संस्करण विवरण:
फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 120 | प्रकाशक: नीलम जासूस कार्यालय
पुस्तक लिंक: अमेज़न
कहानी
जमनाशरण वीरपुर के धनाढ्य आढ़ती का इकलौता बेटा था। उसकी लाश जब वीरपुर के तालाब में मिली तो सनसनी होना लाजमी था।
वीरपुर के मजिस्ट्रेट सुबोध को लाश देखकर लगा था कि उसे जहर दिया गया है।
आखिर जमनाशरण के साथ क्या हुआ था?
क्या किसी ने उसकी हत्या की थी?
अगर हाँ, तो कौन था उसका हत्यारा?
मुख्य किरदार
राजेश – जासूसी विभाग के बड़े अफसर
तारा – राजेश की पत्नी
नीलिमा – सुबोध की बहन
शोभा रानी – इंद्रप्रस्थ क्लब की एक सदस्या
मधुसूदन – डाक बंगले का रसौइया
मीर अली – वीर पुर का दारोगा
गंगाशरण – वीर पुर का एक मशहूर आढ़ती
जमनाशरण – गंगाशरण का बेटा जिसकी लाश तालाब में मिली थी
नर्मदा – गंगाशरण की बेटी
शंकर श्रीवास्तव – खुफिया पुलिस का इंस्पेक्टर जो जांच के लिए आया था
प्रेमनाथ – वीर पुर में रहने वाला डॉक्टर
दयाराम – वीर पुर में रहने वाला डॉक्टर
छाया – गंगाशरण की बहु
विचार
‘तालाब में लाश’ जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा का उपन्यास है जो कि नीलम जासूस कार्यालय द्वारा पुनः प्रकाशित किया गया है।
उपन्यास के केंद्र में सुबोध नामक व्यक्ति है। कहानी की शुरुआत एक क्लब से होती है जहाँ पर सुबोध राजेश और तारा के साथ मौजूद है। वहाँ पर ऐसा कुछ हो जाता है जिसके कारण सुबोध अपने जीवन के उस अध्याय के विषय में राजेश और तारा को बताने के लिए मजबूर हो जाता है जिसके चलते उसे मजिस्ट्रेट की नौकरी से इस्तीफा देना पड़ा था।
वीरपुर नामक कस्बे में मौजूद एक तालाब में एक लाश के पाए जाने से सुबोध की कहानी शुरू होती है। यह लाश किसकी रहती है? इस व्यक्ति की मृत्यु कैसे हुई? सुबोध इस मामले से कैसे जुड़ा था? इस मामले का अंत कैसे हुआ? जैसे जैसे कथानक आगे बढ़ता है इन सब प्रश्नों के उत्तर उपन्यास में पता लगते रहते हैं।
इस मामले की तहकीकात दारोगा मीरअली और खुफिया पुलिस का इंस्पेक्टर शंकर करते हैं। यह किस तरह काम करते हैं और कैसे मामले के विषय में चीजों का पता लगाते हैं यह उपन्यास में दिखता है। इनके माध्यम से लेखक ने यह दर्शाया है कि किस तरह पुलिस और जासूस कार्य करते हैं।
वहीं अगर व्यक्ति मामले से जुड़े व्यक्ति के साथ आसक्ति जताता है तो किस तरह मामले का रुख बदल सकता है यह भी इधर दिखता है।
वैसे तो इस कहानी में एक रहस्य कथा बनने के पूरे गुण थे लेकिन रहस्यकथा के रूप में यह कमजोर सिद्ध होती है। मामले में एक रहस्यमय किरदार द्वारा चिट्ठियों द्वारा ही मुख्य जानकारियाँ मिलती हैं। मुझे व्यक्तिगत तौर पर लगता है कि मामले की तहकीकात करते लोग पूछताछ से अगर इन बातों तक पहुँचते तो बेहतर होता।
उपन्यास के माध्यम से लेखक यह दर्शाने की कोशिश करते हैं कि कैसे समाज में लड़कियों को उनके माँ बाप बोझ सरीखा समझते हैं और इसके चलते क्या क्या परेशानियाँ लड़कियों को उठानी पड़ती है। दहेज प्रथा आज भी भारतीय समाज में व्याप्त है और इसके चलते कई लड़कियों की ज़िंदगी नारकीय हो रखी है। ऐसे में यह ऐसी लड़कियों की स्थिति को अच्छे से दर्शाने का कार्य करती है। साथ ही यह भी दर्शाती है कि कैसे कई बार समाज में मौजूद गणमान्य व्यक्ति ही इसमें संलिप्त होते हैं।
ओम प्रकाश शर्मा अपने उपन्यासों में अक्सर बुरे किरदारों के प्रति नफ़रत का भाव नहीं रखते हैं। यह इधर भी दिखता है। सुबोध और नर्मदा के बीच यह देखने को मिलता है। पर इन दोनों के बीच के समीकरण को देखकर आप ये सोचे बिना नहीं रहते हैं कि अगर नर्मदा खूबसूरत न होती और इस तरह सुबोध के लिए उपलब्ध न होती तो क्या फिर भी सुबोध के भाव वैसे ही होते। शायद नहीं।
कथानक के बाकी किरदार जीवंत हैं और कथानक के अनुसार हैं। धर्मपाल नामक बाबा का किरदार प्रभावित करता है। ऐसे लोग जो बिना स्वार्थ लोगों के लिए सजा पाने को तैयार हो जाएँ कम ही देखने को मिलते हैं। ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि कई स्वार्थी लोग उनका इतना प्रयोग कर चुके होते हैं कि वह होशियार हो जाते हैं।
उपन्यास की भाषा शैली सहज सरल है।
अंत में यही कहूँगा कि अगर आप रहस्यकथाओं के शौकीन हैं तो यह आपको थोड़ा निराश कर सकता है। लेखक ने इधर रहस्य के बजाय मानवीय मन की पड़ताल पर ध्यान केंद्रित किया है। वह सुबोध, नर्मदा और छाया के माध्यम से यह कार्य करते हैं। यह अच्छी बात है लेकिन इसका मूल ढांचा एक रहस्यकथा है जो कि इससे कमजोर पड़ गया है। लेखक कुछ आसान रास्ते अपनाकर रहस्यों को उजागर करते हैं जो कि कथानक को कमजोर कर देता है। अगर लेखक मानवीय मन की पड़ताल करने के साथ साथ रहस्य के तत्वों को भी साध लेते तो उपन्यास बहुत अच्छा बन सकता था।
पुस्तक लिंक: अमेज़न