परशुराम शर्मा |
सिर्फ अठठारह वर्ष की उम्र में परशुराम शर्मा की कलम से निकली एक ऐसी रचना जिसने रातोंरात सम्पूर्ण भारत में उनके नाम की वाहवाही फैला दी थी। उपन्यास व्यापार में पहली बार ऐसा मौका आया था जब कोई उपन्यास ब्लैक में बिकने लगा था। प्रस्तुत है 3 खंडो में फैली शुरू से अंत तक आग की तरह धधकती एक रक्तिम गाथा।
इस श्रृंखला में तीन उपन्यास हैं:
पहली आग
दूसरी आग
आग और शौले