संस्करण विवरण:
फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 90 | प्रकाशक: राज कॉमिक्स | शृंखला: नागराज, परमाणु
टीम:
कथा एवं चित्र: अनुपम सिन्हा | इंकिंग: विनोद कांबले | सुलेख एवं रंग: सुनील पांडेय
कहानी
दिल्ली भले ही देश की राजधानी हैं लेकिन यहाँ अपराध और अपराधी हर पल नई साजिश रचते है। उनकी कोशिश रहती है कि वह दिल्ली की आँख परमाणु की आँखों में धूल झोंक कर अपने बुरे इरादे में कामयाब हो जाएँ।
ऐसे ही वो अपराधी थे जिन्होंने एक ऐसी चाल चली थी जिससे दिल्ली की शक्ल बदलने वाली थी।
एक ऐसी चाल जो कि दिल्ली की आँख परमाणु को खत्म कर देता।
एक ऐसी चाल जिसमें फँस चुका था महानगर का रक्षक नागराज और वह पहुँच चुका था दिल्ली।
एक ऐसी चाल जिसने ला दिया दोनों सूरमाओं को आमने सामने।
आखिर कौन थे वो अपराधी और उनकी योजना क्या थी?
क्यों नागराज और परमाणु एक दूसरे के समक्ष आ खड़े हुए थे?
क्या होने वाला था इस टकराव का नतीजा?
मेरे विचार
‘सूरमा’ राज कॉमिक्स द्वारा 1998 में प्रकाशित परमाणु और नागराज का विशेषांक है।
जैसे जैसे विज्ञान ने तरक्की की है वैसे वैसे मनुष्यों की ज़िंदगी भी लंबी हुई है। कई ऐसे रोग जो पहले असाध्य समझे जाते थे उनका अब इलाज संभव है। लेकिन इसके साथ ही कई ऐसे रोगों का जन्म भी हुआ है जिनका कभी नाम भी हमारे पूर्वजों ने शायद न सुना हो। स्वास्थ्य एक व्यापार बन चुका है और कई लोग इस व्यापार में मुनाफा पाने के लालच में ऐसे कदम भी उठा देते हैं जिससे मानवता शर्मसार सी हो जाती है।
प्रस्तुत कॉमिक के केंद्र में ऐसे ही अपराधी मौजूद हैं जो कि अपनी विज्ञान की ताकत का गलत उपयोग करते दिखते हैं और उनके काम् में रुकावट न आए यह सुनिश्चित करने के लिए मानवता की रक्षा करने का बीड़ा उठाए दो सुपरहीरों को भी नष्ट करने की योजना बनाते हैं।
अनुपम सिन्हा द्वारा लिखी इस कहानी की शुरुआत दिल्ली में होती है जहाँ पर सर्जन नामक एक व्यक्ति एक कुख्यात वैज्ञानिक डॉक्टर वायरस के साथ मिलकर दिल्ली की आँख परमाणु को खत्म करने की योजना बनाता है। वह चाहता है कि परमाणु को रास्ते से हटा दिया जाए ताकि वह लोग अपनी योजना को बिना किसी रुकावट के पूरा कर दें लेकिन इस योजना में एक पेंच है और उसी पेंच को हटाने के लिए सर्जन को अपने एक आविष्कार को महानगर किसी कार्य से भेजना होता है। इसका नतीजा यह होता है नागराज भी दिल्ली की ओर कूच कर देता है। अब दिल्ली में परमाणु और नागराज मौजूद हैं। सर्जन, डॉक्टर वायरस और उनके आविष्कार कैसे इन दोनों हीरोज की नाक में दम करते हैं और इन दोनों को कैसे मरणासन्न स्थिति तक पहुँचा देते हैं। वहीं हमारे सुपर हीरोज कैसे इन मुसीबतों का सामना करते हैं और इस दौरान उन्हें और उनके चाहने वालों को किन किन स्थितियों से गुजरना पड़ता है यह सब इस कॉमिक बुक का कथानक बनता है।
कॉमिक बुक का केंद्र मुख्यतः दिल्ली है। कहानी के मुख्य खलनयाक सर्जन और डॉक्टर वायरस हैं लेकिन इसके साथ ड्रेगन फ्लाई, विखंडी, ओपेरेटर और जीवित कोशिका जैसे खलनायक भी यहाँ हैं जो कि मुख्य खलनायकों के आविष्कार हैं और नागराज और परमाणु को नाको चने चबाने का माद्दा रखते हैं।
कॉमिक बुक में एक्शन भरपूर है। ड्रेगन फ्लाई, विखंडी और ऑपरेटर तगड़े खलनायक हैं जिनसे नागराज और परमाणु को लड़ते देखना रोमांचक रहता है। हमारे सुपरहीरोज को इनको खत्म करने के लिए अपनी जान तक की बलि देने की जरूरत आन पड़ती है।
एक्शन के अलावा इस कॉमिक में परमाणु के जीवन में जरूरी बदलाव आते भी दिखता है। परमाणु की ज़िंदगी में एक नवीन मार्गदर्शक भी आता है और उसको नवीन शक्तियाँ मिलती हैं। यह शक्ति भी बड़े मौके पर मिलती हैं क्योंकि अगर यह नहीं होता तो शायद वह वो काम नहीं कर पाता जो कहानी में उसे आगे करने थे।
कॉमिक बुक की कमी की बात करूँ तो इस कॉमिक का विज्ञापन जिस तरह से दिया गया है और क्रेडिट वाले पृष्ठ में भी जिस तरह से कहानी को दर्शाया है उससे यही लगता है कि कहानी का मुख्य हिस्सा नागराज और परमाणु के बीच का टकराव है लेकिन ऐसा इधर नहीं है। नागराज और परमाणु के बीच टकराव तो होता है लेकिन वह कॉमिक्स के आखिरी हिस्से में जाकर ही होता है। इनके बीच खलनायक जिस तरह से गलतफहमी पैदा करने की कोशिश करते हैं वह मुझे थोड़ा कमजोर कोशिश लगी। थोड़ा तगड़ा प्लान वो बनाते तो बेहतर होता। वहीं नागराज के पास शायद सम्मोहन की शक्ति है। वह लोगों को सम्मोहित कर सकता है। ऐसे में क्या वह ड्रेगनफ्लाई को सम्मोहित कर सच का पता नहीं लगा सकता था? अगर वो ऐसा करता तो शायद दिल्ली पहुँचकर उसे इतने हाथ पैर नहीं मारने पड़ते। उसे मुख्य खलनायक का पता होता और मामला आसानी से सुलझ जाता।
वहीं कॉमिक्स के आखिर में परमाणु भी नागराज को गलत समझने लगता है। इसमें एक प्रसंग है जिसमें प्रोफेसर वर्मा की लैब में कुछ होता है। वहाँ परमाणु को उसका नवीन मार्गदर्शक मिलता है जो कि उसे नई शक्तियों से लैस बेल्ट देता है। लेकिन जो बात अटपटी लगी कि वह मार्गदर्शक ,जिसके आगे की स्क्रीन पर दिल्ली के सभी महत्वपूर्ण स्थल की तस्वीरें यह दर्शा रही थी कि वह हर जगह निगाह रख रहा था, परमाणु को यह नहीं बताता कि उसके सिर के ऊपर जो लैब है उधर प्रोफेसर पर हमला किसने किया? बस वो ये कहता है कि प्रोफेसर की अनुपस्थिति में वह उनका कार्य करेगा। अगर मैं उस वक्त परमाणु की जगह होता तो उससे जरूर पूछता कि लैब में क्या हुआ था? लेकिन परमाणु भी उससे ऐसा कुछ नहीं पूछता है।
मुझे लगता है ऊपर दिए बिंदुओं पर अगर संपादक और लेखक ध्यान देते तो इन कमियों को दूर करने का या फिर जो होता है उसका कोई न कोई संभावित कारण दे देते जिससे कहानी में यह प्लॉट होल्स न होते और कहानी और अधिक मजबूत हो जाती। कहानी के प्लॉट होल भरना अक्सर संपादक का कार्य होता है। वह ऐसी कमियों को लेखकों के समक्ष लाता है और उनसे इसे सुधरवाता है। ऐसे में इन कमियों के लिए, अगर किताब सेल्फ पब्लिश नहीं है तो, मुझे लगता है कि लेखक से ज्यादा संपादक ही जिम्मेदार होता है।
आर्टवर्क की बात करूँ तो इसमें भी आर्ट टिपिकल अनुपम सिन्हा वाला ही है। अनुपम सिन्हा के आर्ट वर्क में मुझे यह बात खलती है कि किरदार कोई भी सभी की बॉडी ऐसी होती है जैसे वो आईएफबीबी प्रो बॉडी बिल्डर हों। अब इस कॉमिक में विखंडी नाम का किरदार है जो कि ब्लड कैंसर की आखिरी स्टेज में रहता है लेकिन उसकी बॉडी भी परमाणु से कहीं उन्नीस नहीं लगती है। जबकि विखंडी की ताकत के लिए तगड़ी बॉडी होनी जरूरी नहीं है। एक कमजोर शरीर वाला किरदार अगर अनुपम सिन्हा उसे बनाते तो शायद वह अधिक प्रभावशाली लगता। यही चीज ऑपरेटर नामक किरदार के बारे में कही जा सकती है। बाकी आर्टवर्क कहानी के हिसाब से ठीक है। अगर आप ऐसे आर्टवर्क के शौकीन हैं तो जिसे आप देर तक निहारना चाहें तो वह आर्टवर्क इधर मौजूद नहीं है।
अंत में यही कहूँगा ‘सूरमा’ एक्शन और रोमांच से भरपूर कॉमिक बुक है। मजबूत खलनायकों की टीम इसकी यूएसपी है जिनसे सुपरहीरोज को टकराते देखने में मज़ा आता है। हाँ, अगर लेख में ऊपर दी गई छोटी छोटी बातों पर ध्यान देते तो जो इक्के दुक्के प्लॉट होल्स इसमें हैं उनसे बचा जा सकता था और कॉमिक और अधिक बेहतर बन सकती थी। फिर भी इन प्लॉट होल्स के बावजूद सूरमा मनोरंजन करने में सफल होती है। नहीं पढ़ी तो पढ़ सकते हैं।