finished on:December 27th 2013
पुरस्कार – साहित्य अकादमी पुरस्कार 2010
मोहन दास उदय प्रकाश जी की में प्रकाशित एक दीर्घ कहानी है ।
मोहन दास हमारे आज के समाज के चेहरे को सही रूप में दिखती है । कैसे आजकल भाई -भतीजावाद , चाटुकारिता और रुपयों के बल पे प्रतिभावान लोग पीछे रह जाते हैं और कम प्रतिभा वाले लोग आगे बढ़ जाते हैं , यही इस कहानी में दर्शाया गया है ।
मोहन दास एक निचली जात का मेहनती एवं बुद्धिमान छात्र था । अपनी मेहनत के बल पे उसने अपनी यूनिवर्सिटी में दूसरा स्थान हासिल किया । उसकी इस उपलब्धि से न केवल उसके घरवाले बल्कि उसकी बिरादरी वाले भी बेहद खुश थे क्यूंकि वह उनमें से वह पहला ऐसा लड़का था जिसने ग्रेजुएशन किया था और वो भी इतने अच्छे अंकों से । लेकिन उसे क्या पता था कि यूनिवर्सिटी में अच्छे अंक लाना कुछ और बात थी लेकिन बाहर कि जिंदगी में केवल अंक और प्रतिभा ही नहीं किन्तु साथ में पैसा ,पहचान भी चाहिए होती है । मोहन दास भी सिस्टम से झूझने कि कोशिश करता है । क्या उसे नाकामयाबी मिलती है या वो कामयाब होता है ? ये तो आप इसे पढ़ने के बाद ही जान पाएंगे ।
उदय प्रकाश जी ने आज कल के सिनेरियो को बड़ी बखूबी के साथ दर्शाया है । आज कल सरकारी नौकरी पाने के लिए केवल मेरिट में नंबर आना ही काफी नहीं होता है, उसके साथ अंदरूनी सांठ गाँठ भी होनी ज़रूरी है । यह हमारे सिस्टम का एक ऐसा अंग बन चूका है कि लोग इसे कुछ गलत न मानकर सिस्टम का हिस्सा मान चुके हैं । मोहन दास इसी सिस्टम से झूझते हुए इंसान कि कहानी है जिससे इसने न केवल उसके हक़ कि नौकरी बल्कि उसकी पहचान तक छीन ली । एक बेहतरीन रचना है जिसे हर किसी को पढ़ना चाहिए ।
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