बदसूरत चेहरे – सुरेन्द्र मोहन पाठक

रेटिंग : 3.5/5
उपन्यास 14 मई 2016 से 16 मई 2016 के बीच पढ़ा गया

संस्करण विवरण:
फॉर्मेट :ई-बुक
प्रकाशक : डेली हंट
सीरीज : सुनील #4

पहला वाक्य:

रात्रि के लगभग आठ बजे थे।
राजनगर में ४ लाशें मिल चुकीं थी। इनकी खासियत ये होती कि इनके सर कटे होते और दिल निकले हुए होते। सुनील इस खबर को ब्लास्ट के लिये फॉलो कर रहा था। लेकिन जब उसके दोस्त जुगल किशोर उर्फ़ बन्दर ने उसे एक पार्टी के लिये बीच पर बुलाया तो ये केस सुनील के दिमाग से काफी दूर था।

जुगल किशोर उर्फ़ बन्दर मेडिकल का छात्र था और शहर के करोड़पति आदमी का लड़का था। वो जब भी सुनील को किसी पार्टी के लिए बुलाता तो सुनील को मालूम हो जाता कि उस दिन वो बोर होने वाला है। इसलिए उस दिन  सुनील केवल अपनी बोरियत दूर करने की फ़िक्र कर रहा था। पार्टी बीच में थी और बोर होकर जब वो रेस्टोरेंट से बीच की तरफ गया तो उसने सामने वाली पहाड़ी से किसी को समुद्र में कुछ फेंकते हुए देखा।
सुनील समुद्र में गया तो उसने पाया वो चीज़ एक लाश थी। लाश का सिर गायब था और उसके पेट से गर्दन के हिस्से को खोखला कर दिया गया था। और दिल निकाल दिया गया  था।

 इसी दौरान सुनील लाश फेंकने वाले को भी देख पाया। वो उसके पीछे भागा लेकिन गोलियों की वजह से ज्यादा दूर तक पीछा न कर पाया। बस सुनील ये जान पाया कि वो आदमी जिसने लाश फेंकी थी वो एक कुबड़ा था और दिखने में बेहद बदसूसरत था। लेकिन सुनील के हाथ एक सुराग तो लग ही गया था।

कौन था इस बदसूरत चेहरे का मालिक? आखिर इन खोखली लाशों का क्या मामला था? लाशों से दिल गायब क्यों किया जाता था। जो लाश सुनील को मिली थी वो किसकी थी?क्या सुनील इन राज़ो के ऊपर से पर्दा उठा पाया?


बदसूरत चेहरे सुनील सीरीज का चौथा उपन्यास है। यह उपन्यास मुझे पाठक साहब के लिखे अन्य उपन्यासों से अलग लगा क्योंकि इसमें उन्होंने विज्ञान गल्प का भी प्रयोग किया है। अक्सर पाठक सर के  उपन्यास यथार्थ और अपने समय के ज्यादा करीब होते हैं इसलिए इनमें कोई ऐसी तकनीक  इस्तेमाल नहीं होती जो कि साइंस फिक्शन के श्रेणी में आती हो। इस वजह से उपन्यास मुझे पंसद आया। उपन्यास रोमांचक था।

उपन्यास के कथानक के मध्य में एक डॉक्टर है और उसका आविष्कार है जो किसी को भी दीर्घायु बना सकता है। लेकिन इसके लिए कीमत चुकानी होती है। ये कीमत आपको आपको बाहरी और भीतरी दोनों रूपों से विकृत कर देती है। अमरत्व के विषय में जब भी लेखकों द्वारा लिखा गया है तो उसको पाने वाले को हमेशा से कुछ न कुछ गलत करना होता है। फिर चाहे अमरत्व के खोज में निकले देवतागण हों जिनके मंथन के कारण एक जहर भी उत्पन्न हुआ और जिन्होंने राक्षसों को धोका देना चाहा। परिणाम राहु केतु हुए, इसके इलावा अगर हैरी पॉटर के वोल्डेमॉर्ट को देखें तो अपने अमरत्व के लिए उसे क्या नहीं करना पड़ा।ऐसे कई उदाहरण भी साहित्य में हैं जहाँ अमरत्व एक श्राप के रूप में प्रदान किया जाता है।

तो क्या वाकई अमर होने की लालसा  रखना बुरा  है ? और क्या वाकई अगर ऐसा कोई करना चाहे  तो उसे अपनी व्यक्तिगत नैतिकता को छोड़कर कुछ ऐसे कर्म करने पड़ेंगे जिससे किसी का नुकसान हो। सोचने वाला विषय है।

खैर, अगर उपन्यास की बात करें तो इसमें इस विषय के कारण रोचकता आती है। सुनील के पास दो काम होते है जिन्हें वो बखूबी निभाता है। एक तो लाशों का रहस्य पता लगाना और फिर उसके कारण को रोकना।

रमाकांत का इस उपन्यास में इतना दख़ल नहीं है और कहानी में ह्यूमर रखने के लिए सुनील का एक दोस्त जुगल किशोर उर्फ़ बन्दर है। बन्दर लड़कियों का दीवाना है और काफी अमीर है। वो डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहा है और वो बुद्धिमान भी है लेकिन लड़की के आगे उसकी बुद्धिमता घास चरने चली जाती है। सुनील और जुगल के बीच के संवाद काफी मज़ाकिया थे और उन्होंने मुझे काफी गुदगुदाया। कहानी के खलनायक भी मज़बूत पात्र था। वे सुनील को कई बार गच्चा देने में सफल होते है। हाँ, उपन्यास में प्रभुदयाल की भी उतनी उपस्थिति नहीं थी जितनी की हम अपेक्षा करते हैं और न ही उनके बीच कोई तकरार हुई ।

फिर आप सोच रहे होंगे कि इस उपन्यास को मैंने 5/5 क्यों नहीं दिया। तो उसका कारण भी है। उपन्यास के अंत में नायक सुनील और खलनायक डॉक्टर के बीच में आखिरी लड़ाई एक प्लेन में होती है जो कि क्रैश होने वाला होता है। इस क्रैश से जिस तरीके से सुनील को बचते हुए दिखाया गया था वो मुझे कुछ जमा नहीं। लगा कि बस खानापूर्ति की गयी है। कहानी के इस बिंदु पर काम करके इसे और रोमांचक और ऐसा बनाया जा सकता था कि ये संभव लगे। और चूँकि ये सबसे महत्वपूर्ण बिंदु था तो इसका असर भी ज्यादा हुआ।

अगर अंत में कहूँ तो उपन्यास मुझे रोचक लगा और पसंद आया। क्या मैं इसे पढ़ने की राय दूँगा। तो जरूर आपको इसे पढ़ना चाहिए। ये आपको निराश नहीं करेगा।

अगर आपने उपन्यास पढ़ा है तो अपनी राय आप टिपण्णी बक्से में दे सकते हैं। और अगर आपने उपन्यास नहीं पढ़ा है तो आप इसे डेलीहंट में जाकर पढ़ सकते हैं। उपन्यास का लिंक:


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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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2 Comments on “बदसूरत चेहरे – सुरेन्द्र मोहन पाठक”

  1. 'बदसूरत चेहरे' उपन्यास पढा। यह पाठक जी के अन्य उपन्यासों से कुछ अलग हटकर एक रोचक उपन्यास है।
    – गुरप्रीत सिंह, श्री गंगानगर, राजस्थान
    20.11.2020
    http://www.svnlibrary.blogspot.com

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