संस्करण विवरण
फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 32 | प्रकाशक: राज कॉमिक्स | शृंखला: बाँकेलाल
टीम
कहानी: तरुण कुमार वाही | चित्रांकन: जितेंद्र बेदी
कहानी
विशालगढ़ के राजा विक्रम सिंह परेशान चल रहे थे।
उनके गुप्तचरों ने उन्हें सचेत करवाया था कि कोई राजा था जो उन्हें मारने का षड्यंत्र रच रहा था।
वहीं इस खबर ने बाँकेलाल के खुराफाती दिमाग को ईंधन दे दिया था। वह अब अपनी ही खिचड़ी बनाने पर लगा था।
क्या षड्यंत्र की यह खबर सही थी?
आखिर विक्रम सिंह को कौन मारना चाहता था?
आखिर बाँकेलाल के दिमाग में कौन सी खुराफात आई?
क्या बांकेलाल अपने मकसद में सफल हुआ?
मेरे विचार
‘बाँकेलाल और शादी का षड्यंत्र’ बाँकेलाल श्रृंखला का छठवाँ कॉमिक बुक है। इसकी कहानी तरुण कुमार वाही ने लिखी है और चित्रांकन जितेंद्र बेदी जी द्वारा किया गया है। कॉमिक बुक 1990 में प्रकाशित हुआ था।
बाँकेलाल का एक सपना विक्रमसिंह को मारकर विशालगढ़ के राज्य पर आधिपत्य जमाना भी है। बचपन में मैने उसके जितने कॉमिक्स पढ़े थे उसमें बाँकेलाल का यही ध्येय रहता है। पर ये विचार उसके मन में कब आया ये मैं नहीं जानता था। इस कॉमिक्स को पढ़ा तो जाना कि सर्वप्रथम इस कॉमिक बुक में बाँकेलाल के मन में ये विचार आता है।
वह विचार कैसे आता है? वो इस विचार को अमलीजामा पहनाने के लिए क्या करता है? और कैसे शिव जी के शाप के चलते उसके द्वारा बुरा किया जाने वाले व्यक्ति का भला होता है यही कॉमिक बुक का कथानक बनता है।
कथानक रोचक है। और कॉमिक बुक में हास्य भी शुरुआती कॉमिक्स से अधिक है। 32 पेज की कॉमिक भले ही ये है लेकिन इसमें विक्रमसिंह को दो से तीन बार ठिकाने लगाने बाँकेलाल कोशिश करता है। ये कोशिशें अकसर हास्यजनक परिस्थितियाँ पैदा करती हैं और बाँकेलाल के मन के भाव इस दौरान पढ़ना रोचक रहता है। कॉमिक में बाँकेलाल की जान भी साँसत में फँसती दिखती है और उसका एक फाइट सीक्वेन्स भी है। गुप्तचर अक्सर लड़ाई में माहिर होते थे। ऐसे में बाँकेलाल का एक को नियंत्रित करना ये जरूर दर्शाता है कि वह केवल मसखरा नहीं है। मौका पड़ने पर वो सामने वाले को धूल भी चटा सकता है।
चूँकि ये एक हास्य कॉमिक है तो कई बार इसमें अटपटे नाम दे देते हैं। इसमें एक किरदार कुरूपलता भी है। वह राजा चंदनसिंह की लड़की है। चंदनसिंह अपनी बेटी को बहुत प्यार करते हैं। ऐसे में उनका भी अपनी बेटी को कुरूपलता कहना थोड़ा अटपटा लगता है। बाकी लोग कहते तो चलता भी। लेकिन उसका असल नाम कुछ और होता तो बेहतर होता।
कॉमिक बुक का चित्रांकन बेदी जी द्वारा अपनी टिपिकल स्टाइल में किया है जो कि अच्छा है। किरदारों के चेहरे के भाव ढंग से दर्शाये गए हैं।
अंत में यही कहूँगा कि कॉमिक बुक अच्छी है और एक बार पढ़कर देख सकते है। बाँकेलाल की हरकतें हास्यजनक स्थितियाँ पैदा करती हैं और पाठक का मनोरंजन करती हैं।
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