हफ्ते में पढ़ी गयी कहानियाँ ( १८ मई – २४मई)

पिछले हफ़्तों  में भाग दौड़ ऐसी  रही  कि कहानियाँ नहीं पढ़  पाया। खैर कोई नहीं इस हफ्ते जो भी पढ़ा है वो आपके समक्ष है। आप भी पढ़िएगा :

अकेली – मन्नू  भंडारी
स्रोत : शब्दांकन
पहला वाक्य:
सोमा बुआ का जवान बेटा क्या जाता रहा, उनकी जवानी चली गयी।

मन्नू भंडारी जी की कहानियाँ बेहतरीन होती ही हैं। और  ‘अकेली’ भी  ऐसी ही है। सोमा बुआ का एक लौता बेटा जब दिवंगत हुआ तो वो अकेली ही रह गयी। पति ने संन्यास ग्रहण कर लिया और अब बस साल में एक ही बार रहने लगा। सोमा बुआ ने अपने अकेलेपन का ईलाज लोगो के गृह कारिज में मदद करने को बनाया। कहानी मार्मिक है हालांकि अंत दुखद है। एक उम्मीद के टूटने का दुःख इस कहानी से झलकता है। और पाठक को सोचने पर मजबूर कर देता है कि शायद सोमा बुआ बिना बुलाये ही वहाँ चली जाती तो इस दुःख का सामना उन्हें नहीं करना पड़ता। मन्नू जी ने अकेलेपन के दुःख का मार्मिक चित्रण किया है।

खौफ – लाल बहादुर

स्रोत : कथादेश मई २०१५

पहला वाक्य :
रघुनाथ को अपने घर के बाहर मोटर-साइकिल रुकने की आवाज़ सुनायी पड़ी तो वह चौंका, उठकर बैठ गया।

रघुनाथ से मिलने जब से वे लोग आये हैं वो दहशत में है। वे लोग उसका घर चाहते हैं और वो उसे लेकर ही रहेंगे। रघुनाथ जो कि एक मामूली आदमी है उसे इस बात का कोई शक नहीं है कि अगर उसने नानुकुर की तो शायद वो बल का प्रयोग करें।लेकिन रघुनाथ इतनी जल्दी हार मानने वाला नहीं है। क्या करेगा वो??और क्या बचा पायेगा अपने घर को??
पूँजीपतियों के लिए जमीन के टुकड़े पर बने हुए मकान की कीमत भले कुछ न हो लेकिन वहाँ के रहने वालों कि संवेदनाओं में उसका एक महत्वपूर्ण स्थान रहता है । कई यादें होती है और कई भावनाएं जुडी होती हैं एक घर से। ऐसे में जब कोई बल से उस घर से बेदखल करन पर अमादा हो जाये तो फिर जो दर्द उस व्यक्ति को होता है उसका बेहद सटीक चित्रण इस कहानी में किया गया है। रघुनाथ को पता है कि वोअपने प्रतिद्वंदियों के सामने नहीं टिक पायेगा लेकिन उसका अपने घर के प्रति लगाव इतना है कि वो कोशिश करने से हिचकिचाता नहीं है ।एक अच्छी कहानी है जो इस समय को सही ढंग से ब्यान कर रही है । गरीब को अपनी ज़मीन से बेदखल किया जा रहा है । ऐसे करते समय पूरा तवज्जो आर्थिक हिस्से के ऊपर दिया जाता है और भावनात्मक हिस्से को नज़रंदाज़ कर दिया जाता है ।ऐसे में ये कहानी उस भावनात्मक रिश्ते को दिखाती है । आप भी पढियेगा ज़रूर ।




फोनो – लव कुमार सिंह(लघु कथा)

स्रोत : कथादेश मई २०१५

पहला वाक्य :
शहर में नगर निगम चुनाव हो रहे थे।

चुनाव के दिनों में अक्सर जनता को अखबारों या दूरदर्शन के माध्यम से अनेक सर्वे या साक्षात्कारों का पता चलता है। कई बार हमे ये भी सुनने को मिलता है कि फल्ला नेता ने जनता के सवालों का जवाब दिया। ऐसे सर्वे, साक्षात्कार या जवाबों कि खबरे कितनी सच्ची होती हैं ये तो वही जान सकते हैं जिन्होंने इन कार्यक्रमों में भाग लिया है। लेकिन आम जनता कई बार इन बातों में आँख मूँद कर विश्वास कर लेती है। ऐसे ही एक शहर कि कहानी को इस लघु कथा में दर्शाया गया है। जनपक्ष अखबार ने ये तय किया कि नगर निगम के चुनाव में मेयर के प्रत्याशियों को अखबार के दफ्तर में बुलवाकर उनसे फ़ोनों करवाया जाएगा यानी कि जनता फोन पर अपने सवाल करेगी और प्रत्याशियों को जवाब देना होगा। कार्यक्रम का आयोजन तो बढ़िया था लेकिन क्या इसमें सवाल जनता ही करने वाली थी? इन आयोजनों के एक रूप को ये लघुकथा दर्शाती है। अच्छी लघुकथा है, आपको पढनी चाहिए।


FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर उन्हें लिखना पसंद है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

View all posts by विकास नैनवाल 'अंजान' →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *