उपन्यास 12 अप्रैल 2017 से 14,अप्रैल 2017 के बीच पढ़ा गया
संस्करण विवरण :
फॉर्मेट: ई-बुक | प्रकाशक: डेली हंट | शृंखला: जासूसी दुनिया #३ | सम्पादक: नीलाभ | अनुवादक: चौधरी ज़िया इमाम
प्रथम वाक्य:
आज शाम ही से सार्जेंट हमीद ने काफ़ी हड़बोंग मचा रखी थी, बात सिर्फ इतनी थी कि आज उसने नुमाइश जाने का प्रोग्राम बनाया था।
कहानी
जब फरीदी ने शहनाज को राम सिंह के साथ नाचते हुए देखा तो उसका हैरत में पड़ना लाजमी था। पूछने पर पता चला कि शहनाज़ की मुलाक़ात होटल में ही उससे हुई थी। फिर बात आयी गयी हो गयी। और तीनो पार्टी को एन्जॉय करने लग गए।
लेकिन अचानक चली गोली ने होटल के कार्यक्रम में खलल डाल दिया। राम सिंह को किसी ने गोली मार दी थी।
ये काम किसने और क्यों किया था? पुलिस के अनुसार चूँकि शहनाज को ही आखिरी बार राम के साथ देखा गया था इसलिए वो ही इस साजिश में शामिल थी। हमीद को यकीन था शहनाज बेगुनाह थी। और उसे बचाने का एक ही तरीका था कि असली कातिल का पता लगाया जा सके। और इसे वो फरीदी की मदद के बिना नहीं कर सकता था।
किसने किया था राम का कत्ल? क्या राम सचमुच एक अपराधी था? क्या हत्यारे का पता लग पाया? क्या फरीदी हमीद की मदद करने को तैयार हुआ?
विचार
उपन्यास शुरुआत से ही रोचक बन पड़ा है। हमीद और फरीदी के बीच का संवाद मनोरंजक है। हमीदी की हरकतें और बातचीत गुदगुदाती हैं। उदाहरण के लिए ये अंश देखें:
इस बार जैसे ही उसने फरीदी का हाथ दबाया, फरीदी ने चलते-चलते रुक कर उसे डाँटते हुए कहा। “हमीद आख़िर तुम इतने गधे क्यों हो?”
“अक्सर मैं भी यही सोचा करता हूँ। “, हमीद हँस कर बोला।
फिर जैसे जैसे कहानी बढती जाती है। रहस्य पेचीदा होता जाता है। कई रहस्यमयी किरदार उपन्यास में आते हैं जो पाठक को बाँध कर रखते हैं। उपन्यास में कई उतार-चढ़ाव आते हैं। इस उपन्यास का केंद्र बिंदु हमीद ही है। वो किस तरह फरीदी पर निर्भर है वो इस उपन्यास से पता लगता है। उनके आपस का रिश्ता अफसर मातहत का कम और बड़े भाई और छोटे भाई जैसा लगता है। फरीदी को भी हमीद को चिढाने में मज़ा आता है।
उपन्यास से हमे ये भी पता लगता है कि फरीदी के अन्दर लड़कियों को आकर्षित करने की खूबी है लेकिन वो फिर भी लड़कियों से दूर रहता है। मुझे इस श्रृंखला के आगे के उपन्यास इसलिए भी पढने हैं कि ये जान सकूं कि उसका ये रवैया आगे बदलता है या नहीं। और वो क्यों उनसे दूरी बनाकर रखता है।
उपन्यास ने मेरा मनोरंजन किया। मुझे काफी अंदाजा हो गया था कि क्या हुआ है और क्यों हुआ है लेकिन चूँकि उपन्यास पठनीय था और कथानक मनोरंजक तो मुझे ये कहते हुए संकोच नहीं है कि मुझे उपन्यास पसंद आया। इसके इलावा गुडरीडस में एक रिव्यु में एक व्यक्ति ने स्पोइलेर भी दे दिया था तो उससे थोडा मज़ा कम हुआ। अगर उसके बिना मैंने इसे पढ़ा होता तो शायद मज़ा ज्यादा आता और मैं इसे तीन की जगह चार स्टार देता। इसलिए मैं अक्सर ये कोशिश करता हूँ कि मैं अपने लेख में उपन्यास के उन पहलुओं को तो उजागर करूँ जो मुझे पसंद आये लेकिन ऐसे पहलुओं को छोड़ दूँ जो रहस्यों से पर्दा उठा सकते हैं। इससे बाकी पाठकों का नुक्सान नहीं होता है।
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Ibne Safi! Kya baat hai.
जी हार्पर और डेली हंट ने जो इब्ने सफी जी के उपन्यास दोबारा रिलीज़ किये थे वो मैंने खरीद लिए थे. अब गाहे बगाहे पढता रहता हूँ. बस कमी इस बात की लगती है कि कम ही उपन्यास रिलीज़ किये.