संस्करण विवरण:
फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 108 | प्रकाशक: साहित्य विमर्श प्रकाशन
पुस्तक लिंक: अमेज़न | साहित्य विमर्श
कहानी
चकराता में रहने वाले वरुण और तरुण की सर्दियों की छुट्टियाँ पड़ने वाली थी और उन्हें अपने चाचा उमेश की बेसब्री से प्रतीक्षा थी।
उनके चाचा फॉरेस्ट ऑफिसर थे और इन दिनों देहरादून में पोस्टेड थे। तरुण और वरुण अपने चाचा के साथ कुछ दिन बिताना चाहते थे क्योंकि जानते थे उनके साथ वह काफी मौज मस्ती करते थे।
वह लोग कहाँ जानते थे कि ये छुट्टियाँ उनके लिए यादगार होने वाली है।
वह एक मंदिर के रहस्य से दो चार होने वाले हैं जो कि उनकी जिंदगी में रोमांच और डर ले आने वाला है।
आखिर क्या था ये मंदिर और क्या था इसका रहस्य?
मुख्य किरदार
वरुण – तेरह वर्ष का किशोर
सुरेश चटवाल – तरुण और वरुण के पिताजी
उमेश चटवाल – तरुण और वरुण के चाचा
पीटर – उमेश का ड्राइवर
जिमी – उमेश का कुत्ता
मेरु – उमेश अंकल के घर खाना बनाने वाली सहायिका का बेटा। वह नजदीकी गाँव धानपुर में रहता था
विचार
हिंदी में रोमांचक बाल साहित्य की कमी ही है। ऐसे में अगर कोई इस विधा में लिखता है तो उसका स्वागत होना चाहिए। साहित्य विमर्श प्रकाशन द्वारा प्रकाशित ‘मंदिर का रहस्य’ लेखिका सुमन बाजपेयी द्वारा लिखा हुआ बाल उपन्यास है।
बाल उपन्यासों की बात करें तो छुट्टियों के दौरान बच्चों का किसी रोमांचक घटना से साक्षात्कार होने का प्लॉट इस विधा में काफी आम है। अक्सर बच्चों को मस्ती करने या इधर-उधर जाने का या पूरी तरह से मस्ती करने का मौका सर्दियों या गर्मियों की छुट्टी के वक्त ही मिलता है और इस कारण कई लेखकों ने बच्चों के इस छुट्टी के दौरान किए गए रोमांचक कारनामों को लेकर कई कथाएँ बनाई हैं।
अक्सर ऐसे उपन्यासों में बच्चों की लंबी छुट्टी पड़ती है और वह या तो अपने घर में ही या कहीं और जाकर अपनी मस्ती करने लगते हैं। छुट्टियों के दौरान अक्सर माँ बाप या उनके गार्जियन भी थोड़ा बच्चों के ढील दे देते हैं तो इस कारण बच्चों को भी दिन भर मस्ती करने का मौका मिल जाता है। अक्सर इसी मस्ती के दौरान वह किसी घटना से वाकिफ होते हैं जो कि उन्हें खतरों के सामने खड़ा कर देती हैं। बच्चे इस खतरे तक कैसे पहुँचते और फिर इससे कैसे निकलते हैं यही उपन्यास का कथानक बनता है।
प्रस्तुत उपन्यास ‘मंदिर का रहस्य’ भी ऐसे ही उपन्यासों की श्रेणी में आता है। उपन्यास के केंद्र में पंद्रह वर्षीय तरुण और तेरह वर्षीय वरुण नाम के दो बच्चे हैं जो अपनी सर्दियों की छुट्टियों में अपने चाचा उमेश के साथ उनके घर देहरादून चकराता से रहने जाते हैं। देहरादून पहुँचकर उनके साथ क्या होता है और कैसे वह मंदिर के रहस्य को उजागर करते हैं यही उपन्यास का कथानक बनता है।
उपन्यास की लेखन शैली सरल है और लेखिका ने उपन्यास को उत्तराखंड के चकराता और देहरादून में बसाया है। उपन्यास में वह इन जगहों के प्राकृतिक सौन्दर्य को भी दर्शाती हैं। उपन्यास में चूँकि बच्चों के चाचा जंगलात (फॉरेस्ट डिपार्ट्मेंट) में हैं तो इस माध्यम से लेखिका जंगलों से जुड़े कई मुद्दों पर भी बात करती हैं।
तरुण और वरुण आम भाई हैं। तरुण चूँकि वरुण से बढ़ा है तो कई बार उनके बीच के समीकरण देखने में मज़ा आया जो कि मुझे अपने बड़े भाई की याद दिला रहे थे। इसके अलावा कहानी में मेरु का किरदार भी मुझे पसंद आया। मेरु स्थानीय बच्चा है जो कि अपनी ही धुन में रहता है और रहस्य को सुलझाने में इन बच्चों का खूब साथ देता है।
उपन्यास का कथानक सीधा सरल है। लेखन शैली पठनीय है। एक लीनियर (रैखिक) रूप से कहानी आगे बढ़ती है जहाँ ज्यादा ट्विस्ट्स नहीं आते हैं। व्यक्तिगत तौर पर मुझे थोड़े घुमावदार कथानक पसंद रहे हैं तो मुझे लगता है कि अगर उपन्यास में थोड़ा घुमाव होते तो बढ़िया होता।
उपन्यास पढ़ते हुए मुझे लगा कि उपन्यास में कई जगह रोमांच पैदा किया जा सकता था लेकिन उधर भी लेखिका ने ऐसा नहीं किया है। कई जगह मौके थे लेकिन उनका प्रयोग नहीं किया है। उदाहरण के लिए:
तरुण और वरुण जब चकराता से देहरादून के सफर पर निकलते हैं तो सफर के दौरान (पृष्ठ 37 पर) नींद भगाने के लिए वरुण अपने चाचा उमेश को एक रोमांचक किस्सा सुनाने को कहते हैं। उमेश एक तेंदुए को पकड़ने का किस्सा सुनाते हैं जो कि मुझे अतिसंक्षिप्त लगा। मुझे लगता है लेखिका इस किस्से को थोड़ा विस्तार देती तो यह एक अलग अध्याय बन सकता था क्योंकि इसमें शिकार करने से जुड़े कई पहलुओं और उनसे जुड़े खतरों के विषय में विस्तृत तौर पर बताया जा सकता था। यह चीज कहानी में रोमांच बढ़ाती विशेषकर तब जब उमेश बताते हैं कि तेन्दुएँ ने उनके साथ एक हफ्ते तक लुका छुपी खेली थी। पाठक के रूप में इस एक हफ्ते की जानकारी मैं पाना चाहता था।
इसके अलावा उपन्यास में जिस तरह से बच्चों को अपराधियों के विषय में वो जानकारी पता लगती है जिसके चलते वो अपराधियों को पकड़वा पाते हैं और अपराधियों को पकड़ने के लिए उन्हें जो करना पड़ता है वह थोड़ा कम रोमांचक है। अगर इसे और रोमांचक बना पाते तो बेहतर होता। अभी बच्चों को अपनी तहकीकात करने में ज्यादा परेशानी नहीं आती। लेकिन अगर इस दौरान उनका अपराधियों से सामना होता, थोड़ा भाग दौड़ होती तो पाठक दाँतों तले उँगलियाँ दबाने को मजबूर हो जाता और उपन्यास और बेहतर बन सकता था। उपन्यास में एक किरदार जिमी है जो कि बच्चों के चाचा का कुत्ता है । लेखिका कथानक में इसका प्रयोग भी कथानक को रोमांचक बनाने में कर सकती थीं जहाँ वह बच्चों की मदद करता लेकिन ऐसा नहीं हुआ है।
अभी मुझे लगा कि सब कुछ सरलता से निपट गया था। शायद उन्होंने कथानक 9-10 साल के बच्चों के लिए लिखा हो। मैं बच्चों की राय इस पुस्तक के विषय में जरूर जानना चाहूँगा लेकिन इधर मैं कहना चाहूँगा कि आजकल बच्चों के पास इतना कुछ पढ़ने के लिए होता है और अंग्रेजी में तो इस उम्र के बच्चों के लिए भी कई घुमावदार कथानक होते हैं। ऐसे में हिंदी के लेखकों को थोड़ा मेहनत कथानक पर करनी चाहिए।
अंत में यही कहूँगा कि हिंदी में बाल साहित्य की काफी कमी है और यह पुस्तक उसे कुछ हद तक पूरा करती है। तरुण वरुण और मेरु से मिलना मुझे अच्छा लगा। हाँ, अगर उपन्यास में रोमांच और रहस्य के तत्व और अधिक होते तो पढ़ते हुए ज्यादा मजा आता।
पुस्तक एक बार पढ़ी जा सकती है।
पुस्तक लिंक: अमेज़न | साहित्य विमर्श
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