ किसी परिचय की मोहताज नहीं है। पर हर व्यक्ति का अपना एक भूतकाल  होता है और डार्लिंग का भी एक भूतकाल  है जो कि अब उसके सामने मुँह बाये खड़ा है। अपने भूतकाल का अहसान चुकाने के लिए डार्लिंग को भारतीय जासूस राजेश को आकर्षित कर उसे कब्रिस्तान में लाने का कार्य मिलता है। यह कार्य उसे कौन और क्यों दे रहा है? वह राजेश को क्यों कब्रिस्तान ला रहे हैं? यह अदाकारा किस तरह राजेश को कब्रिस्तान तक लाती है और इस सब में राजेश की क्या प्रतिक्रिया रहती है? यह सब ही उपन्यास का कथानक बनते हैं। 

उपन्यास चूँकि 120 पृष्ठों का है तो इसमें अनावश्यक घटनाओं के लिये कोई जगह नहीं है। चीजें टू द पॉइंट रहती हैं। राजेश एक तेज तर्रार जासूस है जिसका परिचय उपन्यास में मिलता रहता है। उसके दुश्मन जो चाल चलते हैं वह उनसे पार पाता है और कई बार दुश्मन से मात भी खाता है। ये घटनाएँ और उपन्यास के अन्य किरदार घटनाक्रम में रोचकता बरकरार रखते हैं और उपन्यास अंत तक पढ़ते चले जाने के लिए आपको विवश कर देते हैं। चूँकि उपन्यास छोटा है तो उतने घुमाव इसमें नहीं हैं लेकिन फिर पृष्ठ संख्या के हिसाब से ये सही भी है। अगर आपको काफी जटिल और घुमावदार कथानक या रहस्यकथा  पढ़ने का शौक है तो शायद उपन्यास निराश करे क्योंकि न यह ज्यादा जटिल है, न ज्यादा घुमावदार और न ही कोई विशेष रहस्य इसमें मौजूद है। यह एक सीधी सादी रोमांचकथा है जिसमें किरदारों के माध्यम से लेखक ऐसी बातों पर भी बातचीत करते हैं जो कि पाठकों को सोचने के लिए काफी कुछ दे जाती है। 

उपन्यास के किरदार की बात करूँ तो इसके केंद्र में चीनी अदाकारा डार्लिंग है। वह एक खूबसूरत कलाकार है जो कि अहसान का बदला चुकाने के लिए एक गलत काम करने को तैयार तो हो जाती है लेकिन जब वह राजेश से मिलकर उसको जानती है तो राजेश के प्रति उसके मन में सम्मान पैदा हो जाता है। ऐसे में वह खुद का त्याग करने से भी पीछे नहीं हटती है। उसका चीन को लेकर एक सपना है जो कि उसे एक आदर्श नागरिक बताता है। हर व्यक्ति का अपने देश को लेकर ऐसा ही सपना होना चाहिए। 

उपन्यास में राजेश हैं और अपनी ट्रेड मार्क सज्जनता लिए हुए हैं। राजेश एक तेज तर्रार जासूस हैं पर जासूसी का काम करते हुए भी वह अपनी इंसानियत नहीं छोड़ते हैं। उपन्यास में उनकी सोच बार बार दर्शाई गई है कि वह प्रेरित करती है। फिर वह सोच मैत्री के प्रति हो, इंसानियत के प्रति हो या फिर दो ऐसे देशों के प्रति हो जिनकी सरकारें आपस में लड़ रही हैं। वह जानते हैं कि देशों के बीच युद्ध केवल सरकारों का होता है और नागरिकों को उससे बचना चाहिए। वह कहते हैं कि उस वक्त के लोग भी यह बात समझते थे। आज का माहौल जैसा जहरीला होता जा रहा है उसमें यह बात याद रखने योग्य है। ऐसे वक्त में जब हमसे उम्मीद की जाती है कि हम व्यक्ति के देश उसके धर्म आदि को देखकर उसके प्रति धारणा कायम करें हमें समझना होगा कि व्यक्ति की अच्छाई इस बात पर निर्भर नहीं करती है कि वह कौन से देश का है और कौन से धर्म का है। यह खाली उस व्यक्ति पर निर्भर करती है। अच्छा व्यक्ति किसी भी देश और धर्म में अच्छा ही होगा। बुरा व्यक्ति बुरा। ऐसे में उस व्यक्ति को देखकर केवल उसका आकलन होना चाहिए न कि देश और धर्म  देखकर उस व्यक्ति का आकलन। 

राजेश अपने दोस्तों से तो अच्छे से पेश आते हैं साथ ही अपने दुश्मनों से भी ऐसे पेश आते हैं जिसकी मिसाल दी जा सकती है। बानगी देखिए 

‘नहीं दादा।’, राजेश के स्वर में विजेता का दम्भ नहीं, सहानुभूति की विनम्रता थी- ‘शान कैसी! मैं तो सिर्फ यह बताने आया हूँ कि मेरे मन में तुम्हारे सारे जुर्म भुगत लेने के बावजूद तुम्हारे प्रति शत्रुता की भावना नहीं है। दादा, तुम बार-बार मेरी जान लेने में असफल रहे लेकिन मैं यह जता देना चाहता हूँ कि इसके बावजूद मैंने अब तक तुम्हारी जान लेने की कोशिश नहीं की। मैं सिर्फ यह साबित करना चाहता था कि किसी की जान ले लेना बहादुरी नहीं है।’ (पृष्ठ 113)

राजेश को अभी तक जितना मैंने पढ़ा है वह एक तरह से आदर्श व्यक्ति हैं। उनके चरित्र की कोई कमी हो अब तक मुझे तो वह उजागर नहीं हुई है। यह ऐसा किरदार है जिसके जैसे बनने की व्यक्ति कोशिश जरूर कर सकता है लेकिन बन पाएगा इसकी कोई गारंटी नहीं है। इस कारण कभी कभी यह किरदार यथार्थवादी नहीं लगता है। शायद इसी कारण लेखक ने उसे धूम्रपान करते हुए दर्शाया है ताकि यथार्थ से जुड़ा हुआ वो लगे।  

उपन्यास में राजेश के साथ-साथ जयंत और जगत भी हैं। यह जीवंत किरदार लगते हैं और आम लोगों के ज्यादा निकट हैं।  जयंत और राजेश के बीच जो दोस्ती है वह उनकी तू-तू मैं मैं से पता चलता है। जहाँ राजेश धीर-गंभीर है वहीं जयंत थोड़ा चंचल सा लगता है।  जयंत के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय ठग जगत भी इधर है। जगत और जयंत की तू तू मैं मैं भी उपन्यास में हास्य लाती है। इनके बीच के सीन पढ़ने में मज़ा आता है।

जहाँ जयंत राजेश का साथी है वहीं जगत एक ठग जरूर है लेकिन कई बार यह देखने को मिलता है कि वह राजेश को जयंत से ज्यादा समझता है।  

जगत अपने आप में एक रोचक किरदार है।  जगत महिलाओं के प्रति आसानी से आकृष्ट हो जाता है और कई बार जान की बाजी भी इस चक्कर में लगा देता है। उसकी हरकतें उपन्यास में हास्य लाती रहती हैं। 

उपन्यास में एक महत्वपूर्ण किरदार चिन तेह का है। एक जासूस जैसे निष्ठुर होता है और अपने मकसद को पाने के लिए जुनूनी होता है वैसा ही चिन तेह भी है। वह एक खतरनाक किरदार है। हाँ कुछ कुछ जगह वह बेवकूफियाँ वो कर देता है। 

उपन्यास की कमी की बात करूँ तो उपन्यास का शीर्षक कब्रिस्तान का षड्यन्त्र तो रोचक है लेकिन कथानक पढ़ते हुए लगता है कि कब्रिस्तान की कोई इतना जरूरत इस कथानक में नहीं थी। जो षड्यन्त्र रचा जाता है वो कहीं और भी रचा जा सकता था। कब्रिस्तान का महत्व यहाँ थोड़ा अधिक होता तो बेहतर होता। 

वहीं उपन्यास में एक प्रसंग है जब चिन तेह राजेश और उसके साथियों को कब्जे में ले लेता है। इस प्रसंग में वह चूँकि जयंत की पहचान से वाकिफ नहीं होता है तो वह उसे छोड़कर राजेश और उसके साथ एक और किरदार को लेकर चला जाता है। इस प्रसंग में मैं यही सोच रहा था कि क्या हाँगकाँग में भारतीय नस्ल के ड्राइवर होना इतना सामान्य बात है कि एक जासूस ने ड्राइवर के रूप में भारतीय देखा और ये नहीं सोचा कि जासूस की गाड़ी चलाने वाला यह ड्राइवर भी जासूस हो सकता है? अगर मैं  होता तो शायद ये चीज अवश्य सोचता क्योंकि शायद हाँगकाँग में भारतीय ड्राइवर इतनी  सामान्य बात नहीं होगी।  

प्रस्तुत संस्करण की बात करूँ तो इसकी छपाई अच्छी गुणवत्ता वाले कागज पर हो रखी है। प्रस्तुत पुस्तक में प्रूफ की गलतियाँ भी इक्का दुक्का ही हैँ जो कि खटकती नहीं हैं। चूँकि यह उपन्यास पुनः प्रकाशित किया गया है तो इसके प्रथम प्रकाशन वर्ष की जानकारी अगर प्रकाशक पुस्तक के साथ साझा करते तो पाठक के लिए वह जानकारी रोचक होती। 

अंत में यही कहूँगा कि यह रचना एक बार पढ़ी जा सकती है। चूँकि काफी वर्ष पहले लिखी गई थी तो इस बात का ध्यान रखकर पढ़ेंगे तो इसका आनंद अधिक ले पाएँगे।   

उपन्यास की कुछ पंक्तियाँ जो मुझे पसंद आईं

संसार में होने वाली घटनाओं से लेकर व्यक्तिगत जीवन की घटनाओं तक में सभी बातें सुखद नहीं होतीं। दुख, आपदाओं के बीच भी जीने की जिम्मेदारी से इंकार नहीं किया जा सकता है, अतएव जो दुख प्रसंग बीत जाये उसको भुला देना ही अच्छा होता है। (पृष्ठ 17)

मित्र की प्राप्ति, मेरी दृष्टि में खजाने की प्राप्ति से भी अधिक सुखकर और उपयोगी होती है। (पृष्ठ 19

सच्ची मित्रता के बंधन भी अटूट होते हैं। मित्रता का आरंभ होता है विश्वास से। विश्वास उपजता है मन से… मन के व्यापार में घाटा भी होता है और नफा भी। (पृष्ठ 28)

 

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About विकास नैनवाल 'अंजान'

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6 Comments on “कब्रिस्तान का षड्यन्त्र – जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा”

  1. उपन्यास में राजेश हैं और अपनी ट्रेडमार्क सज्जनता लिए हुए हैं 😂😂😂❤️❤️❤️

    बहुत अच्छा लिखा विकास भाई।

    1. उपन्यास पर लिखी यह टिप्पणी आपको पसंद आई यह जानकर अच्छा लगा आभार।

  2. क्या आप इस बारे मे जानकारी दे सकती है कि यह लेखक जनप्रिय की पदवी खुद ही लगाते है या इन्हें सचमे सम्मान मिला है?

    1. जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा ने अपने नाम के आगे यह शब्द इसलिए जोड़े क्योंकि उनके उपन्यासों की लोकप्रियता इतनी थी कि कई प्रकाश ओम प्रकाश शर्मा नाम से उपन्यास निकालने लग गए थे। लेखक ने जब इसका विरोध किया तो उन्हें बताया गया कि केवल वही एकलौते ओम प्रकाश शर्मा थोड़े न है और जो दूसरे लोग कर रहे हैं वह कानूनी है। लेखक ने ज्यादा पचड़े में पढ़ने के बजाय अपने नाम के आगे जनप्रिय लेखक जोड़ा और इसे असल ओम प्रकाश शर्मा के ट्रेडमार्क के रूप में स्थापित किया।

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