फॉर्मेट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 60 | प्रकाशक: विश्व बुक्स
पहला वाक्य:
माधोपुर भारत के अन्य गाँवों की तरह एक गाँव था।
कहानी :
माधोपुर गाँव के निवासी गढ़ी के खंडहरों का नाम सुनकर दहशत में आ जाते थे। उनके मुताबिक गढ़ी के खंडहरों में प्रेतों का वास था और जो भी मनुष्य उन खंडहरों में रात को जाने की कोशिश करता था उसे गढ़ी के प्रेत दंडित करते थे। इन प्रेतों का शोर शराबा यदा कदा गाँव वालों को सुनाई देता रहता था जिसके कारण गाँव के माहौल में दहशत का प्रवाह और बढ़ जाता था।
गाँव के कई लोगों ने इन प्रेतों को देखा था और उन बदनसीबों की लाश ही फिर मिली थी। केवल एक गोपाल ही था जिसे प्रेतों ने जिंदा छोड़ दिया था।
माधोपुर गाँव के निवासियों पर इसका यह असर पड़ा था कि उन्होंने गढ़ी के खंडहरों की तरफ जाना ही छोड़ दिया था।
जहाँ एक तरफ माधोपुर के निवासी गढ़ी के प्रेतों से परेशान थे वहीं दूसरी तरफ एक डाकुओं के गिरोह ने भी उनका जीना दुश्वार कर दिया था। वो आते और लूट पाट करके चले जाते और कोई कुछ भी नहीं कर पाता था। गाँव के लोग इन दोनों परेशानियों के आगे बेबस से होकर अपनी ज़िंदगी काट रहे थे।
फिर एक दिन गाँव के ही एक लड़के रमेश, जो कि पास के शहर विजयनगर पढ़ता था, के दोस्त राजू और रामू माधोपुर घूमने आये। राजू और रामू नई पीढ़ी के लोग थे और भूत प्रेतों पर उनका कोई विश्वास नहीं था। यही कारण था कि गढ़ी के प्रेतों की बात ने उन्हें आकर्षित किया और उन्होंने इस बात की तह तक जाने का फैसला किया।
क्या राजू और रामू गढ़ी के खंडहर के रहस्य का पता लगा पाये? इसके लिए उन्हें किन किन मुसीबतों से दो चार होना पड़ा?
इन्हीं सब प्रश्नों का उत्तर आपको इस बाल उपन्यास को पढ़ कर मिलेगा।
मुख्य किरदार:
मेरे विचार:
‘गढ़ी के खंडहर’ राजनारायण बोहरे जी का एक बाल उपन्यास हैं। उपन्यास के केंद्र में राजू और रामू हैं जो कि बहादुर बालक हैं और मुसीबतों से दूर भागने के बजाय उनका सामना करने में विश्वास रखते हैं। यह चीज कहानी के शुरुआत में ही स्थापित कर दी जाती है।
कहानी मुख्य घटनाक्रम माधोपुर नाम के गाँव में घटित होता है जहाँ के लोगों का विश्वास है कि वहाँ के एक पुराने किले के खंडहरों में प्रेतों का निवास है। पाठक को शुरुआती अध्याय में ही इन प्रेतों से मिलाया जाता है जिसके बाद कथानक में रोचकता और रोमांच आता है। राजू और रामू का तस्वीर में आना भी यह सुनिश्चित करता है कि कहानी में रोमांच बरकरार रहेगा। यह रोमांच अंत तक बरकरार भी रहता है और पाठक यह जानने के लिए उपन्यास पढ़ता जाता है कि इसका अंत क्या होगा?
उपन्यास छोटे छोटे अध्यायों में विभाजित है और कथानक को अनावश्यक तरीके से खींचा नहीं गया है तो इस कारण कहानी में कसाव है। उपन्यास में अध्यायों के बाद चित्र भी मौजूद हैं जो कि इस उपन्यास को और आकर्षक बनाते हैं। बच्चों को यह चित्र पसंद आएंगे।
उपन्यास के कमजोर पहलुओं की बात करूँ तो सबसे पहली बात जो निकलती है वो गाँव में प्रेत के होने की संकल्पना ही है। यह ऐसा विषय है जिसके चारों ओर न जाने कितने वर्षों से कथानक बुने जाते रहे हैं। पाठकों को पता होता है कि इस तरह के उपन्यासों का अंत कैसे होता है। बच्चे जो स्कूबी डू देखते आये हैं उन्हें भी इसका अंदाजा हो ही जायेगा। तो कई पाठकों को कथानक में नवीनता का न होना खटक सकता है। मुझे व्यक्तिगत तौर पर इससे इतना फर्क नहीं पड़ता है।
कहानी का दूसरा कमजोर पहलू यह है कि इसमें एक प्रसंग है जिसमें एक किरदार बच्चों को आगाह करता हुआ दिखता है। यह आगाह करना कम और धमकी देना ज्यादा प्रतीत होता है। यह पढ़ते ही मुझे अंदाजा हो गया था कि इसका इस मामले से कुछ न कुछ लेना देना जरूर है। अंत में ऐसा निकलता भी है तो इस प्रसंग से बचा जा सकता था।
उपन्यास के शरूआत में जब राजू और रामू गढ़ी के खंडहरों की तरफ जाते हैं तो रामू के हाथ में टॉमीगन रहती है। जहाँ तक मुझे पता है टॉमी गन एक मशीन गन होती है जिसका बच्चे के पास होना खटकता है। वहीं ये बच्चे जब आखिर में खंडहर में जाते हैं तो रामू टॉमीगन न ले जाकर हॉकी ले जाता है। यह बात भी थोड़ा सा खली।मेरे पास अगर बन्दूक होगी तो मैं हॉकी के बजाय उसे ही महत्व दूँगा।
अंत में यही कहूँगा कि ऊपर लिखी कमियाँ इसमें न होती और बेहतर बन सकता था। फिलहाल हिन्दी में रोमांचक बाल उपन्यासों की भारी कमी है। यह उपन्यास उस कमी को थोड़ा भरता है तो आपको इसे एक बार आजमाना चाहिए। आपके घर कोई बच्चा या बच्ची है तो उसे इस उपन्यास को दीजिये और हो सके तो उसकी प्रतिक्रिया से मुझे अवगत करवाईयेगा।
पुस्तक लिंक: पेपरबैक
©विकास नैनवाल ‘अंजान’