बेगमपुल से दरियागंज: एक पुस्तक जो बेहतर से बेहतरीन बनते-बनते रह गयी

पुस्तक टिप्पणी: बेगमपुल से दरियागंज - यशवंत व्यास

हम आयु में पचास से उपर के लोग, पुस्तकें पढ़ने को आदत बना बैठे, इसके पीछे कारण अपने बचपन, नौजवानी के दौर में हिन्दी के लुग्दी साहित्य का पढ़ना ही रहा है।

इसलिए बेगमपुल से दरियागंज को बहुत उत्साह, उत्सुकता के साथ हस्तगत किया।

ज्यों-ज्यों पृष्ठों को पढ़ना शुरू किया तो ज्ञात ‌होने लगा कि ये तो विदेशी पल्प की दुनिया के बारे में ज्यादा बता रही किताब है।‌‌ बेगमपुर तक पहुँचने में काफी समय ले लेती है।

देशी पल्प पर सामग्री है तो सही, लेकिन टुकड़ो‌, टुकड़ों में, और बिखरी हुई सी है।

कुछ पंक्तियाँ दिलचस्पी पैदा करती है, लेकिन उस दिलचस्पता को बरकरार नहीं रख पाती।

बहुत कुछ समेटने की कोशिश में अति समेटना हो गया, और जिस पर ध्यान केंद्रित रखा जाना था, वही धुंधला, गुमशुदा सा हो गया।

ज्यों ज्यों और आगे बढ़ा गया, पुस्तक शोध सामग्री सी भी लगने लगी। लेखक ने बहुत से लोगों ने (खासकर विदेशियों ने) पल्प के बारे में क्या कहा इस को ही पुस्तक में ज्यादा पढ़ने को मिलने लगा।

बाकी जो कुछ हिंदी के पल्प लेखकों के बारे में या उनके द्वारा कहे को पुस्तक में शामिल किया गया है, वो गुणी लोग अपनी किताबों, साक्षात्कारों में काफी मंचों पर उसे कह, दोहरा चुके हैं।

ऐसा भी लगा कि लेखक, समय, संसाधनों की बंदिशों के चलते, जिन लोगों से ज्यादा बात कर पाया, उनमें से कुछ का पल्प उपन्यासों के दौर में, रूतबा उतना था नहीं, लेकिन लेखक के सम्पर्क, सुविधा या आत्मीयता के चलते पुस्तक में उनको ज्यादा जगह दे दी गयी।

बेगमपुल के किसी प्रकाशक से बातचीत का भी अभाव इस प्रयास में बहुत ज्यादा खलता है।

सुरेश जैनजी (लोकप्रिय नाम – रितुराज) का है, लेकिन सुरेशजी आजकल के माहौल पर कह रहे हैं, पल्प के सुनहरे दौर पर नहीं।

कोई देशी पल्प की दुनिया से अपरिचित है, या नवागंतुक है, उसके लिए पुस्तक जरूर कारगर सिद्ध होगी, लेकिन जो प्रजाति कुछ, काफी जानती है तो फिर उन्हें कुछ कमी, अधूरापन सा इस पुस्तक से गुजरने के दौरान सालता रहता है।

पुस्तक लिंक: बेगमपुल से दरियागंज: देसी पल्प की दिलचस्प दास्तान


FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *