जालियाँवाला | तरुण कुमार वाही | राज कॉमिक्स बाय मनीष गुप्ता

संस्करण विवरण

फॉर्मेट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 32 | प्रकाशक: राज कॉमिक्स बाय मनीष गुप्ता | शृंखला: डोगा

टीम

लेखक: तरुण कुमार वाही | सहयोग: विवेक मोहन | चित्रांकन: मनु | सुलेख एवं रंग: सुनील पांडेय | संपादक: मनीष गुप्ता

जालियाँवाला | तरुण कुमार वाही | राज कॉमिक्स बाय मनीष गुप्ता

कहानी

दादा की चाल में फँसा डोगा टॉर्चर का शिकार हुआ था। यह काम अपराध और कानून के गठजोड़ के बिना संभव नहीं था। लेकिन फिर अहिंसा के पुजारी आए और डोगा को लेकर चले गए। 

अहिंसा के पुजारियों ने किसी तरह डोगा को आजाद तो करवा दिया था लेकिन डोगा के साथ साथ दादा और उसके साथी भी मौके का फायदा उठाकर भाग निकले थे।

अब दादा ने फैसला किया था कि वो अहिंसा के अनुयायियों और डोगा की हस्ती मिटाकर रख देगा। 

आखिर क्या होने वाला था इस अहिंसा और हिंसा के बीच के युद्ध का अंत?

क्या अहिंसा हिंसा पर विजय पा सकेगी?

या दादा बना देगा एक और जलियाँवाला?

मेरे विचार

जलियाँवाला भारत की इतिहास का एक ऐसा स्याह अध्याय है जिसने अंग्रेजी हुकूमत की क्रूरता की छाप भारतीय लोगों के मानसपटल पर छोड़ दी थी। शांति से अपना विरोध दर्ज करते लोगों पर क्रूर जनरल डायर ने गोलियाँ  दगवा दी थी जिससे कई मासूमों ने अपनी जान गँवाई थी। इस बर्बरता ने सभी को झकझोर दिया था।

राज कॉमिक्स (Raj Comics) द्वारा प्रकाशित हिंसा और अहिंसा के बीच की इस कथा के आखिरी भाग जालियाँवाला (Jalianwala) में भी ऐसा ही कुछ होता है। जैसा कि नाम से जाहिर है यहाँ भी हिंसा का नुमाइंदा/प्रतिनिधि दूसरा जलियाँवाला (Jalianwala) बनाता है।

जालियाँवाला (Jalianwala) राज कॉमिक्स द्वारा मनीष गुप्ता (RCMG) द्वारा प्रकाशित डोगा डाइजेस्ट 19 (Doga Digest 19) में संकलित तीसरी कॉमिक बुक्स है। जलियाँवाला (Jalianwala) की कहानी टॉर्चर (Torcher) कॉमिक्स की कहानी से आगे बढ़ती है। टॉर्चर (Torcher) के अंत में हम देखते हैं कि इंस्पेक्टर मुंकाले से मिलीभगत कर दादा ने डोगा (Doga) को कैद तो कर दिया था लेकिन अहिंसा के अनुयाइयों ने उसे उस टॉर्चर रूम से आजाद करवा दिया था। इसके साथ दादा और उसके आदमी भी मौका देखकर भाग गए थे।

अब दादा, हरिबापू और डोगा (Doga) तीनों ही आजाद हैं। डोगा बुरी तरह घायल है और दादा ने हरीबाबू और डोगा का काम तमाम करने का बीड़ा उठा दिया। वह यह काम कैसे करते है? क्या हथकंडे अपनाता है? और हिंसा और अहिंसा के बीच के टकराव का आखिर क्या नतीजा निकलता है यही कॉमिक बुक में दर्शाया गया है।

कॉमिक बुक चूँकि 32 पृष्ठ की है तो कथानक छोटा है और इसलिए ज्यादा घुमाव इसमें नहीं हैं। हाँ, एक अच्छा ट्विस्ट इसमें आता है जहाँ एक बार फिर दादा की कुटिलता से पाठक वाकिफ होते हैं।

दादा और डोगा (Doga) के बीच का फाइनल शो डाउन होता है और हरिबापू भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

इस कथानक के पहले दो भागों में मोनिका का इतनी बड़ी भूमिका नहीं रहती है लेकिन इस कॉमिक्स में वह आती है और काफी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। 

कथानक में आखिर में डोगा को जिस तरह से आखिरी युद्ध के लिए तैयार किया जाता वो सीन भावुक कर देता है। 

कथानक की कमजोरी की बात करूँ तो एक बातें मुझे खटकी। दादा जेल से भागने के बाद इतना कुछ करता है लेकिन पुलिस हाथ पे हाथ धरी बैठी लगती है। इंस्पेक्टर मुंकाले भले ही दादा का साथी था लेकिन जिस हिसाब से हिंसक गतिविधियों को दादा अंजाम दे रहा था उससे लोग, मीडिआ और नेता पुलिस महकमे की ईंट से ईंट बजा देते पर इधर ऐसा कुछ होता नहीं दिखता है। न ही पुलिस इतनी हिंसक कार्यवाही के खिलाफ कुछ करती दिखती है।

कम से कम पुलिस जानती थी कि दादा के आदमी हमला किधर कर रहे हैं। ऐसे में उनका उस जगह को सुरक्षा न प्रदान करना थोड़ा सा अटपटा लगता है। क्योंकि हमलों की खबर टीवी इत्यादि में आती रहती है। पृष्ठ 13 में लिखा भी है ‘पल पल की खबर स्टार न्यूज पर मिल रही थी हरीबापू को’  और यहीं पर हरीबापू भी कहता है: देश का कानून सो गया लगता है! मगर नहीं! हरीबापू जाग रहा है। 

चूँकि यह कथानक हिंसा और अहिंसा के बीच के युद्ध का था। और इस कॉमिक में हम अहिंसा के पुजारी हरीबापू के त्याग को भी देखते हैं इसलिए मुझे व्यक्तिगत तौर पर लगता है कि अगर इस बार डोगा सिस्टम का प्रयोग कर खलनायक को पस्त करता तो और बेहतर होता। यह दर्शाता कि बिना हिंसा किए भी हिंसा पर विजय पाई जा सकती है। इसलिए मेरा मत है कि पुलिस द्वारा दादा के आतंक का खात्मा दर्शाया जाता तो बेहतर होता। वहीं इंस्पेक्टर मुंकाले का क्या हुआ यह भी हमें पता नहीं लगता है। इंस्पेक्टर मुंकाले का अंजाम भी लेखक दर्शाते तो बेहतर होता। 

दादा कुटिलता में तो डोगा से एक हाथ ऊपर है लेकिन शारीरिक बल में कहीं आस पास भी नहीं टिकता है। यह चीज थोड़ी खटकती है क्योंकि जब दादा और डोगा आमने सामने होते हैं तो दादा डोगा के सामने कमजोर ही नजर आता है। अगर दादा शारीरिक रूप से भी ऐसा होता जो डोगा को टक्कर दे सके तो कथानक और रोमांचक बन सकता था।  

इसके अतिरिक्त कथानक में ऐसा कुछ नहीं था जो कि खटका हो। हाँ, मोनिका अहिंसा के महिला शाखा की सदस्या है यह जानकर थोड़ा अजीब लगा। इससे पहले भी मोनिका को एक समूह का सदस्या के रूप में मैं देख चुका हूँ। ये जानना रोचक होगा कि मोनिका कितनी संस्थाओं की सदस्या है। 

कॉमिक बुक के आर्ट वर्क की बात करूँ तो मनु का आर्ट है और कथानक के साठ न्याय करता है। पहले दो भागों जैसी ही गुणवत्ता इसमें देखने को मिलती है। 

अंत में यही कहूँगा कि हे राम (Hey Ram), टॉर्चर (Torcher) और जालियाँवाला (Jalianwala) की यह तिकड़ी मनोरंजन करने में सफल होती है। चूँकि ये कॉमिक बुक 32 पृष्ठ के हैं तो कथानक इतना जटिल नहीं है लेकिन फिर भी लेखक ने इनमें इतने ट्विस्ट और इतना एक्शन दिया है कि इसकी रोचकता अंत तक बनी रहती है।

यह तीनों ही कॉमिक बुक्स डोगा डाइजेस्ट 19 (Doga Digest 19) में संकलित है तो पाठक एक ही पुस्तक में इसे पढ़ सकते हैं और क्योंकि राज कॉमिक्स बाय मनीष गुप्ता द्वारा प्रकाशित संस्करण काफी वाजिब दाम में उपलब्ध है तो पाठक वो ही लें तो उनकी जेब के लिए बेहतर होगा। 

   


FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

View all posts by विकास नैनवाल 'अंजान' →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *