संस्करण विवरण:
फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 14 | चित्र: फाजरुद्दीन | प्रकाशक: राष्ट्रीय पुस्तक न्यास
पुस्तक लिंक: राष्ट्रीय पुस्तक न्यास
कहानी
महराज नंद के दरबार के राज्य में कवि वररुचि की बड़ी पूछ थी।
लेकिन फिर ऐसा क्या हुआ कि वररुचि को भरे दरबार में अपमान सहना पड़ा?
मेरे विचार:
राष्ट्रीय पुस्तक न्यास यानी नैशनल बुक ट्रस्ट के पास बाल पाठकों के लिए काफी रोचक रचनाएँ हैं। चूँकि मुझे बाल साहित्य में रुचि है तो मैं अक्सर पुस्तक मेले में नैशनल बुक ट्रस्ट के स्टॉल पर जाता हूँ और वहाँ से बाल-किशोर साहित्य की पुस्तक लेता रहता हूँ। प्रस्तुत कहानी ‘अभिमान की हार’ भी ऐसे ही एक पुस्तक है जो कि पुस्तक मेले से मैंने खरीदी थी।
‘अभिमान की हार’ लेखक योगेंद्र नाथ शर्मा ‘अरुण’ द्वारा लिखी गई है कहानी है जिसे राष्ट्रीय पुस्तक न्यास द्वारा प्रकाशित किया गया है। 14 पृष्ठों की इस कहानी में चित्रांकन फजरुद्दीन का है।
कहानी राजाओं-महाराजों के समय की है जिसके केंद्र में राजा नंद के महामंत्री शटकार और राजकवि वररुचि हैं। राजकवि वररुचि को जब अपनी प्रतिभा का अभिमान आ जाता है और वह लालच के चलते राजा को ठगने से भी बाज नहीं आते हैं तो महामंत्री कैसे उनके अभिमान को तोड़ते हैं और कवि वररुचि कैसे इस अपमान का बदला लेते हैं और आखिर में क्या होता है यही कहानी बनती है।
अक्सर प्रतिभा जन्मजात होती है लेकिन कई बार प्रतिभाशाली व्यक्ति के अंदर भी अभिमान और लालच आ जाता है और अपनी इस अभिमान के और लालच के चलते वह गलत काम करने से भी नहीं चूकता है। कई बार लोग अपने स्वार्थ के चलते किस प्रकार लोगों की आस्था का प्रयोग करके अपना उल्लू सीधा करते हैं यह भी इधर देखने को मिलता है। आखिर में ऐसे अभिमानी और लालची व्यक्ति के साथ क्या होता है यही कहानी का सार है।
पुस्तक में मौजूद कुछ चित्र |
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