बकरे कि माँ – रीमा भारती

रेटिंग : २.५/५
उपन्यास पढ़ने कि तारीक : ९ मई २०१५ से १० मई २०१५

संस्करण  विवरण :
फॉर्मेट : पेपरबैक
पृष्ठ संख्या : २८७
प्रकाशक : रवि पॉकेट बुक्स

पहला वाक्य:
“गुड इवनिंग सर।”
मैं अपने चीफ के केबिन का स्प्रिंग युक्त दरवाज़ा खोलकर भीतर दाखिल होते हुए बोली।

‘बकरे कि माँ’ में दूसरी बार मैं रीमा भारती से रूबरू हुआ। इससे पहले कौन जीता कौन हारा पढ़ी थी। बकरे कि माँ कब खैर मनाएगी एक हिंदी मुहावरा है जिसके पहले हिस्से से इस उपन्यास के शीर्षक को लिया गया है। रीमा भारती को उसका हमसफ़र मिल गया था और वो उससे शादी के बंधन में बंधने जा रही थी। इसकी खबर जब वो आई एस सी में अपने बॉस खुराना को देती है तो उसे लग रहा था कि वो उसकी ख़ुशी में शरीक होंगे और बेटी कि तरह उसे विदा करेंगे। लेकिन इस खाबर का उनपर उल्टा ही असर होता है और वो रीमा को शादी करने से मना कर देते हैं। फिर ऐसा कुछ होता है कि रीमा को आई एस सी से बर्खास्त कर दिया जाता है और पूरे भारत की पुलिस उसके पीछे पड़ जाती है। और रीमा ने खुद फैसला लिया है कि वो आई एस सी और खुराना का नामोनिशान इस दुनिया से मिटा देगी। क्या रीमा क़ानून के हत्थे चढ़ी? क्यों वो आई एस सी के खिलाफ हो गयी? और क्या वो अपने आप को क़ानून के शिकंजे से बचा पाएगी? इसके इलावा कोई और भी है जो रीमा के इस बदले रवैये का फायदा उठाना चाहता है। कौन है वो शख्स जिसके आदमियों से रीमा का टकराव होता रहता है? वो क्या चाहता है रीमा से?
जानने के लिए पढ़िए रीमा भारती के उपन्यास बकरे कि माँ को।

उपन्यास रीमा भारती के जुबान में है यानी कि पाठक को कहानी रीमा के नज़रिए से दिखती है। कहानी अच्छी है। अगर इस कहानी के अच्छे तत्वों कि बात करूँ तो वो कहानी में बयाँ किये हुए लड़ाई के दृश्य होंगे। इन्हें बड़ी ही खूबसूरती से लिखा गया है और पाठक को रोमांचित करने में ये कामयाब होते हैं। उपन्यास अच्छा है और एक बार पढ़ा जा सकता है।

उपन्यास में कुछ कमी भी लगी जैसे कई बार रीमा एक बड़बोली की तरह प्रतीत होती है। अगर ये बातें तीसरे वचन में कही गयी होती तो ज्यादा अच्छा रहता। जैसे कई बार रीमा कहती है मैंने तो इतने बड़े बड़े खतरों का सामना किया है। मैंने ये किया मैंने वो किया। जो कि अगर लेखक रीमा के लिए कहता तो अच्छा रहता। लेकिन कहानी में ये बातें रीमा के मुँह से कहलवाकर  शायद ठीक नही किया।

दूसरी बात जब रीमा खुराना को फ़ोन करती है तो प्यारे के फ़ोन से करती है। ऐसा करने से खुराना आसानी से पता लगा सकता था कि रीमा प्यारे के साथ है। रीमा को एक जासूस के नाते इसका पता होना चाहिए था।

तीसरी बात है तो बड़ी छोटी लेकिन ये उभर कर सामने आई थी। काजिस्तान में जितने भी किरदारों से रीमा टकराती है उनका नाम मुसलमानी होता है। जैसे माजिद खान, शबनम, गद्दाफी इत्यादि। ऐसे में इसमें एक सैनिक का नाम बब्बन रखने से वो उभर के सामने आता है और अजीब लगता है। मेरे हिसाब से ये नाम ऐसा नहीं होना चाहिए था।

अंत में इतना ही कहूँगा कि अगर ऊपर लिखी कुछ कमियों से आपको कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ता तो निसंदेह आपको ये उपन्यास पसंद आएगा। और मेरी व्यक्तिगत राय में तो इनसे इतना फर्क नहीं पड़ना चाहिए। अगर आपने इस उपन्यास को पढ़ा है तो अपनी राय देना न भूलियेगा।


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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर उन्हें लिखना पसंद है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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10 Comments on “बकरे कि माँ – रीमा भारती”

    1. प्रदीप भाई, मैं तो उपन्यास खरीदकर ही पढता हूँ. इसलिए पीडीएफ के विषय में बताने के लिए असमर्थ हूँ. वैसे चूँकि ये रवि पॉकेट बुक्स से आया है तो आप फेसबुक पे उनके पेज से इसके विषय में पता कर सकते हैं.
      ब्लॉग पर आने और अपना बहुमूल्य वक्त देकर टिपण्णी लिखने के लिए शुक्रिया.

    2. रीमा भारती के उपन्यास अक्सर तीन प्रकाशक छापते हैं। राजा पॉकेट बुक्स में दिनेश ठाकुर रीमा भारती के किरदार को लेकर उपन्यास लिखते थे। उनके उपन्यास आपको rajcomics की साईट में मिल जायेंगे।
      http://www.rajcomics.com/index.php/301201/hindi-novels/dinesh-thakur%20%20
      दूसरे प्रकाशक रवि पॉकेट बुक्स हैं। वो भी पेटीएम के द्वारा पेमेंट स्वीकार करके रीमा के उपन्यास भेज सकते हैं। ये उनका फेसबुक पृष्ठ का लिंक है। आप उनसे इधर सम्पर्क कर सकती हैं:
      https://www.facebook.com/ravipocketbooks/
      ब्लॉग पर आने और कमेंट करने का शुक्रिया।

    1. अखिलेश भाई जैसा की ऊपर प्रदीप भाई के कमेंट में मैंने लिखा है कि मैं इन उपन्यासों को खरीद कर पढता हूँ। डाउनलोड करने का लिंक मेरे पास उपलब्ध नहीं है। इसलिए इस मसले में आपकी मदद नहीं कर सकता। हाँ, अगर आपको खरीदना है तो किसी भी रेलवे स्टेशन के a h wheeler बुक स्टाल में आपको रीमा भारती के उपन्यास मिल जायेंगे।

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